तुषार बाबू अपने व्यक्तिगत जीवन में गांधी विचार के सच्चे अनुयाई थे। अपने एक रिश्तेदार के घर भोज में दलितों के लिए अलग पंगत की व्यवस्था देख उन्होंने विरोध किया और बात न मानने पर वहां से सपरिवार लौट आये थे। देश दुनिया में गांधीवादी तो लगातार बढ़ रहे हैं किन्तु गांधी विचार को व्यक्तिगत जीवन में उतारने वाले लोग बहुत कम हैं। इन लोगों के बीच तुषार बाबू जैसे लोग दुर्लभ हैं। तुषार बाबू हमेशा याद आएंगे। पिछले दिनों हृदयगति रूकने से उनका आकस्मिक निधन हो गया था।
डॉ. विश्वजीत
मैं जाजपुर में था। खबर मिली कि भद्रक उपखण्ड गरदपुर और दुर्गापुर के लोग लाठी लेकर एक दूसरे का आमना-सामना करने निकले हैं। तुरन्त एस पी को फोन किया लेकिन उन्होंने मेरी विश्वास नहीं किया। मैंने जवाब दिया कि आप कया करेंगे मैं नहीं जानता किंतु हम दंगा या हिंसा नहीं होने देंगे। मैने तुषार बाबू को फोन लगाया और वो अपने सहयोगी लक्ष्मीकान्त बाबू को लेकर तुरंत घटनास्थल पहुंच गए। दोनों पक्षों को अलग कर हिन्दू समुदाय के लोगों के साथ लक्ष्मीकान्त बाबू को छोड़कर मुसलमान भाइयों के मोहल्ले में बैठे हुए थे तभी पुलिस दल आ गया। तुषार बाबू का साहस और साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए निष्ठा देखकर गांधी शांति प्रतिष्ठान के माध्यम से इस साम्प्रदायिक अशांति का समाधान करने का प्रस्ताव पुलिस ने रखा। और तब गांधी ओड़िशा बालाश्रम में एक सभा आयोजित करके उस तनावपूर्ण स्थिति का समाधान हुआ था।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने साम्प्रदायिकता का आग बुझाते हुए खुद इस आग में अपना जीवन न्योछावर कर दिया। इस कारण से हम मानते है कि जो गांधी के अनुगामी हैं, उनका नैतिक दायित्व है कि वे गांधीजी जो काम छोड़ गए हैं, उस साम्प्रदायिकता के खिलाफ संघर्ष करें। तुषार बाबू अपने क्षेत्र मे इसके लिए सदा प्रस्तुत रहते थे। केन्द्र सरकार जिस समय एन आर सी, सी ए ए कानून लाई उस समय भद्रक के अल्पसंख्यकों को साहस देने में वो सबसे आगे रहे। सन् 2017 में उनके घर के पास घटी साम्प्रदायिक विद्वेष की एक घटना का समाधान व्यक्तिगत रूप से करने में वे असफल रहे। इस घटना ने उन्हें साम्प्रदायिक सद्भाव बनाने के लिए संगठन गढ़ने की प्रेरणा दी। उसी समय उत्कल गांधी स्मारक निधि और राष्ट्रीय युवा संगठन के साथी कर्फ्यू के समय गांधी ओडीशा बालाश्रम में रुककर शांति स्थापित करने की कोशिश की गई।
गांधी ओड़िशा बालाश्रम में आयोजित सभा में उनके साथ पहली मुलाकात हुई थी। इस मुलाकात के बाद वे हमारे साथ जुड़ गए। आगे ढाई महीने में भद्रक की हर बस्ती में शांति सद्भावना समिति गठन के लिए सभाएं आयोजित की गईं। बाजीराउत छात्रावास के छात्रों ने नुक्कड़ नाटक कीं। अपनी आजीविका को अनदेखा कर वे अनेक कार्यक्रमों में शामिल थे। मोहम्मद फारुख, अशोक कुमार दास,नासिर बक्स,झरना पट्टनायक, सच्चिदानंद महान्ति और कितने ही लोग शांति के सिपाही बनकर निकले। इसी समय इस क्षेत्र में विशिष्ट गांधीवादी सुब्बाराव, दीपक मालवीय, नीरज जैन, विवेकानंद मथाने, प्रफुल्ल सामंतराय, शैलज रवि, प्रह्लाद सिंह और ड़ा. धनदाकांत मिश्र जैसे लोग शांति प्रतिष्ठान के लिए यहां आए। श्रीमती कृष्णा महान्ति बहुत समय तक यहां रहकर सबको शांति के लिए प्रेरित करती रही । गुजरात दंगों के समय अपनी नौकरी से इस्तीफा देने वाले वरिष्ठ आइएएस हर्ष मंदर का कारवां ए मोहब्बत अभियान या राजीव गांधी फाउंडेशन के विजय महाजनजी शांति केन्द्र की स्थापना करने भद्रक आये या फिर सुजाताजी भागलपुर से यहाँ आये, सभी कामों में तुषार बाबू को ही सबसे पहले ढूंढा जाता है ।
भद्रक में शांति स्थापना के बाद हम भद्रक छोड़कर आने के बाद एक दिन तुषार बाबू का फोन आया। भारत में गांधीजी ब्रिटिश एजेंट थे, ऐसी चर्चा एक सभा में हो रही थी। तुषार बाबू ने इस बात का प्रमाण मांगकर सभा को आधे में रोक दी। ऐसे संवेदनशील स्थान पर इस तरह की चर्चा साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का काम करेंगी ऐसा उन्होंने कहा। मैंने कहा इसका समाधान क्या है तो उन्होंने कहा कि गांधी विचार के संगठन गढ़ने की आवश्यकता है जो गांधी के विचार और दर्शन के अनुसार काम करेगा। उनकी इच्छा देखकर नई दिल्ली में गांधी शांति प्रतिष्ठान के साथ बातचीत की गई। गांधी शांति प्रतिष्ठान के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुमार प्रशांत और प्रतिष्ठान की शाखा समन्वयक रूपल अजबे ने पहुंच कर भद्रक में यह शाखा आरंभ की थी। इस दौरान तुषार बाबू ने कुमार प्रशांत जी की गांधी व्याख्यानमाला का आयोजन किया।
तुषार बाबू केवल भद्रक ही नहीं बल्कि ओड़िशा के नामचीन वकील थे। गांधी शांति प्रतिष्ठान भद्रक उन्होंने अपने हाथ में बनाया था, किन्तु किसी पद पदवी का लोभ उन्हें नहीं था। वह खुद किसी पद पर रहने की बात नहीं करते थे, मेरी जिद के कारण ही उन्होंने सेक्रेटरी का पद ग्रहण किया। उनके नेतृत्व में यह कुछ बर्षों में जो काम हुए वे भद्रक जिले के इतिहास में उल्लिखित होंगे। गांधीजी के भद्रक प्रवास के दौरान गांधीजी ने जिस मैदान में सभा की थी उस गांधी-मैदान में कुछ निहित स्वार्थी तत्वों के राम मंदिर निर्माण के प्रयास का उन्होंने विरोध किया। गांधीजी के भद्रक प्रवास की शतवार्षिकी आयोजन तुषार बाबू के नेतृत्व में किया गया था। उनके अथक प्रयास से ही एक विशाल पदयात्रा और एक भव्य सभा आयोजित हो पाई थी।
तुषार बाबू ने साम्प्रदायिक सद्भाव बनाने के साथ लोगों को स्वावलंबी बनाने के लिए भी अनेक प्रयास किये, ताकि लोग सरकार के आगे हाथ न फैलाएं और स्वतंत्र विचार और स्वतंत्र चिंतन के साथ आगे बढ़ें। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए तुषार बाबू गांधीजी के सेवाग्राम आश्रम जाकर खादी ग्रामोद्योग का संचालन के विशेष सूत्र लेकर आए थे। उनकी इच्छा थी कि सेवाग्राम आश्रम से प्रेरणा लेकर अपनी धरती में एक खादी केन्द्र स्थापित करें और भद्रक के लोगों को स्वावलंबी बनाएं। कताई बुनाई के लिए यंत्र खरीदने के लिए उन्होंने पैसे संग्रह करना आरम्भ कर दिया था।
युवा शक्ति के गांधी विचार के साथ जुड़ने के लिए उन्होंने प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा संगठन का युवा शिविर आयोजित करते रहे, जिसमें भद्रक जिले के विभिन्न कालेजों के छात्रों ने भाग लिया। राष्ट्रीय युवा संगठन की इकाई गठन कर वे गांधी के विचार से युक्त युवा जोड़ना चाहते थे। गांधी शांति प्रतिष्ठान की भद्रक केंद्र सबसे नई है तो भी यह शाखा इतनी सक्रिय और व्यापक विचार आधारित काम करती रही कि चलित राष्ट्रीय सम्मेलन में दिल्ली में इस केंद्र को श्रेष्ठ केंद्र का सम्मान मिला था।
हमारे सम्बन्ध इतने प्रगाढ़ थे कि परिवार के सदस्यों के विषय में वे मुझसे बात करते थे। बेटी और बेटे की उच्च शिक्षा सम्पन्न होने पर वे बेटी के लिए योग्य वर और बेटे के लिए आजीविका के के विषय में चिंतित थे।
तुषार बाबू अपने व्यक्तिगत जीवन में गांधी विचार के सच्चे अनुयाई थे। अपने एक रिश्तेदार के घर भोज में दलितों के लिए अलग पंगत की व्यवस्था देख उन्होंने विरोध किया और बात न मानने पर वहां से सपरिवार लौट आये थे । देश दुनियां में गांधीवादी तो लगातार बढ़ रहे हैं किन्तु गांधी विचार को व्यक्तिगत जीवन में उतारने वाले लोग बहुत कम हैं। इन लोगों के बीच तुषार बाबू जैसे लोग दुर्लभ हैं। तुषार बाबू हमेशा याद आएंगे।(सप्रेस)
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