गांधी की अस्थियों को देश की जिन 12 नदियों के तटों पर विसर्जित किया गया था, गंगा किनारे का बनारस उनमें एक था। देशभर में ये स्थान राजघाट कहलाते हैं। अब उसी बनारस उर्फ वाराणसी के उसी राजघाट पर विनोबा, जेपी जैसी विभूतियों द्वारा स्थापित ‘सर्व सेवा संघ प्रकाशन’ और ‘गांधी विद्या संस्थान’ को तबाह करने केन्द्र और उत्तरप्रदेश राज्य की सरकारें हुलफुला रही हैं। क्या हैं, इसकी वजहें? प्रस्तुत है, इसीका खुलासा करता रमाकांत नाथ का लेख।
फिर से हमला हुआ है और इस बार निशाने पर हैं, ‘सर्व सेवा संघ प्रकाशन’ और ‘गांधी विद्या संस्थान।’ उत्तरप्रदेश के वाराणसी स्थित ये दोनों गांधीवादी संस्थाएं आखिरकार केंद्र और राज्य सरकारों की असहिष्णुता का शिकार हो ही गईं। 1999 से शुरु हुई गांधी दर्शन को ख़त्म करने की कोशिश 22 जुलाई ’23 को गांधी-विनोबा-जयप्रकाश के दर्शन की हत्या के साथ पूरी हो गई। ‘सर्व सेवा संघ प्रकाशन’ की लगभग 5 लाख किताबें और अन्य फर्नीचर सड़कों पर फेंक दिये गये। वहां कई वर्षों से रह रहे गांधी के अनुयायियों, स्वतंत्रता सेनानियों को विस्थापित किया गया। ‘सर्व सेवा संघ प्रकाशन’ और ‘गांधी विद्या संस्थान’ समेत 4 संग्रहालयों और करीब 84 आवासों पर यह हमला दरअसल एक सुनियोजित साजिश है।
गौरतलब है कि 30 जनवरी 1948 को गांधीजी की मृत्यु के बाद, ‘सर्वोदय’ दर्शन का प्रचार करने के लिए ‘सर्व सेवा संघ’ यानी ‘अखिल भारतीय सर्वोदय मंडल’ नामक संगठन का गठन किया गया था। राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के संरक्षण में बनी यह संस्था पूरे देश में काम कर रही है। 1960 में विनोबा भाबे की सलाह पर राजघाट, वाराणसी में ही ‘सर्व सेवा संघ’ का प्रकाशन कार्य प्रारम्भ किया गया। इसी तरह, जयप्रकाश नारायण, नबकृष्ण चौधरी और आचार्य नरेंद्र देव ने वहां ‘गांधी विद्या संस्थान’ की स्थापना की थी।
असल में 1999 से ही भाजपा सरकार ने गांधी दर्शन को खत्म करने की कोशिश की थी। उस समय गांधी-बिनोबा-जयप्रकाश विचार की लगभग 10 पत्रिकाओं का प्रकाशन-लाइसेंस केंद्र सरकार ने रद्द कर दिया था। देश में विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित सैकड़ों गांधीवादी पत्रिकाओं में से 10 पत्रिकाओं के लाइसेंस रद्द करने के पीछे की योजना इन पत्रिकाओं के माध्यम से प्रचारित गांधीवादी विचारधारा को नुकसान पहुंचाना था। ओडिशा से प्रकाशित होने वाली ओडिया भाषा की ‘सर्वोदय’ और अंग्रेजी भाषा की ‘विजिल’ पत्रिकाओं के लाइसेंस भी रद्द कर दिए गए।
मैं तब ‘सर्वोदय’ पत्रिका के संपादक और ‘विजिल’ पत्रिका के प्रबंध संपादक के रूप में कार्यरत था। इन दोनों पत्रिकाओं की ओर से केंद्र सरकार के खिलाफ ओडिशा हाईकोर्ट में मनमोहन चौधरी ने केस दायर किया गया था और उनकी मृत्यु के बाद मुझे उस केस में पक्षकार बनना पड़ा। हमारी ओर से वरिष्ठ वकील समरेश्वर मोहंती केस लड़ रहे थे। हाईकोर्ट का अंतरिम फैसला हमारे पक्ष में गया। कोर्ट ने केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए रद्दीकरण आदेश पर रोक लगा दी।
इसके बाद केंद्र सरकार ने उत्तरप्रदेश में ‘गांधी विद्या संस्थान’ को बंद करने की योजना बनाई। केंद्र के आदेश पर उत्तरप्रदेश की भाजपा सरकार ने ‘गांधी विद्या संस्थान’ को मिलने वाला अनुदान रोक दिया था। ‘गांधी विद्या संस्थान,’ जो गांधीवादी विचारों का एक अनुसंधान केंद्र था, को बंद करने और गांधी के दर्शन को दफन करने की योजना बनाई गई, लेकिन केंद्र सरकार की यह योजना भी तब सफल नहीं हो सकी। उत्तरप्रदेश में भाजपा के बाद सोशलिस्ट-पार्टी की सरकार बनी, उसने तुरंत ‘गांधी विद्या संस्थान’ को पिछले सभी बकाया अनुदानों का भुगतान कर दिया और अनुदान पहले की तरह जारी रखा।
विफल होने के बाद, केंद्र सरकार ने वाराणसी में ‘गांधी विद्या संस्थान’ सहित ‘सर्व सेवा संघ प्रकाशन’ को बंद करने की योजना बनाई। उत्तर रेलवे द्वारा लगभग 8 एकड़ के क्षेत्र को खाली करने के लिए एक नोटिस जारी किया गया, लेकिन 2004 में बीजेपी सरकार के पतन के बाद यूपीए सरकार ने इस नोटिस को नजरअंदाज कर दिया। बाद में भाजपा सरकार के नोटिस को केंद्र सरकार, उत्तरप्रदेश सरकार और रेलवे ने दोबारा उजागर करके भाजपा की पिछली योजना को सफलतापूर्वक लागू कर दिया।
‘सर्व सेवा संघ प्रकाशन’ ने रेलवे के नोटिस के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और कानूनी सहारा लिया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी और वाराणसी जिला प्रशासन ने रिपोर्ट दी कि जिस जमीन पर ‘गांधी विद्या संस्थान,’ ‘सर्व सेवा संघ प्रकाशन’ काम करता है वह उत्तर रेलवे की है। इसके खिलाफ ‘गांधी विद्या संस्थान,’ ‘सर्व सेवा संघ प्रकाशन’ सुप्रीम कोर्ट गये, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की दलील उत्तर रेलवे के पक्ष में गई और जमीन से संबंधित सभी दस्तावेजों को अस्वीकार्य दिखाए जाने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने मामले को खारिज कर दिया।
यहां ‘सर्व सेवा संघ प्रकाशन’ और ‘गांधी विद्या संस्थान’ के साथ-साथ ‘सर्वोदय जगत’ पत्रिका के कार्यालय, आचार्य विनोबा हाउस, जया-प्रभा पुस्तकालय आदि भी हैं। जयप्रकाश नारायण ने अपनी पत्नी प्रभावती देवी के साथ यहां लंबा समय बिताया था। कई गांधीवादियों ने अपना बचपन और युवावस्था यहीं बिताई। ‘वैकल्पिक तकनीक’ के विचारक ईएफ शूमाकर ने अपनी प्रसिद्ध किताब ‘स्मॉल इज ब्यूटीफुल’ यही बैठकर लिखी। आरोप है कि सरकार जमीन पर कब्जाकर उसे कॉरपोरेट माफिया को सौंपने की योजना बना रही है। इस संबंध में ‘समाजवादी जन परिषद’ से जुडे अफलातून देसाई कहते हैं, ‘प्रशासन मनमाने ढंग से काम कर रहा है। अगर कार्रवाई हुई तो मैं देशभर में सत्याग्रह करूंगा।’
इसी तरह जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर आनंदकुमार ने एक वीडियो जारी कर कहा कि इसे भारत के इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना के तौर पर याद किया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘सर्व सेवा संघ’ और ‘गांधी विद्या संस्थान’ के प्रकाशनों को जब्त करने के लिए पुलिस अपने दल-बल के साथ पहुंची है और बलपूर्वक इस महत्वपूर्ण संस्थान को सरकार के हाथों में लेने की कोशिश कर रही है। यह गांधी और जेपी की विरासत पर सीधा हमला है।’
‘सर्व सेवा संघ प्रकाशन’ गांधी साहित्य प्रचार पर काम कर रहा है, जबकि ‘गांधी विद्या संस्थान’ गांधी दर्शन पर शोध कर रहा है। इन दोनों संस्थाओं को ज़रूरत के समय ख़त्म करने की सत्ताधारी पार्टी की कोशिश बेहद चिंताजनक है। यदि काशी रेलवे स्टेशन के विस्तार के लिए वाराणसी में वह स्थान आवश्यक है तो ‘सर्व सेवा संघ प्रकाशन’ और ‘गांधी विद्या संस्थान’ के लिए अन्यत्र ऐसी ही व्यवस्था कर उन दोनों संस्थानों को वहां से हटाया जा सकता था, लेकिन वैसा नहीं हुआ।
आखिर 2003 में फेल हुई केंद्र सरकार की योजना अब कैसे सफल हुई? इस बार केंद्र सरकार ने ‘सर्व सेवा संघ प्रकाशन’ और ‘गांधी विद्या संस्थान’ के साथ गांधी दर्शन को दफन करने का सही समय ढूंढ लिया है। ‘सर्व सेवा संघ प्रकाशन’ और ‘गांधी विद्या संस्थान’ जैसी पवित्र संस्थाओं के पतन के लिए अंततः यही सत्ता और उसके पथभ्रष्ट लोग जिम्मेदार हैं। (सप्रेस)
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