डॉ.ओ.पी.जोशी

मौजूदा दौर में विकास, खासकर तकनीकी विकास भस्मासुर की उस पौराणिक कथा की तरह हो रहा है जिसमें शिव को प्रसन्न करके अमरता का वरदान पाने वाला भस्मासुर तीनों लोकों समेत खुद शिव के लिए संकट बन जाता है। हाल के सालों में ‘Artificial Intelligence’ यानि ‘AI’ ठीक उसी भूमिका में अवतरित हो रही है। ‘एआई’ के पर्यावणीय प्रभावों पर डॉ. ओ. पी. जोशी का लेख।

10 एवं 11 फरवरी 2025 को पेरिस में तीसरा (पहला, ब्रिटेन में नवम्बर 23, दूसरा, दक्षिण कोरिया में मई 24) ‘आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस शिखर सम्मेलन’ सम्पन्न हुआ। यह सम्मेलन इसलिए महत्वपूर्ण बताया गया क्योंकि इसके पहले चीन की कंपनी ‘डीपसीक’ ने ‘एआई’ के मॉडल ‘आर-1’ को मैदान में लाकर दुनिया में तहलका मचा दिया था।

पेरिस के ‘एआई शिखर सम्मेलन’ AI Summit में ‘एआई’ को लेकर वैश्विक व्यवस्था बनाने, निष्पक्षता,पारदर्शिता, नैतिकता, निजता का उल्लंघन, रोजगार, स्वास्थ्य तथा शिक्षा में मदद आदि विषयों पर तो चर्चाएं हुईं, परन्तु इसके कारण बढती ऊर्जा खपत एवं कार्बन-उत्सर्जन जैसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया गया।

इधर, भारत के ताजा केन्द्रीय बजट (2024-25) में विज्ञान एवं तकनीक को ध्यान में रखकर एवं बढावा देने हेतु ‘डीप-टेक-सेक्टर’ की व्यवस्था की गयी है। इसके तहत 20,000 करोड़ रूपये से एक कोष (फंड) बनाया जायेगा। इसके अतिरिक्त 500 करोड़ रूपये ‘एआई’ के लिये आवंटित किये जायेंगे। शिक्षा के लिए ‘एआई केन्द्र’ स्थापित किये जाने पर भी विचार किया जाएगा। ‘डीप-टेक-सेक्टर’ में ‘एआई’ बायो-टेक्नॉलॉजी, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नॉलॉजी, सेमी-कंडक्टर्स तथा विज्ञान के अन्य क्षेत्र शामिल रहेंगे।

‘एआई’ वास्तव में कम्प्यूटर विज्ञान की ही एक शाखा है। यह एक ऐसी तकनीक है, जिसके माध्यम से मशीनों को मानव मस्तिष्क की तरह सोचने एवं कार्य करने में सक्षम बनाया जाता है। ‘एआई’ धीरे-धीरे हमारे जीवन का हिस्सा बनती जा रही है, जिससे जीवन आसान तो बन रहा है, परंतु पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है। बिजली तथा पानी की ज्यादा खपत के साथ-साथ बड़े पैमाने पर कार्बन-उत्सर्जन भी बढ़ रहा है।

वर्ष 2019 में ‘मेसाचुएट्स एमहर्स्ट विश्वविद्यालय’ के शोधकर्ताओं ने बताया था कि एक एकल ‘एआई’ मॉडल को प्रशिक्षित करने में पांच कारों के निर्माण जितना कार्बन-उत्सर्जन होता है। ‘कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय’ के अध्ययन के अनुसार ‘जीपीटी-03’ के प्रशिक्षण व निर्माण की पूरी प्रक्रिया से लगभग 500 टन कार्बन-उत्सर्जित होता है। इसमें कच्चे माल के खनन, शुद्धिकरण, परिवहन तथा कचरे के उपचार आदि क्रियाओं से निकले उर्त्सजन शामिल हैं। जापानी वैज्ञानिक प्रो. पेंगफी तथा सहयोगियों ने अनुमान लगाया है कि ‘जीपीटी-03’ को प्रशिक्षित करने में 2 से 7 लाख लीटर पानी की जरूरत होगी।

‘एआई’ के लिए ‘डाटा सेंटर्स’ की संख्या के साथ बिजली की खपत भी बढेगी। वर्तमान में 10 हजार से ज्यादा विशाल ‘डाटा सेंटर्स’ कार्यरत बताये गये हैं। इनके लिए सैकड़ों-हजारों की संख्या में ‘सर्वर’ का उपयोग होता है जो बड़ी मात्रा में ऊर्जा की खपत करते हैं जिससे वातावरण में गर्मी पैदा होती है। गर्मी कम करने हेतु पानी या एयर-कंडीशनर का इस्तेमाल करने पर फिर दोनों (बिजली व पानी) की खपत बढ़ती है।

‘अमरीकी ऊर्जा सूचना प्रबंधन’ के अनुसार 2022 में वैश्विक स्तर पर ‘डाटा सेन्टर्स’ पर जितनी ऊर्जा खर्च हुई वह कई देशों की बिजली की औसत मांग के बराबर या ज्यादा थी। एक अनुमान के अनुसार सूचना-प्रौद्यौगिकी क्षेत्र वर्ष 2030 तक बिजली उत्पादन का 20 प्रतिशत उपयोग करने लगेगा एवं कार्बन-उत्सर्जन में इसका योगदान 5.5 प्रतिशत से ज्यादा होगा। ‘गूगल’ की ‘वार्षिक पर्यावरण रिपोर्ट’ के अनुसार वर्ष 2022 की तुलना में 2023 में ‘डाटा सेंटर्स’ पर कार्बन- उत्सर्जन में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

‘एआई’ की वजह से बढ़ती ऊर्जा मांगों के कारण कार्बन-उर्त्सजन कम करना एक बड़ी चुनौती है। अध्ययनों से पता चला है कि ‘एआई,’ चेटबाट, चेट जीपीटी पर पूछी गई साधारण जानकारी ‘गूगल’ की तुलना में 10 से 33 प्रतिशत ज्यादा ऊर्जा (बिजली) का उपयोग करती है। ‘एआई’ मॉडल भी अधिक डाटा-प्रोसेस व फिल्टर के कारण ‘गूगल’ की तुलना में ज्यादा ऊर्जा की खपत करता है। ‘गूगल’ ने वर्ष 2022 में अपने ‘डाटा-सेंटर्स’ को ठंडा रखने हेतु लगभग 20 अरब लीटर पानी का उपयोग किया। एक पर्यावरण एजेन्सी ने 2024 में बताया कि ‘एआई’ के बढ़ते उपयोग से 2025 तक इंग्लैण्ड को रोजाना 6 अरब लीटर अतिरिक्त पानी की जरूरत होगी।

‘नीति आयोग’ की एक रिपोर्ट के अनुसार बैंगलुरू के अलावा दिल्ली, मुम्बई व चैन्नई महानगरों में ‘डाटा सेंटर्स’ पर पानी की खपत बढ़ रही है। बढ़ती पानी की खपत को ध्यान में रखकर ‘गूगल’ एवं ‘माइक्रोसाफ्ट’  उपचारित पानी उपयोग करने का प्रयास कर रहे हैं। पर्यावरणविदों ने सूचना प्रौद्यागिकी के जानकारों को सलाह दी है कि नवीकरण ऊर्जा (रिन्युएबल एनर्जी) का उपयोग बढ़ाएं, ‘डाटा-सेंटर्स’ में सघन हरियाली फैलाऐं एवं इनको ठंडा रखने हेतु उपचारित पानी का बार-बार उपयोग करें।

कुछ संदर्भों में ‘एआई’ को पर्यावरण के लिए उपयोगी भी बताया गया है, जैसे किसी पारिस्थितिकी-तंत्र (इकोसिस्टम) का मानचित्रण, उत्पादन आंकलन, ऊर्जा, बहाव एवं पुनरूद्धार की योजना आदि में सहायता देना। ऊर्जा दक्षता बढ़ाने तथा जलवायु परिवर्तन से पैदा समस्याओं के समाधान में भी इसकी उपयोगिता संभव है।  ‘एआई’ भूस्खलन, भूकम्पन, बाढ़, तूफान एवं मानसून की स्थिति आदि घटनाओं के पूर्वानुमान में भी मददगार हो सकती है। विज्ञान हमेशा तकनीक देता है, परंतु इसका उपयोग मानव विवेक पर निर्भर रहता है। ‘एआई’ तकनीक का भी विवेकपूर्ण उपयोग जरूरी है। वर्ष 2024 के ‘नोबल पुरस्कार’ विजेता ‘एआई’ के ‘गॉडफादर’ जैफरी हिंटन ने कहा है कि यह तकनीक कभी भी हमारे कंट्रोल से बाहर हो सकती है। (सप्रेस)