अरुण कुमार त्रिपाठी

नफरत और हिंसा से भरा पूर्वाग्रह अब भारत को धर्म-निरपेक्ष बनाकर जाति और वर्गों में बाँटना चाहता है। इसीलिए उनके हत्यारे अब सत्य और अहिंसा को केवल नफरत और हिंसा में बदलना, उनके सभी प्रतीकों को बदलकर, नष्ट करके इतिहास बदलने में चरणबद्ध योजना बनाकर काम कर रहे हैं। आज सम्पूर्ण सत्ता खुलेआम उन्हीं के साथ है। इसीलिए ‘‘सद्भावना सर्वोदय की कामना’’ प्रभावी नहीं हो रही है।

सत्य-अहिंसा को नफरत और झूठ से दबाने की शुरुआत 75 वर्ष पूर्व 20 जनवरी 1947 को हुई। जब सत्य को भगवान और अहिंसा को धर्म मानने वाले महात्मा गांधी पर जानलेवा पहला हमला हुआ था। वैसे तो स्वतंत्रता आंदोलन में सत्याग्रह के समय उन पर अनेक प्रकार से बार-बार हमले होते रहे थे। आजादी दिलाने तक और भारत की आजादी के बाद भी 167 दिनों तक उनका शरीर-मन-आत्मा मिलकर, नफरत और हिंसा के विरुद्ध रात-दिन सद्भावना और सौहृर्द्र सत्य को भगवान मानकर, सनातन अहिंसामय धार्मिक पथ पर सक्रिय रहा।

झूठ को ही भगवान मानने वाले और नफरत के रास्ते पर चलने वालों ने महात्मा गांधी के शरीर की हत्या तो कर दी थी, लेकिन विचार सनातन है, इसलिए गहरा बनता चला गया। आज भी पूरी दुनिया में उनके विचार व सत्य-अहिंसा को अपना धर्म मानकर काम करने वालों का विस्तार होता जा रहा है।

नफरत और हिंसा से भरा पूर्वाग्रह अब भारत को धर्म-निरपेक्ष बनाकर जाति और वर्गों में बाँटना चाहता है। इसीलिए उनके हत्यारे अब सत्य और अहिंसा को केवल नफरत और हिंसा में बदलना, उनके सभी प्रतीकों को बदलकर, नष्ट करके इतिहास बदलने में चरणबद्ध योजना बनाकर काम कर रहे हैं। आज सम्पूर्ण सत्ता खुलेआम उन्हीं के साथ है। इसीलिए ‘‘सद्भावना सर्वोदय की कामना’’ प्रभावी नहीं हो रही है।

सर्वोदय जगत को आज भी झूठ से डर नहीं है। लेकिन इनके सभी प्रयास असफल कर दिए जाते हैं। इसलिए भारत की युवा पीढ़ी को बापू का विचार अपनी तरफ लेकर नहीं आ रहा है। बातचीत में तो युवा हमारे सभी विचारों के साथ जुड़े दिखाई देते हैं। लेकिन काम करने में आगे नहीं आ पा रहे। आधुनिक शिक्षा भी झूंठ को ही बढ़ावा दे रही है। आज ‘‘सत्यमेव जयते को झूठमेव जयते’’ बनाने का प्रयास हो रहा है। जब ‘झूठ’ को ही ‘सत्य’ मान लिया जायेगा तो महात्मा गांधी की सम्पूर्ण ‘हत्या’ का प्रयास सफल होगा है। यही प्रयास आज चालू है।

जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ राजेंद्र प्रसाद तथा जिन्ना की सहमति से हुए हिंदुस्तान विभाजन को बापू ने चुनौती दी। उन्होंने कहा, ‘‘विभाजन मेरी लाश पर होगा।’’ फिर भी विभाजन हो गया। लेकिन बापू हिम्मत नहीं हारे। दुखी जरूर थे, कहा, ‘‘मेव मुस्लिम जाएँगे, तो मैं भी इनके साथ पाकिस्तान चला जाऊँगा। जहाँ ये रहेंगे, मैं भी इनके साथ वही रहूँगा।’’ इसी दौरान सरदार पटेल और जवाहरलाल के बीच संप्रदायिक और समाजवादी खेमे बनाकर कुछ लोगों ने बड़ा विवाद शुरू करा दिया था। बापू जानते थे। बापू ने कहा, ‘‘जब तक नेहरू पटेल का विवाद नहीं मिटेगा, मैं यही दिल्ली में ही रहूँगा’’। मन दुखी था, निराशा थी, सब कुछ विचार के विरुद्ध चल रहा था, फिर भी बापू दोनों से प्यार से बातें कर रहे थे। दोनों का मन मिलाना चाहते थे। देश के हित हेतु दोनों का मिलना जरूरी है। यह बात सभी से कहने लगे थी।

पटेल ने बापू से कहा-मुसलमानों का वापस आना और इन्हें फिर से बसाना बड़ी समस्या बन जाएगी। कानून व्यवस्था बिगड़ जाएगी। दोनों ही अपनी बातों के साथ बापू के पास जाते थे। इसके बावजूद बापू नेहरू और पटेल का विवाद नहीं सुलझा पाए। मेवात के मेवों का पुनर्वास करने हेतु बापू की आत्मा का शरीर से अलग हो जाने के 61 दिन बाद विनोबा भावे जी उसी कार्य में लगे। बिहार के सत्यम भाई तथा मोहम्मद कुरैशी, एल्हास मोहम्मद आदि बहुत से सर्वोदय कार्यकर्ता मेव पुनर्वास में जुट गए। कांग्रेस के भी कार्यकर्ताओं ने मेव पुनर्वास में बहुत तत्परता से कार्य किया। ताराचंद प्रेमी, शांति स्वरूप डाटा, गंगा डाटा, रणधीर सिंह हुड्डा व बहुत से मेव कांग्रेसी भी इस कार्य में लगे। मेवों का पुनर्वास होने लगा।

आजादी के दिन बापू के सामने सबसे बड़ी चुनौती हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाईयों की एकता बनाने की थी। उसी में बापू ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर काम किया। प्राण तो चले गए लेकिन बापू जीत गए। जीने तथा सब धर्मों को समान हक देनेवाला भारत राष्ट्र बना लिया। आजादी दिवस से अंतिम दिन तक बापू का जौहर चला है, मेवात कैसे बना? मेवात का जनमानस आज क्या चाहता है? क्या कर रहा है। मेवात के संकट से जूझते लोग, बाजार की लूट, पानी और खेती की लूट रोकने की दिशा में हुए काम कुदरत की हिफाजत के काम है। इन कुदरती कामों में आज भी महात्मा गांधी की प्रेरणा की सार्थकता है। युगपुरुष बापू को चले जाने के बाद युवाओं द्वारा उनकी प्रेरणा से प्रेरित होकर ग्राम स्वराज, ग्राम स्वावलंबन के रचनात्मक कार्यों से लेकर सत्याग्रह तक चरणबद्ध बापू का काम पूरी दुनिया, भारत और मेवात में भी चलता रहा और आज भी जारी है।

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