2 अक्टूबर : गांधी जयंती
पिछले महीने गांधी-विचार के एक और महत्वपूर्ण केन्द्र, वाराणसी के ‘राजघाट’ को सरकार की शह पर नेस्त-नाबूद कर दिया गया है। ऐसे समय में जब देश-दुनिया को गांधी-विचार की सर्वाधिक जरूरत थी, इस केन्द्र का ध्वस्त होना दुखद तो है ही, लेकिन यह बताता है कि लोकतंत्र के नाम पर सत्ता पर काबिज लोग किस दिशा में सोचते हैं। इसी पर प्रकाश डालता भारत डोगरा का लेख।
वाराणसी में 14 एकड़ क्षेत्र में गांधीवादी सोच का प्रमुख केन्द्र ‘सर्व सेवा संघ’ का परिसर 63 वर्षों से स्थापित रहा। यहां गांधी जी की सोच से जुड़े अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य होते रहे। हाल ही में अचानक इस पर रेलवे का हक बताकर खाली करने का नोटिस दे दिया गया है। 12 अगस्त को ‘महात्मा गांधी, विनोबा भावे और जेपी के विचारों की विरासत’ कहे जाने वाले राजघाट स्थित ‘सर्व सेवा संघ’ भवन पर बुलडोजर चला। ‘सर्व सेवा संघ’ से जुड़े लोगों के निरंतर विरोध के बीच सुबह से शाम तक परिसर के 20 भवन ढहाए गए। विरोध कर रहे 10 लोगों को हिरासत में लिया गया।
इस बुलडोजर कार्यवाही से महात्मा गांधी के विचारों के प्रसार से जुड़े लोग बहुत आहत हैं। हम एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जब दुनिया और देश दोनों स्तरों पर अमन-शांति की बहुत जरूरत है। विभिन्न धर्मों की आपसी सद्भावना और उस पर आधारित एकता की भी देश को बहुत जरूरत है।
ऐसे समय में महात्मा गांधी के विचारों के प्रसार के एक प्रमुख केंद्र पर बुलडोजर कार्यवाही निश्चय ही अनुचित है। आखिर 60 वर्षों से तो यह केन्द्र उसी जमीन पर स्थित था और इसमें देश-विदेश के अति प्रतिष्ठित, अमन-शांति के लिए समर्पित लोग आते रहते थे, अध्ययन व विमर्श करते रहे थे। तो फिर अचानक उसके विरुद्ध बुलडोजर कार्यवाही क्यों की गई?
गांधीवादी कार्यकर्ताओं और केन्द्रों से बहुत से लोगों की उम्मीदें जुड़ी हैं, अन्याय व भेदभाव या शोषण से त्रस्त लोग वहां से न्याय की उम्मीद रखते हैं। अन्याय व शोषण की व्यवस्थाओं को अमन-शांति की राह पर चलते हुए बदला जा सकता है – यह सोच भी इन केन्द्रों और वहां के कार्यकर्ताओं व विद्वानों से जुड़ी है। ऐसी स्थिति में गांधीवादी विचारों के एक प्रमुख केन्द्र के विरुद्ध ऐसी कार्यवाही निश्चय ही उम्मीदों को तोड़ने का कार्य करती है।
दूसरी ओर, इसमें कोई संदेह नहीं कि महात्मा गांधी की सोच के जो कुछ मूल सिद्यान्त थे उनका महत्त्व और बढ़ रहा है। अन्याय और शोषण के विरुद्ध अहिंसा और सत्य की राह पर चलते हुए व्यापक जन-भागीदारी से संघर्ष होना चाहिए, यह उनका जीवन-संदेश था, जिसे उन्होंने जीकर दिखाया। अहिंसा व अमन-शांति आधारित प्रयास गांधी ने जीवन-भर किए जिनमें हर तरह के भेदभाव और संकीर्ण सोच को दूर करना बहुत जरूरी माना गया है।
विभिन्न धर्मों का एक-दूसरे के प्रति सम्मान व इस पर आधारित एकता व सद्भावना को उनके विचारों में बहुत महत्त्व दिया गया। धर्म या जाति या ऐसी किसी पहचान के आधार पर कभी किसी व्यक्ति को किसी हिंसा व भेदभाव का शिकार न बनना पड़े, यह गांधी जी की सोच में सदा महत्त्वपूर्ण रहा। यह उनके लिए इतना महत्त्वपूर्ण था कि वे इसके लिए अपने प्राण न्यौछावर तक करने को तैयार रहते थे व इसके लिए उन्होंने एक से अधिक बार लंबे उपवास किए।
आज की चिंताजनक स्थितियों में हमें गांधी जी के मूल संदेशों और प्रतिबद्धताओं को याद रखना बहुत जरूरी है। यदि हम एक बेहतर देश व समाज बनाना चाहते हैं व तरह-तरह की हिंसा व युद्ध से त्रस्त दुनिया को नई राह दिखाना चाहते हैं तो महात्मा गांधी के मूल संदेशों से ही सबसे अधिक बल मिलेगा।
महात्मा गांधी की यह अहिंसक सोच विषमता को दूर करने से भी नजदीकी तौर पर जुड़ी है। बढ़ती विषमता और शोषण किसी समाज में व्याप्त हिंसा को ही बढ़ाते हैं। दूसरी ओर समता और सादगी ऐसी बुनियाद हैं जो समाज को टिकाऊ तौर पर अहिंसक बनाने में बहुत सहायक हैं। अहिंसा और न्याय इन दोनों के लिए गहरी प्रतिबद्धता की सोच हमें गांधी जी की सोच से मिलती है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि वाराणसी में ‘सर्व सेवा संघ’ के परिसर पर बुलडोजर चलाने से गांधी जी के विचारों के प्रसार को बहुत क्षति हुई है, पर गांधीवादी सोच के लोगों को इससे निराश नहीं होना है, अपितु इसे चुनौती मानकर महात्मा गांधी की मूल सोच को समाज में ले जाने के लिए उन्हें अपने प्रयास और बढ़ाने चाहिए, ऐसे प्रयास जो हर तरह के भेदभाव को समाप्त करते हैं, एकता बढ़ाते हैं व न्याय तथा अहिंसा की राह पर आगे बढ़ाते हैं। एक मूल बात यह है कि कठिन परिस्थितियों में महात्मा गांधी की मूल सोच को ही आगे ले जाया जाए, सुविधा के लिए उससे कोई छेड़छाड़ या खिलवाड़ न किया जाए। सद्भावना व एकता के मुद्दों पर, कोई भेदभाव न होने देने व अहिंसा जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर महात्मा गांधी के सिद्धान्तों और सोच पर बने रहना बहुत जरूरी है। (सप्रेस)
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