क्या गांधी को कोई ‘वल्र्ड क्लास’ बना सकता है? सब जानते हैं कि गांधी ने बार-बार अपने जीवन को ही अपना संदेश निरूपित किया है, यानि वे जहां, जैसे रहे-बसे, वह उनके संदेश के दर्जे का हो गया। आजकल अहमदाबाद के ‘साबरमती आश्रम’ को ‘वल्र्ड क्लास’ बनाने की करतूत परवान चढ़ रही है। जाहिर है, यह गांधी और उनके संदेशों को मेटने की प्रक्रिया का ही हिस्सा है। कमाल यह है कि खुद आश्रम के मौजूदा कर्ता-धर्ता इस बात पर चुप्पी लगाए बैठे हैं। आखिर क्या होगा ‘साबरमती आश्रम’ को चमकदार पर्यटन-स्थल बनाने का नतीजा?
महात्मा गांधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटे थे और उन्होंने अहमदाबाद के कोचरब गांव में 25 मई 1915 को एक आश्रम की स्थापना की थी। यह स्थान गांधीजी के प्रयोगों के लिये छोटा था तथा वहां प्लेग भी फैल गया था, अतः उन्होंने अहमदाबाद शहर के बाहर, साबरमती नदी के किनारे 17 जून 1917 को एक दूसरे आश्रम की स्थापना की थी। मार्च 1930 तक यह गांधीजी का मुख्यालय रहा। 12 मार्च 1930 को वे यहीं से अपने 79 साथियों के साथ ऐतिहासिक ‘दांडी कूच’ पर निकले थे। इस ‘कूच’ से पहले बापू ने कहा था कि ‘मैं कौए या कुत्ते की मौत मरुंगा, पर जब तक आजादी नहीं मिलेगी, तब तक आश्रम नहीं लौटूंगा।‘ उसके बाद वे कभी लौटकर ‘साबरमती आश्रम’ नहीं आये।
पिछले दिनों अहमदाबाद के समाचार पत्रों में इसी ‘साबरमती आश्रम’ के बारे में समाचार प्रकाशित हुआ है कि उसे ‘वल्र्ड क्लास’ बनाने के लिये 32 एकड़ जमीन को खाली कराया जाएगा। जिन जगहों को खाली कराने की बात है उसमें ‘सर्व सेवा संघ’ द्वारा स्थापित ‘खादी ग्रामोद्योग प्रयोग समिति,’ ‘गुजरात खादी ग्रामोद्योग मंडल,’ ‘साबरमती आश्रम,’ गौशाला, कार्यकर्ता निवास, उत्तर-बुनियादी विद्यालय, पी.टी.सी. कॉलेज आदि अवस्थित हैं। इस योजना के कारण पीढ़ियों से रह रहे 200 परिवारों को वहां से स्थानांतरित कर आश्रम के बगल में अवस्थित झोपड़पट्टी में गटर के किनारे ले जाने की योजना है। यह सब अत्यंत गुप्त रुप से किया जा रहा है। इस विषय पर कभी भी आश्रमवासियों के साथ कोई चर्चा नहीं की गयी।
दिनांक 20.09.2019 को ‘खादी ग्रामोद्योग आयोग’ की ओर से ‘साबरमती आश्रम’ के आसपास अवस्थित संस्थाओं को एक पत्र लिखकर कहा गया है कि-‘‘ .. .. .. भारत के माननीय प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित कमिटी में यह निर्णय लिया गया है कि पूज्य महात्मा गांधी जन्म जयंती के 150 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में गांधी आश्रम, अहमदाबाद का विस्तार बढ़ाया जाये एवं साबरमती आश्रम को वल्र्ड क्लास मेमोरियल के रुप में तैयार किया जाये। इस कार्य में गुजरात सरकार तथा अहमदाबाद म्यूनिसीपल कॉरपोरेशन की भी जिम्मेवारी तय की गयी है।’
‘वल्र्ड क्लास’ के नाम पर सरकार का क्या करने का इरादा है यह समझ में नहीं आ रहा है। पूरी दुनिया के लिये साबरमती का ‘हृदयकुंज’ एवं सेवाग्राम की ‘बापू कुटी’ वल्र्ड क्लास से भी बड़े हैं। दुनिया बापू की सादगी देखने आती है। चमक-दमक तो दुनिया में बहुत है, उसे देखने के लिये साबरमती आने की जरुरत नहीं है। आश्रम को आश्रम ही रहने देना चाहिये, इसे महलनुमा बनाने की कल्पना दिवालियेपन की निशानी लगती है। अगर सरकार को नया कुछ करना है तो किसी नई जगह करे, आश्रम के साथ छेड़छाड़ अनुचित है। खादी और ग्रामोद्योग बापू के 18 रचनात्मक कार्यों में से एक हैं। इसे यहां से हटाना आश्रम की हत्या करने जैसा होगा।
सत्ताधारी पक्ष के मंत्रियों, सांसदों द्वारा अनेकों बार गांधी जी के बारे में अपमानजनक टिप्पणियां की जाती रही हैं पर प्रधानमंत्री हमेशा इस पर मौन रहे हैं। उनके द्वारा आश्रम को तथाकथित ‘वल्र्ड क्लास’ बनाने का प्रस्ताव अनेक शंकाओं को जन्म देता है। पिछले दिनों कुछ और ऐसी ही घटनाएं घटी हैं जिससे शंकाओं को बल मिला है। कुछ महीने पूर्व इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामीन नेतन्याहू साबरमती आश्रम पधारे थे। उन्हें ‘हृदयकुंज’ में बापू के आसन पर बिठाया गया। यह आसन दुनिया के लिये एक पवित्र धरोहर है। आज तक इस आसन पर और कोई नहीं बैठा। पिछले लम्बे समय से गांधी पर हमले होते रहे हंैं। गांधी की तस्वीर को गोली मारकर लहू बहाया गया, मिठाईयां बांटी गयीं और गांधी के हत्यारे की पूजा की गयी। गांधी की हत्या को वध तथा हत्यारे को राष्ट्रभक्त कहा गया। इस पर ‘साबरमती आश्रम’ भी चुप रहा। भाजपा के मंत्री, सांसद तथा दूसरे नेता समय-समय पर गांधी के खिलाफ विष-वमन करते रहते हैं। लोकसभा चुनाव के समय भोपाल से भाजपा की उम्मीदवार साध्वी (?) प्रज्ञा सिंह ठाकुर का गांधी विरोधी बयान सब जानते हैं। आज तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी।
हरियाणा के पूर्व मंत्री अनिल विज का नाम इसमें सबसे आगे है। जब 2017 में ‘खादी ग्रामोद्योग आयोग’ की डायरी पर बापू की तस्वीर की जगह मोदी की तस्वीर छापी गयी तब श्री विज ने कहा था-‘‘महात्मा गांधी के नाम से खादी का कोई पेटेंट नहीं है। गांधी का नाम खादी से जुड़ने से खादी डूब गयी। गांधी के मुकाबले प्रधानमंत्री बेहतर ब्रांड नेम है। जिस दिन से भारतीय रुपये के नोटों पर गांधी की फोटो लगायी जा रही है उस दिन से रुपये की कीमत कम हो गयी है। धीरे-धीरे नोटों पर से गांधी की तस्वीर हटा दी जायेगी।’’ ‘साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’ गीत पर अनिल विज ने अपनी टिप्पणी करते हुए इसे शहीदों का अपमान बताया था, लेकिन ऐसा एक भी अवसर नहीं आया जब प्रधानमंत्री ने इस कृत्य की तथा इस कृत्य में शामिल लोगों एवं इस विचारधारा के खिलाफ एक शब्द भी कहा हो। इसका अर्थ है कि भाजपा का नेतृत्व उनके बयान से खुश नहीं तो सहमत जरूर है।
इन्हीं प्रधानमंत्री ने ‘वल्र्ड क्लास’ के अपने सपने को साकार करने के लिये सरदार पटेल की ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ और गांधी नगर में ‘महात्मा मंदिर’ के नाम पर क्या तमाशा किया है यह दुनिया के सामने है। अब साबरमती आश्रम की बारी है। ऐसी चर्चा है कि अगली बारी ‘गुजरात विद्यापीठ’ और ‘सेवाग्राम आश्रम’ की है। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में 17 अक्तूबर 2019 को प्रकाशित समाचार के अनुसार केन्द्र सरकार ने ‘साबरमती आश्रम’ के पुनरोद्धार तथा नये ढंग से विकसित करने के लिये 287 करोड़ रुपये की सैद्धांतिक स्वीकृति प्रदान की है। आश्चर्य है कि ‘साबरमती आश्रम’ के किसी भी ट्रस्टी ने आज तक इस तथाकथित विकास पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं करायी है। कुछ लोगों द्वारा इस संबंध में पूछे जाने पर वे सारी बातों को झूठा बताते रहे, पर इस योजना के बारे में प्रकाशित समाचारों का कभी खंडन तक नहीं किया। इसके विपरीत उनमें से कइयों ने ऐसे समाचारों पर अपनी खुशी भी व्यक्त की है।
साबरमती आश्रम संग्रहालय का उद्घाटन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के वरदहस्तों से अशोक का एक पेड़ लगा कर हुआ था। वहां इस आशय का एक बोर्ड लगा हुआ था। पिछले दिनों मोदी के आश्रम आने पर उस बोर्ड को हटा दिया गया। आश्रम की चित्र प्रदर्शनी में सरकार की विविध योजनाओं के पैनल लगाये गये हैं जो ‘साबरमती आश्रम’ के इतिहास की पहली घटना है। समझ में नहीं आ रहा है कि यह बापू का आश्रम है या कोई सरकारी आश्रम!
गुजरात में यह परम्परा थी कि राज्यपाल या मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण करने के ठीक पहले या बाद में ‘साबरमती आश्रम’ जाकर बापू को नमन करते थे, लेकिन नरेंद्र मोदी ने इस उच्च परम्परा को तोड़ दिया और उनके अनुगामी मुख्यमंत्रियों ने भी उनके इस कदम का अनुसरण किया। क्या उनसे यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे गांधी की विरासत को आगे बढ़ायेंगे? आश्रम के उद्देश्यों में बापू ने लिखा है, ‘‘जगतहित की अविरोधी देश सेवा करने की शिक्षा लेना और ऐसी देश सेवा करने का सतत प्रयत्न करना इस आश्रम के उद्देश्य हैं।’’ अब जगतहित तो दूर जनहित का विरोध करना जनहित को समाप्त करना और सरकार के सुर-में-सुर मिलाना आश्रम का उद्देश्य बनता दिख रहा है।
आश्रम दुनिया के करोड़ो लोगों की श्रद्धा एवं आस्था का स्थान है। इसे पर्यटक स्थल बनाने से इसकी गरिमा समाप्त हो जायेगी। गांधी की आत्मा यहां से निकलकर कहीं और चली जायेगी। बापू जब सेवाग्राम आये तब ‘सेवाग्राम आश्रम’ बनाने के सम्बन्ध में उन्होंने कहा था-इसके निर्माण में 100 रुपये से अधिक खर्च नहीं होना चाहिये और ऐसी किसी चीज का उपयोग नहीं होना चाहिये जो 25 किलोमीटर से अधिक दूरी से लाई गई हो। ‘साबरमती आश्रम’ को अब चमकदार ‘वल्र्ड क्लास’ में तब्दील किया जा रहा है। क्या ऐसी जगह में गांधी रहेगा? (सप्रेस)