हम चट्टानों की तरह मौन हो गये है, जहाँ सत्य की आवाज लौटकर नहीं आती

इंदौर, 16 फरवरी। देश के वरिष्ठ पत्रकार व चिंतक श्रवण गर्ग ने कहा कि अब हमने बोलना बंद कर दिया है, चुप रहना अपनी आदत बना चुके है। तीर्थस्थलों पर अब पालकी और बैसाखियां बढ़ती जा रही है। वे नहीं चाहते है कि लोग खड़े हो सकें। प्रजातंत्र खत्म होने पर क्या व्यवस्था होगी, इस पर लोग चर्चा ही नहीं करते। अब हम चट्टानों की तरह मौन हो गये है, जहाँ सत्य की आवाज लौटकर नहीं आती है।

श्री गर्ग आज श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इंदौर के शिवाजी सभागार में ‘निमाड़ के गाँधी’ नाम से जाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राष्ट्रभक्त श्री काशिनाथ त्रिवेदी की स्मृति में आयोजित व्याख्यान में बोल रहे थे। व्‍याख्‍यान का विषय था – ‘‘पचास साल का सफर और बदलते हुए सत्य’’। उन्होंने दादा को बड़े आदर से याद करते हुए उनके सिद्धांतों, विचारों के साथ कुछ पत्र भी पढ़ें। जो उनके पास धरोहर के रुप में अभी भी है।

उन्होंने युको पाइंट के माध्यम से उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे कि वहां पर बहुत कम लोग साहस कर पाते है आवाज देने की, शेष सभी तमाशबीन होते है, वहीं स्थिति देश की है। श्री गर्ग ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि हमारे शहर का वैचारिक गुल्लक खाली हो गया है। हम उन्हें भूल चुके है, जो हमारी धरोहर रहे, अब यह शहर पोहा और जलेबी का हो गया है। व्‍याख्‍यान के समापन पर उन्होंने आग्रह किया कि लोगों को समय पर बोलना चाहिए, मौन रहना खतरनाक होता है।

अतिथि का स्वागत काशिनाथ त्रिवेदी के वरिष्‍ठ पुत्र एवं कस्‍तूरबा गांधी राष्‍ट्रीय स्‍मारक ट्रस्‍ट के अध्‍यक्ष डॉ. करुणाकर त्रिवेदी एवं अरविंद जवलेकर ने किया। कार्यक्रम का संचालन समाजवादी चिंतक एवं अभिभाषक अनिल त्रिवेदी ने किया। अंत में आभार कबीर जन विकास समूह के डॉ. सुरेश पटेल ने किया। कार्यक्रम में शहर के प्रबुद्धजन, साहित्यकार एवं सुधीजन उपस्थित थे।   

दादा काशीनाथ त्रिवेदी के बारे में

दादा काशीनाथ त्रिवेदी का जन्म 16 फरवरी 1906 में धार जिले में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा बड़वानी में पूरी हुई। इसके बाद शिक्षा के लिए उज्जैन और इंदौर गए। 1925 में गांधीजी के संपर्क में आने के बाद 1929 में साबरमती आश्रम चले गए। यहां 1931 तक हिंदी की नवजीवन पत्रिका का साहित्यिक संपादन किया। 1935 में वर्धा चले गए और हिंदी शिक्षक, महिला आश्रम की सचिव और प्रधानाचार्य थीं। नई तालीम के काम में लग गए। आपके द्वारा पट्टाभिसीतारमैया के दौरे के समय आपने ही दुभाषिये की भूमिका निभाई। त्रिवेदी ने ही धर्मपत्नी कलावती को भी स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद कंधे से कंधा मिलाकर स्वाधीनता आंदोलन में जीवन पर्यंत सक्रिय रहे।25 माह की कैद भोगी। बड़वानी रियासत में जनता के अधिकार और उत्तरदायी सरकार के लिए आन्दोलन किया। आजादी के बाद हुए दंगों के बाद साम्प्रदायिक सौहार्द्र स्थापित करने के लिए सक्रिय रूप से काम किया। मध्य भारत के पहले शिक्षा मंत्री नियुक्त किए गए।

70 वर्षों तक गांधीजी के रचनात्मक कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार में स्वयं को समर्पित कर दिया। मध्य प्रदेश में गांधीवादी और सर्वोदय कार्यकर्ताओं और संस्थानों की एक पूरी पीढ़ी को निर्देशित और प्रेरित किया। मध्य प्रदेश के धार जिले के आदिवासी क्षेत्र के एक गाँव तवलाई में ग्राम भारती आश्रम की स्थापना की।

गुजराती से हिंदी में 125 से अधिक पुस्तकों का अनुवाद करके गांधी दर्शन, सर्वोदय, बाल शिक्षा और सामाजिक विकास के बारे में हिंदी साहित्य को जोड़ने और समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। गिजुभाई की गुजराती किताबों का हिंदी में अनुवाद किया। नर्मदा बांध की ऊंचाई बढ़ाने के विरोध में पहला आंदोलन शुरू किया।

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