महात्मा गांधी की बुनियादी शिक्षा में सुशासन की मार्फत स्वशासन को स्थापित करना शामिल था। इन दिनों गांधी के इसी सुशासन, स्वशासन की बात को फैलाने के लिए कई छोटे-बडे दल दुनियाभर में यात्राएं कर रहे हैं।
कोविड -19 महामारी के कारण दुनिया में भारी आर्थिक गिरावट देखी गई है और इससे भारत भी बचा नहीं है। इस दौरान लाखों लोगों के रोजगार पर संकट आ गया है। कोरोना संक्रमण के कारण हुई देशव्यापी तालाबंदी (लॉकडाउन) के दरम्यान पूरा देश श्रमिकों के रिकॉर्ड पलायन का गवाह बना। शहरों में कोरोना संक्रमण और भूख से मरने के डर ने प्रवासी श्रमिकों को अपने गाँव और शहर वापस जाने की पलायन-यात्रा पर धकेल दिया। अपने गाँव, घर पहुँचने की जिद्द में श्रमिकों ने अपनी जान तक दांव पर लगा दी।
इस संकट ने हमें एक बार फिर ग्रामीण क्षेत्रों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने का मौका दिया, इसके साथ ही मौजूदा कमजोर परिदृश्य ने सुशासन और स्थानीय स्व-शासन के लिए एक खतरनाक स्थिति उजागर की। कोविड -19 महामारी ने शहरी और स्थानीय निकायों को अपनी नीतियों और संस्थागत तंत्र की समीक्षा करने, उसे पुनर्जीवित करने और पुनः प्रयोग करने का अवसर प्रदान किया है। महामारी के कारण उत्पन्न हुई परिस्थितियों ने एक बार फिर महात्मा गांधी के स्वशासन के सपने की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित किया है और यही स्वशासन सुशासन का रास्ता दिखा रहा है।
कोविड -19 महामारी के दौरान कई स्वयंसेवी संगठन मदद के लिए आगे आए और मजदूर, गरीब वंचित तबकों को फौरी तौर पर राहत पहुंचाने के लिए कई प्रकार का काम किया। कई सामाजिक संगठनों ने मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने का भी काम किया। इसी कड़ी में सामाजिक संगठन ‘एकता परिषद’ ने प्रदेश सहित देश के कई जिलों में मजदूरों के लिए श्रमदान के रूप में रोजगार उपलब्ध कराने की कोशिश की। इसी प्रकार से गांधी का स्वशासन सभी को रोजगार मुहैया कराकर साकार करने की कोशिश की जा सकती है।
भारत में बड़े पैमाने पर शहरीकरण हो रहा है और यही शहरीकरण मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में प्रवास का कारण है। शहरी क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में बेहतर रोजगार के अवसर, शिक्षा, जीवन शैली, जीवनयापन के लिए बुनियादी ढांचा (स्कूल, अस्पताल, व्यावसायिक केंद्र आदि) प्रदान करता है। बढ़ती जनसंख्या, प्रवास और शहरीकरण ने विभिन्न शहरी और क्षेत्रीय मुद्दों को जन्म दिया है, जैसे आवास की कमी, शहरी फैलाव के कारण कृषि भूमि का नुकसान, बुनियादी ढांचे पर बोझ, वाहनों की संख्या में वृद्धि, प्रदूषित पानी, बदहाल स्वच्छता सुविधाएं और पर्यावरण की गिरावट आदि।
कोविड -19 महामारी ने शहरी और क्षेत्रीय योजना की भूमिका के महत्व को एक बार फिर उजागर किया है, ताकि कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों को आत्मनिर्भर बनाने में क्षेत्रीय विकास पर ध्यान केंद्रित किया जा सके। ग्रामीण क्षेत्रों को उन्नत करने के लिए नीतियों और योजनाओं को लाया जा सके, पर्याप्त बुनियादी ढांचा प्रदान किया जा सके। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार में नवाचार को बढ़ावा देने के साथ-साथ, कृषि आधारित अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार, जमीनी स्तर पर अवसरों का सृजन कर स्वशासन की पुनः नींव रखी जा सके। संसाधनों की खपत दर को संतुलित करने के लिए सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों (अनौपचारिक क्षेत्र और कृषिक्षेत्र) में बहुत अधिक खर्च करने की आवश्यकता है।
स्वशासन से ही सुशासन स्थापित हो सकता है और सुशासन के लिए सबको रोजगार मुहैया कराना एक महत्वपूर्ण माध्यम है। लोगों को रोजगार की आवश्यकता इसलिए होती है, ताकि वह स्वयं के साथ-साथ अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। यदि व्यक्ति के पास रोजगार की उपलब्धता होती है तो वह आमतौर पर किसी भी असामाजिक गतिविधियों में शामिल नहीं होता है। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो समाज में शांति और न्याय स्थापित करने के लिए भी रोजगार की आवश्यकता होती है।
रोजगार का दूसरा संबंध राज्य और समाज से भी है। एक व्यक्ति जब काम कर रहा होता है तो वह केवल मेहनताना नहीं ले रहा होता है, बल्कि वह जो काम कर रहा होता है वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से राज्य और समाज के विकास के लिए कर रहा होता है। इस प्रकार जब आप किसी को रोजगार मुहैया कराते हैं तो दो चीजें एक साथ सधती हैं। एक तरफ वह व्यक्ति और उसका परिवार सुरक्षित और संरक्षित होता है तो वहीं दूसरी तरफ समाज भी शांति की स्थिति की ओर अग्रसर होता है।
सुशासन का अर्थ होता है अच्छा शासन, कोई भी शासन या प्रशासन अच्छा कैसे हो सकता है या फिर शासन या प्रशासन का तरीका अच्छा कैसे हो सकता है, इस प्रश्नों के उत्तर की ओर बढ़ें तो हम पाते हैं कि कोई भी शासन अच्छा तभी होगा जब वह अपना होगा। यहाँ अपना का अर्थ है, खुद का शासन अर्थात स्वशासन। स्वशासन में सहभागिता, पारदर्शिता और विकेन्द्रीकरण बेहद जरूरी है। स्वशासन को हम काफी हद तक सत्ता के विकेन्द्रीकरण के रूप में भी देखते हैं। अगर देखें तो स्वशासन और सुशासन एक तरह से समानार्थी हैं। जितना ज्यादा शासन का विकेन्द्रीकरण होगा उतने ही ज्यादा लोगों के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे और उतना ही ज्यादा वह शासन सुशासन होगा, कोई भी केन्द्रीकृत व्यवस्था सुशासन नहीं हो सकता। तो इस प्रकार सुशासन स्वशासन में और स्वशासन सुशासन में बदलता है।(सप्रेस)
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