आज पांचवें दिन किम में पहुंची सेवाग्राम साबरमती संदेश यात्रा
22 अक्टूबर। गांधीजनों ने साबरमती आश्रम के स्वरूप में बदलाव की कोशिश के विरोध में वर्धा (महाराष्ट्र) के सेवाग्राम आश्रम से गुजरात के साबरमती आश्रम तक चल रही ‘सेवाग्राम साबरमती संदेश यात्रा’ आज पांचवें दिन किम ( गुजरात) पहुंची। एक सभा को संबोधित करते हुए संदेश यात्रा के संयोजक संजय सिंह ने कहा कि महात्मा गांधी के विचारों के साथ खिलवाड़ की बात पहली बार नहीं हो रही है। इससे पहले भी कई बार किया गया है। अभी हाल ही में अब वीर सावरकर को महात्मा गांधी के साथ का रास्ता सुझा रहे है। उसी क्रम में साबरमती आश्रम के ऊपर भी हमला कर रहे है। गाँधीजन यह कहते है कि गाँधीजी के आश्रमों में कुछ भी मत कीजिए, इस विरासत इसी तरह रहने दीजिए। हम गांधी के आश्रम को उजाड़ने नही देंगे।
यात्रा संयोजक संजय सिंह ने कहा कि सेवाग्राम से साबरमती संदेश यात्रा को लेकर हम गुजरात की धरती में पहुँच गए है। दुनिया में जिन्हें भी आज़ादी से जीना होगा उन्हें आश्रम की जरूरत रहेगी। जिस प्रकार नदी को प्रभाव के साथ बहना होता है, उसी प्रकार हमें देश में शिक्षा का अधिकार चाहिए, भूख मिटाने के अधिकार के लिए, पर्यावरण बचाने के लिए आज गाँधीजी की जरूरत है।
किम एजुकेशन सोसायटी व्दारा आयोजित इस सभा की शुरुआत राष्ट्रीय युवा संगठन के साथियों ने ‘रुके न जो झुके न दबे न जो मिटे न जो हम वो इंकलाब है जुर्म का जवाब है हर शाहिद का हर गरीब का हमी तो ख्वाब है के’ गीत से हुई। संस्थान के उत्तम भाई द्वारा यात्रियों का स्वागत किया गया। आपने कहा कि सरकार गांधी जी के विरासत को बनाने की नहीं खत्म करने का काम कर रही है, जिसके विरोध में गांधीजन संवाद करने के लिए निकले है। गांधी के आश्रम की सादगी बनी रहनी चाहिए। गांधी के जीवन के अनुरूप हमें उनकी विरासत के लिए काम करना चाहिए।
सरकार के पास अपना कोई इतिहास नहीं है
सभा को संबोधित करते हुए गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने कहा कि हवा ऐसी बनी है कि देश में डर छाया हुआ है। ऐसा माहौल बनाया गया है। हम थोड़ा चुप थे कि सरकार कुछ काम कर ले, लेकिन सरकार देश बनाने के जगह अपने को बनाने में लग गई है। देश में इतना कुछ देखने को है, लेकिन लोग फिर भी गाँधीजी के आश्रम आते है, क्योंकि वहां लोगों को सुकून मिलता है, शांति मिलती है। दिल्ली में देखिए न हमारी संसद के सामने एक बड़ी बिल्डिंग खड़ी कर दी गई है, इंडिया गेट में जहां लोग मिलने जाते है तो वो जगह ही खत्म कर दी गई है। यह इसलिए कि वो स्मृतियों को ही बिगड़ना चाह रहे है क्योंकि इनके पास अपना कोई इतिहास नहीं है तो इतिहास को विकृत करके इतिहास बनाने की कोशिश कर रहे है।
उन्होंने कहा कि इस कोशिश में ही साबरमती आश्रम को भी वह भव्य बनाने में है । गाँधीजी के शरीर को इन्होंने मारा है, लेकिन वह मरा नहीं है, तो अब स्मृतियों को मारने की कोशिश हो रही। ये यह नहीं जानते कि दुनिया में जब तक बेहतर इंसान बनने की इच्छा बची रहेगी तब तक गांधी नहीं मरेगा।
सरकार क्यों साबरमती स्मारक पर प्रहार करना चाहती है?
सर्व सेवा संघ की आशा बोथरा ने अपनी बात करते हुए कहा कि साबरमती आश्रम की गरिमा को लेकर हम चिंतित है कि सरकार क्यों इसमें पैसे लगाना चाहती है। यह पैसे गांधी के आश्रम में लगाने से बेहतर है गांधी के कामों में लगायें तो ज्यादा बेहतर होगा। हम गांधी और सरदार पटेल की धरती में है और उनको याद करते हुए उनकी रास्तों में चल कर उनके स्मृतियों को बचाने का काम करेंगे।
1200 करोड़ की राशि दवाई और शिक्षा पर खर्च क्यों नहीं करती है सरकार
जल पुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि सरकार बीमार हो सकती है, लेकिन हम बीमार नहीं है। यह 1200 करोड़ रूपये की राशि में कितने हॉस्पिटल, स्कूल खोले जा सकते है, लेकिन सरकार को दवाई और पढ़ाई की चिंता नहीं है। उनको अपना इतिहास लिखने की चिंता है, लेकिन उन्हें नहीं पता है कि इतिहास बनाने होते है। किसी के इतिहास में परत चढ़ाने से इतिहास नहीं बन जाते।
जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा कि, रास्ता बनाना, बदलना, गलत के प्रति आवाज उठाना लोकतंत्र की पहचान है। इस दिव्यता को हमें पहचानना होगा। भारत में एकता हमारे पूर्वजों ने अनेक शतकों के प्रयासों और प्रयोगों से सिद्ध की है। यह हमारी मूल्यवान विरासत है। उसकी रक्षा हमें प्राण देकर भी करना चाहिए, यह गांधी जी की भी भावना थी। वे कहते थे कि “हिंदुस्तान के टुकड़े हो जाएं, ऐसे बेहतर है कि मेरे शरीर के टुकड़े हो जाएं।” हमें लोगों को इससे सीख लेकर विरोधी भावना, विभाजन और सांस्कृतिक, आध्यात्मिक सहजीवन का मार्ग सुगम बनने के लिए हमें परस्पर विश्वास और स्नेह का वातावरण बनाना होगा और नए रास्ते खोजने होंगे।
अंत में किम एजुकेशन सोसायटी के उत्तम भाई ने सभी का आभार व्यक्त किया। यात्रा में अशोक भारत, अरविंद कुशवाहा, बिस्वजीत रॉय, भूपेश भूषण, के एल सैंडिल्य, अजमत उल्ला खान ने भी अपनी अपनी बात रखी। यात्रा में मनोज ठाकरे, मानस पटनायक,शिवकांत त्रिपाठी, सोभा बहन, सुरेश सर्वोदयी, सागर दास, दीपाली, मधु, शाहरुबि, यशवंत भाई, जगदीश कुमार, विनोद पगार आदि भी शामिल है।