डॉ. पुष्पेंद्र दुबे

विनोबा जयंती : 11 सितंबर

भूदान आंदोलन के प्रणेता संत विनोबा का जन्म 11 सितंबर 1895 को महाराष्ट्र के गागोदा ग्राम में हुआ। उन्होंने दस वर्ष की आयु में ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया और सन् 1916 में गृहत्याग कर बनारस पहुँच गए। महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होने के बाद वे साबरमती आश्रम चले आए। विनोबाजी की माँ रुक्मिणी देवी की मृत्यु 1918 में हुई, तब विनोबाजी श्मशान नहीं गए। उस दिन से उन्होंने ऋग्वेद पढ़ना प्रारंभ किया। इसके पूर्व उन्होंने उपनिषद, गीता, सांख्य, योगसूत्र और ब्रह्मसूत्र का अध्ययन कर लिया था। विनोबा ने लगातार पचास साल वेद का अध्ययन किया। वेद का अर्थ समझने के लिए विनोबा दो साल तक केवल दूध और भात पर रहे। उन्हें वेद के चार-साढ़े चार हजार मंत्र कंठस्थ थे। इसके बाद विनोबा ने 1319 मंत्रों का ऋग्वेद सार प्रकाशित किया। उसमें से भी जनसामान्य के लिए 83 मंत्र निकाल कर दिए। विनोबा लिखते हैं, ‘‘एंक सत् विप्रा बहुधा वदन्ति’ वेदों का सर्वोत्तम समन्वय सूत्र है। अगर यह आत्मसात् हो जाए तो सज्जनों के विचारों में कहीं कोई फर्क नहीं होगा।’’

विनोबा ने उपनिषदों का भी गहरा अध्ययन किया और उसके बारे में लिखा कि, ‘‘उपनिषद पुस्तक है ही नहीं, वह तो एक ‘प्रतिभा-दर्शन’ है। उस दर्शन को शब्दों में अंकित करने के प्रयास में शब्द लड़खड़ा जाते हैं। वे भगवद्गीता को माँ मानते थे और उपनिषदों को माँ की ’माँ’ कहते हैं। विनोबा की माँ को भगवद्गीता के अध्ययन की तीव्र लालसा हुई। तब विनोबा ने उन्हें कुछ पुस्तकें लाकर दीं, लेकिन उनकी माँ को वह सब कठिन लगीं। तब माँ ने विनोबा से कहा कि तुम ही भगवद्गीता को सरल करके लिख दो। तब विनोबा ने भगवद्गीता के अनुसृजन में मराठी में ‘गीताई’ लिखी, जिसकी अब तक चालीस लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं और अनेक लोगों को वह कंठस्थ है। जब विनोबाजी 1932 में धुलिया जेल में थे, तब वहाँ के कैदियों ने भगवद्गीता पर प्रवचन करने का अनुरोध किया। विनोबाजी ने उसे स्वीकार कर भगवद्गीता पर प्रवचन देना आरंभ किया। इस दौरान साने गुरुजी ने उसे लिपिबद्ध कर लिया, जो बाद में ‘गीता-प्रवचन’ नाम से प्रकाषित हुआ। आज भारत सहित दुनिया की अनेक भाषाओं में ‘गीता-प्रवचन’ का अनुवाद हो चुका है।

‘गीताई-चिंतनिका’ विनोबा के गहन चिंतन की परिचायक है। इसी में से विनोबा ने ‘स्थितप्रज्ञ दर्शन’ और ‘साम्य-सूत्र’ लिखा। वे कहते हैं कि उनका सारा जीवन गीता की बुनियाद पर खड़ा है। गीता का नाम लेते ही स्फूर्ति का संचार होता है, भावनाओं की प्रचंड बाढ़ आती है। भगवद्गीता के तुलनात्मक अध्ययन के लिए विनोबा को भागवत देखना अनिवार्य लगा। उड़ीसा की भूदान-यात्रा में उड़िया भाषा सीखने के लिए जगन्नाथदास द्वारा रचित भागवत का अध्ययन किया। उस अध्ययन में से ‘भागवत-धर्म-सार’ पुस्तक लिखी।

विनोबा जी अपने ऊपर शंकराचार्य का विचार-ऋण मानते हैं। शंकराचार्य के दर्शन को समझने के लिए उन्होंने ‘गुरुबोध सार’ पुस्तक लिखी। गुरुबोध का स्वरूप संपूर्ण जीवन को व्याप्त करने वाला है। उन्हें शांकर दर्शन में कर्मयोग, चित्त शुद्धि की साधना, भक्ति, ध्यान वैराग्य, गुण-विकास, श्रवण-मनन इत्यादि सब समाविष्ट दिखाई देते हैं। विनोबा ने ‘मनुस्मृति’ का आधुनिक जमाने के साथ तालमेल बैठाने के लिए वचनों का संग्रह किया, जिसका प्रकाशन 9 जुलाई 1945 को ‘मनुशासनम्’ पुस्तक के रूप में हुआ। व्यक्तिगत चित्त शुद्धि से लेकर पूरी समाज-व्यवस्था तक कई चीजें हैं, जो आज भी हमें मार्गदर्शन देती हैं।

जब भूदान यात्रा के सिलसिले में विनोबाजी लखनऊ पहुंचे उस दिन बुद्ध जयंती थी। उस दिन के भाषण में उनके मुख से सहज ही निकल पड़ा कि ‘भूदान यज्ञ के रूप में वही धर्मचक्र-प्रवर्तन का कार्य किया जा रहा है, जिसको गौतम बुद्ध ने चलाया था।’ सारनाथ में विनोबाजी को बौद्ध भिक्षुओं ने ‘धम्मपद’ पुस्तक भेंट की। सन् 1923 में विनोबा जी ने अपने उपनिषदों का अध्ययन’ लेख की समाप्ति ‘धम्मदपद’ के वचन से की थी। वे लिखते हैं इधर ज्ञानदेव, कबीर, नानक आदि संतों की सिखावन,  उधर उपनिशद और गीता की सिखावन, दोनों के बीच धम्मपद मुझे एक जोड़ने वाली कड़ी-सा मालूम हुआ। उस दृष्टि से धम्मपद का सूक्ष्म अध्ययन करने से वचनों का एक व्यवस्थित क्रम स्थिर हुआ। तब उन्होंने ‘धम्मपद-नवसंहिता’ को पुस्तकाकार के रूप में प्रकाशित किया। विनोबाजी की प्रेरणा से जैनधर्म की पुस्तक ‘सम्मणसुत्तं’ ने आकार लिया। विनोबा की सन्निधि में मुनि, आचार्य, श्रावक और अन्य विद्वानों ने संगीति आयोजित की। बार-बार चर्चा करने के बाद श्रमण सूक्तम बना। इसमें 756 गाथाओं को सम्मिलित किया गया हजार-पंद्रह सौ साल में जो कार्य नहीं हुआ, उसके निमित्त विनोबाजी बने। इससे उन्हें अत्यंत  समाधान हुआ।

विनोबा जी का मानना है कि ईसा कश्‍मीर और तिब्बत की ओर आये थे। उन्होंने वेदांत और बुद्ध के विचारों का उत्तम ज्ञान हासिल किया था। विनोबा ने ईसाई धार्मिक ग्रंथ बाइबिल के न्यू टेस्टामेंट में से वचनों को संग्रहित कर ‘ख्रिस्तधर्म-सार’ दिया। इसमें सम्मिलित 50 अध्यायों को विनोबाजी ने संस्कृत सूत्रों में निबद्ध किया है। जब यह पुस्तक श्री पोप के पास पहुंची तब उनकी ओर से ‘वॉर्म एप्रिसिएशन’ का संदेश आया।

विनोबा जी कृत विविध धर्मग्रंथों और संत साहित्य के सार-ग्रंथों में ‘कुरान-सार’ का विशेष महत्व है। देश-विदेश  के असंख्य मुस्लिमों ने उसे प्रेम से स्वीकार किया है। इस सार के बारे में मौलाना मूसदी ने कहा कि पचीस मौलवी दस साल बैठकर और दसों लाख खर्च करके भी जो काम नहीं कर पाते ऐसा यह काम हुआ है। जब विनोबा जी कुरान का अध्ययन कर रहे थे, जब यह बात गांधीजी को पता चली। तो उन्होंने कहा कि हममें से किसी को तो यह करना ही चाहिए था। विनोबा कर रहा है, यह आनंद का विषय है। कुरान के अध्ययन के बारे में विनोबा लिखते हैं उन्होंने सन् 1939 में कुरान शरीफ का अंगे्रजी तर्जुमा देखा था, लेकिन उससे संतोष नहीं हुआ। विनोबाजी ने अरबी भाषा सीखकर पूरा कुरान सात बार पढ़ा। कम-से-कम 20 साल उसका अध्ययन किया। जेल में रहते हुए ‘नबियों के किस्से’ किताब पर से अरबी लिपि पढ़ी। जुम्मे के दिन रेडियो पर बीस मिनट कुरान चलती थी, उसे सुनकर उच्चारण पकड़े।

विनोबा विविध धर्मों के अध्ययन के बारे में अपने अनुभव के बारे में लिखते हैं, ‘‘मैंने जितनी श्रद्धा से हिंदू-धर्मग्रंथों का अध्ययन किया, उतनी ही श्रद्धा से कुरान का भी किया। गीता पाठ करते समय मेरी आँखों में अश्रु भर जाते हैं, वैसे ही कुरान और बाइबिल का पाठ करते समय भी होता है। क्योंकि सबमें मूल तत्व का ही वर्णन है।

विनोबाजी 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह में जेल में बंद थे तब उन्होंने पहली बार सिख  धर्म की पुस्तक ‘जपुजी’ पहली बार पढ़ी। नामदेव के मराठी भजनों का संग्रह करने के लिए ‘गुरुग्रंथ साहब’ का अध्ययन किया। इसके बाद पंजाब यात्रा करते हुए फिर से जपुजी का अध्ययन किया और उस धर्म का सार प्रस्तुत किया। इनके अलावा विनोबा ने गोस्वामी तुलसीदास, शंकरदेव, माधवदेव, कबीर, मीराबाई, सूरदास, सुंदरदास, रैदास, नरसिंह मेहता, चैतन्य महाप्रभु, जगन्नाथदास, संत ज्ञानेष्वर, संत एकनाथ, तुकाराम, रामदास, मोरोपंत, दक्षिण के संत आंडाल, अप्पर स्वामी, माणिक्कवाचकर, तिरुवल्लुवर, नम्मालवार, कंबन, कूरत्तालवार, रामलिंग स्वामी, सुब्रमण्य भारती, पुरंदरदास, बसवेष्वर, त्यागराज, पोतन्ना आदि सत्साहित्य का गहन अध्ययन कर नए अर्थ प्रस्तुत किए।

विनोबा जी को समन्वयाचार्य कहा जाता है। उनका सारा साहित्य इस बात का साक्षी है। आज के युग का सर्वोत्तम तरीका सार ग्रहण करना है। विनोबा जी ने दीर्घकाल तक अध्ययन, मनन, चिंतन, प्रयोग करके दुनिया के भिन्न-भिन्न धर्मग्रंथों का जो सार निकाला है वह इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है। वे अपने बारे में स्वयं कहते हैं, ‘‘मेरे जीवन के सभी काम दिलों को जोड़ने के एकमात्र उद्देश्‍य से प्रेरित हैं।’’(सप्रेस)     

डॉ.पुष्पेंद्र दुबे महाराजा रणजीतसिंह कॉलेज, इन्दौर में हिन्दी के विभागाध्यक्ष हैं। 

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