8-9 अगस्त को राष्ट्रीय प्रतिरोध सम्मेलन व युवा शिविर आयोजित करने का निर्णय
18 जून। वाराणसी में सर्व सेवा संघ के परिसर में स्थित गांधी विद्या संस्थान पर प्रशासन के अवैध कब्जे का विरोध धीरे – धीरे अब राष्ट्रीय शक्ल अख्तियार कर रहा है। प्रशासन ने वहां 15 मई को कब्जा किया था। तब से लेकर सर्व सेवा संघ के परिसर में अनवरत धरना चल रहा है। शनिवार को दिल्ली में हुए प्रतिरोध सम्मेलन के साथ ही गांधी और जय प्रकाश नारायण की विरासत को बचाने की गुहार एक आंदोलन बनती दिख रही है।
दिल्ली में गांधी शांति प्रतिष्ठान के पास स्थित राजेन्द्र भवन में शनिवार सम्पन्न प्रतिरोध सम्मेलन में जहाँ सर्व सेवा संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंदनपाल, केंद्रीय गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचंद्र राही और गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत सहित कई राज्यों से आए सैकड़ों गांधीजन शरीक थे। वहीं पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक, नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर, स्वराज इंडिया के नेता योगेन्द्र यादव, आम आदमी पार्टी के नेता व सांसद संजय सिंह, जय किसान आंदोलन के अध्यक्ष अविक साहा, किसान संघर्ष समिति के डॉ. सुनीलम, सोसायटी फॉर कम्युनल हार्मनी के अध्यक्ष व समाजशास्त्री प्रो आनंद कुमार, युवा समाजशास्त्री डॉ. रणधीर गौतम, समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर, पूर्व सांसद डीपी राय, समाजवादी समागम के रमाशंकर सिंह व अरुण कुमार श्रीवास्तव, खुदाई खिदमतगार के कृपाल सिंह, वाहिनी के दिनेश कुमार, जेपी फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. शशि शेखर प्रसाद सिंह, स्वराज अभियान के प्रो. अजीत झा, राजस्थान समग्र सेवा संघ के सवाई सिंह, राष्ट्र सेवा दल के शाहिद कमाल, सरदार दयाल सिंह, दीपक ढोलकिया, जय हिन्द मंच के सुरेश शर्मा, दीपक मालवीय, श्री फैज़ल भाई, श्री अशोक शरण, संत प्रकाश और जयशंकर गुप्त व अरुण कुमार त्रिपाठी, मणिमाला जैसे जाने-माने पत्रकार शामिल थे।
सम्मेलन का आरंभ जेपी आंदोलन के लोकप्रिय गीत ‘जयप्रकाश का बिगुल बजा तो जाग उठी तरुणाई है’ से हुआ, जो रमेश भाई ने गाया। सम्मेलन दो सत्र में चला। वाराणसी से आए रामधीरज और फिर जागृति राही ने गांधी विद्या संस्थान पर अवैध कब्जे का पूरा घटनाक्रम बताया, और इसके प्रतिकार के लिए वाराणसी में चल रहे सत्याग्रह की जानकारी दी। इसके बाद दिन भर चली चर्चाओं में यह बात उभरकर आई कि गांधी विद्या संस्थान पर प्रशासन का अवैध कब्जा कोई अलग थलग या सिर्फ स्थानीय मामला नहीं है, यह सोची समझी साजिश और ऊपर से आए निर्देश के तहत हो रहा है। साजिश यह है कि गांधी से जुड़ी हुई सभी जगहों पर कब्जा किया जाये, गांधी और आजादी के आंदोलन की स्मृति को मिटा दिया जाये। इसीलिए साबरमती आश्रम का स्वरूप नष्ट करके उसे पर्यटन स्थल में बदला जा रहा है। जलियांवाला बाग के साथ यह खिलवाड़ पहले ही हो चुका है।
ज्ञातव्य है कि गांधी विद्या संस्थान वाराणसी में सर्व सेवा संघ की जमीन पर बना है, संस्थान के भवनों का निर्माण उप्र गांधी स्मारक निधि ने कराया था। सर्व सेवा संघ और उप्र गांधी स्मारक निधि के बीच यह लीज डीड हुई थी कि अगर किसी कारण से गांधी विद्या संस्थान बंद हो जाता है या कहीं और स्थानांतरित हो जाता है तो संस्थान की जमीन सर्व सेवा संघ को वापस हो जाएगी तथा संस्थान के भवनों का उपयोग, उप्र गांधी स्मारक निधि की सहमति से सर्व सेवा संघ कर सकेगा। लिहाजा, गांधी विद्या संस्थान पर प्रशासन के कब्जे का न तो कोई नैतिक आधार है, न ही कोई कानूनी आधार है। इस अवैध कब्जे के पीछे गांधीवादी संस्थाओं को नष्ट और बेदखल करने का संघ परिवार का एजेंडा है जिसे सत्ता के दुरुपयोग से अंजाम दिया जा रहा है।
चर्चा के अंत में कुछ कार्यक्रम भी सुझाए गए जिनमें गांधी-जेपी विरासत बचाओ नाम से वाट्सएप ग्रुप्स बनाएं और मित्रों को इससे जोड़ें, अपनी संस्था की ओर से प्रस्ताव पारित करके राष्ट्रपति को भेजें और राष्ट्रीय स्तर पर एक दिन गांधी जेपी विरासत बचाओ दिवस मनाएं आदि उल्लेखनीय है। इसके अलावा वाराणसी में एक युवा शिविर करने और 8-9 अगस्त को वहाँ एक राष्ट्रीय प्रतिरोध सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया गया।
सम्मेलन की अध्यक्षता रामचंद्र राही ने की। संचालन संजय कुमार और धन्यवाद ज्ञापन अभय सिन्हा ने किया।
सम्मेलन के बाद, सम्मेलन स्थल से राजघाट तक, नारे लिखी तख्तियों के साथ, पदयात्रा निकाली गयी, बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग पर जेपी की प्रतिमा के नीचे पदयात्रियों ने मोमबत्तियां जलाया, फिर राजघाट जाकर गांधीजी की समाधि पर उन्हें श्रद्धा निवेदित करने के साथ इस कार्यक्रम का समापन हुआ।
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