केएस राधाकृष्ण जन्म शताब्दी समारोह
राधाकृष्णजी एक समर्पित गांधीवादी थे, जिन्होंने उदार विचारों वाले लोगों को परस्पर मिलाकर हर काम को आसान बनाया। वे महान विचारक और दूरदर्शी व्यक्ति थे। वे सभी तरह की समस्याओं का समाधान गांधीवादी नजरिए से खोजते थे और अपने समय में सफल भी होते रहे थे। राधाकृष्णजी ने गांधी युग के बाद समय के बदलाव को अच्छी तरह से समझा था। सर्वोदय के कार्यों को रचनात्मक कार्यक्रमों द्वारा आगे ले जाने का 1947 में कार्य शुरू हुआ तभी से राधाकृष्ण इसके प्रमुख स्तंभों में से एक बने।
महात्मा गांधी के विचारों और मूल्यों को प्रवाहित करने वाले आचार्य विनोबा भावे और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के बाद अत्यधिक शुमार किए जाने वाले केएस राधाकृष्ण को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत करने की मांग की गई है। यह मांग केएस राधाकृष्ण के जन्म के सौ साल पूरे होने पर सेवाग्राम स्थित दादा धर्माधिकारी सभागार में 9 से 11 नवंबर को आयोजित एक राष्ट्रीय समारोह में की गई, जिसे मौके पर देश के विभिन्न राज्यों से जुटे अनेक गांधीवादी कार्यकर्ताओं और नेताओं ने समर्थन दिया है। राधाकृष्ण के जन्म शताब्दी वर्ष पर उनको भारत रत्न से अलंकृत करने के साथ ही उनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी करने की मांग की गई, ताकि नई पीढ़ी के लोग भी राधाकृष्ण के व्यक्तित्व और उनके द्वारा देश और विदेश में किए गए उल्लेखनीय कार्यों से अवगत हो सकें। तीन दिनों के इस समारोह में भविष्य में हजारों युवाओं को गांधीवादी पाठ पढ़ाकर देश के निर्माण में जोड़ने का संकल्प भी दोहराया गया। समारोह में विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुभवों से संबंधित एक स्मारिका का भी लोकार्पण हुआ, जिसमें उनके काम और उनके द्वारा स्थापित दर्जनों संस्थाओं के इतिहास का लेखा-जोखा शामिल है।
समारोह में सभी गांधीजनों का स्वागत करते हुए देश सहित दुनिया के सौ से अधिक देशों में गांधी कथा के आयोजन करने के लिए प्रसिद्ध और राधाकृष्णजी की पुत्री शोभना राधाकृष्ण ने गहरी चिंता व्यक्त की कि गांधीवादी मूल्यों और विचारों को साकार करने के भागीरथी प्रयासों में अपना पूरा जीवन झोंक देने वाले केएस राधाकृष्ण को न सिर्फ भुला दिया गया, बल्कि उनके निधन के तीस साल के अंतराल में उनकी समस्त कीर्तियों को भी मिटा दिया गया। उनकी मदद से खड़े हुए ज्यादातर लोगों ने उनकी याद में एक छोटा सा भी आयोजन करने की जहमत नहीं उठाई।
शोभना राधाकृष्ण ने कहा कि उन्हें हम और आप भूल जाएं, लेकिन वे इतिहास के पन्ने में सदा के लिए अमर रहेंगे। गांधी के शहीद हो जाने के बाद विनोबा, जेपी, आचार्य कृपलानी जैसे मनीषियों के होते हुए राधाकृष्ण गांधीवादियों की गतिविधियों में हमेशा केंद्रीय भूमिका में होते थे। जिस-जिस ने सातवें दशक में सेवाग्राम और दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान का दौरा किया होगा उन सभी को राधाकृष्ण के प्रभाव का अंदाजा जरूर लगा होगा। तब लोकनायक जयप्रकाश नारायण और अब्दुल गफ्फार खान जैसे महान नेता राधाकृष्ण के आवास पर ही रुकते थे। आपातकाल में जेपी और खुद राधाकृष्ण गांधी शांति प्रतिष्ठान से ही गिरफ्तार किए गए थे।
समारोह में राधाकृष्ण के योगदानों को याद करते हुए विभिन्न वक्ताओं ने कहा कि बिहार से शुरू हुआ राष्ट्रव्यापी जेपी आंदोलन स्वयंस्फूर्त नहीं था, बल्कि केएस राधाकृष्ण और उनके सहयोगियों द्वारा की गई लंबी तैयारी का परिणाम था। बिहार और अन्य राज्यों में फैले जेपी आंदोलन की तैयारी का केंद्र दिल्ली स्थित वह गांधी शांति प्रतिष्ठान था, जिसके तत्कालीन सचिव केएस राधाकृष्ण थे। उनके प्रभाव का ही यह नतीजा था कि केंद्र में लंबे समय से काबिज कांग्रेस को उखाड़ फेंकने के बाद जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री बन सके। हालांकि इस कामयाबी को हासिल करने वाले राधाकृष्ण को इसके लिए भारी कीमत भी चुकानी पड़ी। उनको अनेक यातनाओं को झेलना पड़ा। उनको जेल जाना पड़ा और निराधार आरोपों को लेकर गठित कुदाल आयोग का भी फिजूल में सामना करना पड़ा, जबकि वे गांधी जी की हत्या के बाद विनोबा के भूदान-ग्रामदान आंदोलन को गति देते आ रहे थे। उन्होंने ग्राम निर्माण, नई तालीम और स्त्री सशक्तिकरण के लिए देश भर के युवाओं को जोड़ा।
राधाकृष्णजी ने गांधी युग के बाद समय के बदलाव को अच्छी तरह से समझा था। सर्वोदय के कार्यों को रचनात्मक कार्यक्रमों द्वारा आगे ले जाने का 1947 में कार्य शुरू हुआ तभी से राधाकृष्ण इसके प्रमुख स्तंभों में से एक बने। वे बदलते परिदृश्य और युवा पीढ़ी के उद्देश्यों और उनकी आकांक्षाओं से अच्छी तरह परिचित थे। उनकी मुख्य चिंता थी कि युवा वर्ग को गांधीवादी कार्यक्रमों में कैसे शामिल किया जाए। राधाकृष्णजी अपने दृष्टिकोण और विचारों में आधुनिक थे। पुराने ढर्रे पर चलने की बजाय उन्होंने गांधीवादी विचारों के साथ ग्रामीण विकास में वैकल्पिक दृष्टिकोण रखने की कोशिश की। वे व्यापक ग्रामीण विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रयोग में समान रूप से रुचि रखते थे। उन्होंने सतत विकास के लिए पर्यावरण संरक्षण के महत्व और इसमें स्वैच्छिक संस्थाओं के प्रयासों की महत्वपूर्ण भूमिका को समझा था। उनका ध्यान खासतौर से सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में समस्याओं को हल करने पर था।
राधाकृष्णजी नागालैंड और चंबल घाटी के बागियों के बीच शांति जैसी जटिल समस्याओं का समाधान खोजने में शामिल थे। एक युवा के रूप में उन्होंने देश के विभाजन के बाद हुई अभूतपूर्व आपदा देखी थी, जिसमें लाखों देशवासियों ने अपनी जानें गंवाई थीं। पंजाब में शरणार्थियों के बीच उनके काम ने धर्मनिरपेक्षता के लिए उनकी प्रतिबद्धता को बढ़ाया। पूर्वी पाकिस्तान में शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में अहिंसक और शांतिपूर्ण आंदोलन ने राधाकृष्ण और जयप्रकाश नारायण को प्रभावित किया। उन दोनों ने बांग्लादेश के पक्ष में जनमत जुटाने के लिए बड़े पैमाने पर देश और विदेश का दौरा किया। बांग्लादेश की समस्या का शांतिपूर्ण समाधान खोजने के प्रयास में 1971 की शुरुआत में गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें राधाकृष्ण जी ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को राहत और पुनर्वास के लिए सहायता की व्यवस्था की। सैकड़ो गांधीवादी रचनात्मक कार्यकर्ताओं ने इस संकट की घड़ी में आगे आकर पुनर्वास कार्यक्रम में हिस्सा लिया।
राधाकृष्णजी 1970 में आंध्रप्रदेश में आए चक्रवात के पीड़ितों के लिए मानवीय सहायता प्रदान करने में सक्रिय रूप से शामिल थे। उन्होंने राहत और पुनर्वास के लिए किए जा रहे प्रयासों के बीच समन्वय स्थापित किया। घरों के पुनर्निर्माण, कृषि के लिए मदद, आय सृजन, कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना और सिंचाई आदि कामों को अपने हाथों में लिया।
राधाकृष्णजी एक समर्पित गांधीवादी थे, जिन्होंने उदार विचारों वाले लोगों को परस्पर मिलाकर हर काम को आसान बनाया। वे महान विचारक और दूरदर्शी व्यक्ति थे। वे सभी तरह की समस्याओं का समाधान गांधीवादी नजरिए से खोजते थे और अपने समय में सफल भी होते रहे थे। राधाकृष्ण जन्मशती समारोह में खासतौर से गौतम बजाज, शिशिर बजाज, गीता धर्मपाल, उदय शंकर, प्रसून लतांत, सलिल दबे, हरीश राज, परमेश्वर बरीक, बुद्ध राय सोरेन, रवि चोपड़ा, गुणवंत काल बांडे, अनवर राजन, एस सी वर्मा, अश्विनी कुमार, भूरे राम और रोशन लाल सहित अनेक आश्रमवासी मौजूद थे। (सप्रेस)
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