अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा दीवार खड़ी करके अमरीकी सीमाओं को ‘सील’ करने की हरकत के चलते आजकल बीच बहस में खड़ा मध्य-अमेरिकी देश मैक्सिको आखिर किन संकटों से गुजर रहा है ? क्या वहां गांधी के अहिंसक औजार कारगर हो सकते हैं ? प्रस्तुत है, पिछले कुछ सालों से वहां के गांधीवादी समूह ‘ओरा वर्ल्ड मंडाला’ से जुडी राधा भट्ट के अनुभवों पर आधारित यह लेख।
गांधीजी ने सेवक की एक प्रार्थना लिखी थी, जिसे हम भी अपनी सायंकालीन प्रार्थना में गाया करते हैं। ‘’हे नम्रता के सागर’’ के विशेष संबोधन से प्रारंभ होने वाली इस प्रार्थना की एक महत्वपूर्ण पंक्ति है – ‘‘तू तभी मदद को आता है जब मनुष्य शून्य बनकर तेरी शरण लेता है।‘’ मनुष्य के शून्य बनने की घड़ी की स्पष्ट पहचान और उसका प्रत्यक्ष अहसास मुश्किल से ही होता है, पर जब होता है तो मनुष्य अपनी अहं की शक्ति को भूल कर मदद के लिए पुकारता है। यह स्थिति व्यक्तिगत रूप से भी होती है और एक पूरे राष्ट्र के सामूहिक रूप से भी।
मध्य अमरीका के देश मैक्सिको का समाज अभी इसी स्थिति में है। वहां के मानव अधिकार मंत्री कहते हैं कि पिछले सात वर्षों में 25 लाख लोग मारे गये हैं और 40 हजार लोग लापता हुए हैं। पूरे देश में 150 विशाल संयुक्त कब्रें (मास-ग्रेव्स) हैं। प्रत्येक मासग्रेव में 500 से 800 तक लाशें गाडी गई हैं। यह सरकारी आंकड़ा है, परन्तु जनता इसको कई गुना अधिक बताती है। आखिर ऐसी भयानक हिंसा कौन और किस वजह से कर रहा है ?
हिंसा करने वाले समूहों को मुख्यतः दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है-एक, ‘नार्कोज’ जो ड्रग-ट्रैफिकिंग के संचालक समूह हैं और ‘गैंग्स’ कहलाते हैं। लातीनी अमेरिकी देशों से विभिन्न नशीले पदार्थ मैक्सिको से होते हुए अमेरिका तक पहुंचाने का यह लाभदायक धंधा गलाकाट प्रतिस्पर्धा का अड्डा है। इन ‘गैंग्स’ की प्रतिस्पर्धा, क्रूरता के नमूने हैं, वे गैंगवार (गैंग के युद्ध) जिनमें आम रास्तों पर गैंग एक-दूसरे पर गोली चलाते हैं और लाशें बिछ जाती हैं। नार्को गैंग्स की हिंसा में कितने ही निरपराध हिंसा के शिकार होते हैं। इस हिंसा के दूसरे महारथी हैं ”कारतेल्स’’ यानि समाज में ठाठ-बाट के साथ, बड़ी गाड़ियों, बड़ी कोठियों वाले लुटेरे या एक तरह के माफिया। इनका भी बड़ा जाल फैला है। मानव अंगों की चोरी करना, उसके लिए लोगों का अपहरण करना, गर्भवती स्त्रियों का अपहरण करके नवजात शिशुओं का व्यापार करना और किसी भी उम्र की महिला के साथ बलात्कार करवाना। मानव अंगों की चोरी करने के लिए इनके साथ कुछ निजी अस्पताल भी हैं।
मेरे मैक्सिको प्रवास के दौरान हमारे गांधी विचार संगठन से जुड़ी एक महिला फुटपाथ पर फिसल पड़ी। सिर पर चोट आई तो पुलिस वालों ने उसे उठाया, एम्बुलेंस मंगाई और पास में कई अस्पतालों के होने के बावजूद 30 मील दूर, एक तथाकथित अस्पताल में भिजवा दिया। आधी रात को स्वयं सेवक समूह के चार युवाओं के साथ सोनिया देओत्तो उस महिला को 20 हजार मुद्राएं देकर डॉक्टरों से छुड़ा कर लाई अन्यथा जबरदस्ती ऑपरेशन करके उसके अंग चुरा लिए जाते। इस घटना से पता चलता है कि इन ‘कारतेल्स’ का संबंध जितना नकली अस्पतालों से है उतना ही पुलिस से भी है। ऐसे में जनता कहां जाये?
जनता को सुनने व समझने की तैयारी उस देश की जनतांत्रिक सरकार की भी नहीं है। कौर्नेवाका नगर ने अपने आंदोलन को गांधी की अहिंसात्मक पद्धति में ढ़ालकर संचालित करने की इच्छा से हमें अपने नगर में बुलाया था। हमें बताया गया कि वहां के कई परिवारों के सदस्य पिछले कुछ समय से अचानक गायब हो रहे थे। साथ ही उनके नगर से कुछ दूरी पर स्थित एक ‘संयुक्त कब्र’ का आकार भी बढ़ता जा रहा था। ‘कौर्नेवाका ऑटोनॉमस विश्वविद्यालय’ के प्रोफेसर हावियर सिसलिया ने अगुआई की और वे पीड़ितों के साथ कौर्नेवाका राज्य के गर्वनर (सर्वोच्च कार्यकारी) के पास गये। ‘‘संयुक्त कब्र को खुलवाकर शवों का डी.एन.ए करवायें ताकि हम जान सकें कि हमारे परिवार जन मार दिये गये हैं। हम उनका विधिपूर्वक अन्तिम संस्कार तो कर दें।‘’ उनकी इस मांग को गवर्नर ने ठुकरा दिया, कहा ‘‘यह सरकार का काम नहीं है।‘’ प्रोफेसर सिसलिया के नेतृत्व में साहस बटोर कर लोग आगे बढ़े। उन्होंने संयुक्त कब्र को स्वयं खोलने की कार्यवाही की। इससे नाराज गवर्नर ने प्रोफेसर सिसलिया के विश्वविद्यालय की आर्थिक सहायता रोक दी।
आंदोलन के इस चौराहे पर उन्हें गांधी विचार की सहायता चाहिए थी। हमने कहा ‘‘गांधी ने सिखाया व करके दिखाया है कि आम जन की संगठित, समर्पित, प्रतिबद्ध अहिंसक शक्ति में वह ऊर्जा है कि वह सरकार की हिंसक शक्ति को परास्त कर देती है। अहिंसा के सामूहिक कदमों के उदाहरण स्वरूप ‘चिपको आंदोलन,’ ‘खीराकोट आंदोलन’ व शराबबन्दी आंदोलन में आम जन की निर्भयता, बुद्धिमता और एकता के अपने अनुभव हमने बताये तो एक युवती बोल उठी, ‘अब बन्द राह खुल गई, मुझे नये क्षितिज दिखने लगे हैं। स्पष्ट है कि हमें कदम पीछे नहीं हटाने हैं।‘ प्रोफेसर सिसलिया ने कहा कि ‘हम आंदोलन भी चलायेंगे और यहाँ की जनता कहती है कि हम अपना विश्वविद्यालय भी चलायेंगे।‘
मुझे याद आता है 2011 में मैक्सिको के समाज का मेरा प्रथम अनुभव। लोग उन पर हुई हिंसा की घटनाओं व उससे जुड़ी जानकारियों को सार्वजनिक रूप से कहने में घबराते थे। उनके विश्वास टूट गये थे,अपने समाज का हर व्यक्ति उन्हें मानो ‘कारतेल्स’ से जुड़ा हुआ लगता था। भय ने उनके हृदय जकड़ दिये थे। वर्ष 2015 में स्थिति कुछ बदल रही थी। भय कम हो गया था। अब 2018 में लोगों में काफी बदलाव आया है। अब वे सिविक फोरम आयोजित कर रहे हैं ताकि हिंसा प्रताड़ित लोग अपना दुख सार्वजनिक रूप से बतायें जिससे उनको लगे कि अन्य भी उनके साथ हैं। ऐसे सिविक फोरम में मंत्री स्तर के जन प्रतिनिधियों को भी बुलाया जाता है।
सनलुईस पोटोशी में एक सिविक फोरम मेरी उपस्थिति के निमित्त आयोजित किया गया था। हिंसा के 14 भुक्तभोगियों ने अपनी पीड़ा आंसुओं से भीगे शब्दों में व्यक्त की थी। अपना आक्रोश भी यह कहकर प्रकट किया, ‘‘सरकार ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है। पुलिस व अपराधियों के परोक्ष जाल ने हमारे देश को बर्बाद कर दिया है।‘ एक हिंसा प्रताड़ित नागरिक ने अपने जनप्रतिनिधियों की नीति को चुनौती देते हुए कहा, ‘‘अन्तराष्ट्रीय कोर्ट को इस देश में नहीं आने दिया गया क्योंकि हमारी संसद ने उसे आने की अनुमति नहीं दी। ऐसे में हम नागरिक क्या करें? हमारे लिए न्याय कहां है?’’
आज भी हिंसा की वारदातें कम नहीं हुई हैं पर कुछ लोगों ने भय त्यागने का मन बनाया है। उन्हें सरकार की ‘माफ कर दो और भूल जाओ’ की वह नीति मंजूर नहीं है जिसे हिंसा प्रताड़ित नागरिकों को न्याय दिलाने की बजाए इस्तेमाल किया जाता है। इसके बदले नागरिक कहते हैं,‘‘न्याय दिलाओ और शांति लाओ।‘’
मैक्सिको की भूमि मूल्यवान धातुओं का खजाना भी अपने में समाये हुए है जिनके खनन की होड़ में कई विदेशी कारपोरेट्स अन्धाधुन्ध खनन कर रहे हैं। यह खनन गांवों के जनजीवन को नष्ट कर रहा है। उनकी खेती, उनका पानी उनका वन व चारागाह सबको रौंदते हुए यह उद्योग जमीन से चांदी निकालकर अपनी चांदी काट रहा है। एक गांव का सरपंच यह देख न सका, उसने विरोध किया तो कम्पनी ने उसे मार दिया। गांव की मदद के लिए कुछ युवक आगे बढ़े तो उनके पीछे पिस्तौलधारी लगा दिये गये। दो मार दिये गये,एक अपने बच्चों और परिवार को छोडकर कनाड़ा भाग गया।
ऐसे में मैक्सिको के समाज में आ रहे साहसपूर्ण परिवर्तन के पीछे गांधी के विचारों के सहारे शान्ति व अहिंसा के लिए काम करने वाला एक छोटा-सा समूह सक्रिय है। उसका नाम है ‘ओरा वर्ल्ड मंडाला।‘ मैक्सिको की विषम परिस्थितियों में गांधीजी की अहिंसा, एकता, निर्भयता व शान्ति के संदेश को पिछले 15-16 वर्षों से निरन्तर, परन्तु बड़े धैर्य से यह स्वयंसेवक समूह फैला रहा है। ‘ओरा वल्र्ड मंडाला’ की संस्थापिका सोनिया देओत्तो को गांधीजी द्वारा 1920 में भारत में स्थापित विश्वविद्यालय ‘गुजरात विद्यापीठ’ का वैचारिक और आत्मिक सहयोग प्राप्त है।
वर्ष 2015 में मैंने पहली बार कोलसन विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रमुख के सम्भाषण में यह वाक्य सुना था,”अगर हमें मैक्सिको को बचाना है तो वह केवल गांधी से ही हो सकता है। मैंने अनेक राष्ट्रों व संस्कृतियों के इतिहासों के अध्ययन के बाद यह समझा है, परन्तु भारत को हमें बताना होगा कि गांधी के रास्ते पर कदम-दर-कदम कैसे चलना होगा ?’’
इस बार आम लोगों से भी सुनने को मिला। साकातेकस नगर में गांधी जी की सक्रिय अहिंसा की, आमजन के एकतापूर्ण निर्भीक व अहिंसक संगठित कार्यक्रमों की बातें हमसे सुनने के बाद एक योग शिक्षिका खड़ी हुई और बोली, ”इस नगर के अन्धकारमय वातावरण में रोशनी की तरह आई हो। तुम्हारे कारण ही इस स्थान पर इतने लोग पहली बार एकत्र हुए हैं। हम इस रोशनी को आगे ले जायेंगे। तुम्हारी उपस्थिति से एक नया दौर शुरू हो गया है,यह रोशनी हमारे पूरे देश के लिए है।‘ इसमें ‘तुम’ किसी व्यक्ति के लिए नहीं वरन गांधी विचार अहिंसा व सत्याग्रह को लिए सम्बोधित है जिसे सुनकर उसी सभा से योग शिक्षिका की तरह दो युवतियाँ मेंरे पास आकर बोलीं, ”हम दोनों एक साथ, निर्भीकतापूर्वक इस साकातेकस शहर में लोगों में निर्भयता व शान्ति के लिए काम करेंगी। आपके कथनानुसार हम दो नहीं, ग्यारह बन गईं हैं।‘’
गांधी जी के विचार दर्शन की अहमियत को समझने की स्थिति कई अन्य देशों के समाजों में भी आ गई है जहाँ स्वयं जनतांत्रिक सरकारों की हिंसा, पूँजी जगत के अपराधियों की हिंसा, देश की व्यवस्थाओं में रची-बसी हिंसा और दलगत राजनीति में बढ़ती हिंसा से समाज निजात पाना चाहने लगा है। आज का जनतंत्र आम जन के हित से अधिक मुट्ठीभर पैसे वालों के पक्ष में चला गया है, अतः जनता को कोई राह नहीं दिखती। ऐसे समय ‘‘जब मनुष्य शून्य बनकर’’ अन्धकार में कुछ खोजने, टटोलने लगता है, तब कोई प्रकाश मिलना चाहिए।गांधी वह प्रकाश है। ऐसा गांधी आज मैक्सिको को चाहिए। (सप्रेस)
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