गंगा मुक्ति आंदोलन की 43वीं वर्षगांठ

निमिषा सिंह

भागलपुर के कहलगांव क्षेत्र के लोग,जीव–जन्तु और वनस्पति जगत एनटीपीसी से उत्सर्जित राख के प्रदूषण का कहर झेलने को अभिशप्त हैं। बॉटम ऐश के साथ फ्लाई ऐश मिश्रित होकर कहलगांव, पीरपैंती से सबौर तक और बलबड्डा से लेकर गंगा पार तक सड़क, खेत और बाग-बगीचों को अच्छादित कर चुकी है। इस इलाके में सभी फसलों की उपज घट गई है। सारे जीव–जन्तु श्वास सम्बंधी बीमारियों की गिरफ्त में आ चुके हैं।

भारत की लगभग 71.22 प्रतिशत बिजली कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों से उत्पन्न होती है। देश में 180 ताप विद्युत संयंत्रों की कुल उत्पादन क्षमता 212 गीगावाट (1 गीगावाट=1000 मेगावाट) है जिसे 2030 तक बढ़ाकर 260 गीगावाट किया जाना है। आंकड़े पर गौर करें तो अप्रैल 2023 से 2024 तक बिजली उत्पादन के लिए 29,18,265 मिलियन टन कोयले का उपयोग किया गया है। इस दौरान 11,67,308 टन फ्लाई ऐश और बाॅटम ऐश का उत्पादन हुआ। इसमें से 5,78,388 मिलियन टन राख का इस्तेमाल किया जा चुका है। वहीं 8,35,086 मिलियन टन राख को निचले इलाकों में डंप किया जा चुका है।

सुपर थर्मल पावर के द्वारा फ्लाई ऐश के निपटान में एनटीपीसी के कहलगांव सुपर थर्मल पॉवर प्लांट में बरसों से लगातार फ्लाई ऐश के निपटान में घोर लापरवाही बरती जा रही है। इस ओर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नजर नहीं है। लगातार जन शिकायत के बाद भी इस उड़नशील राख को साइलो के माध्यम से पूरी क्षमता पर संग्रहीत नहीं करके चिमनियों के द्वारा धुंए के साथ वायुमंडल में उड़ा दिया जाता है। हवा के बहाव के साथ यह राख दस – बीस किलोमीटर दूर तक मौत का सामान बनकर बरसती रहती है। इतना ही नहीं यह जहरीली हवा पास में बहती गंगा को भी प्रदूषित कर रही है,वहीं जिनके पास विकल्प है वे अब पलायन को मजबूर है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदूषण नियंत्रण की नियामक संस्थाओं के नए मानक के अनुसार चिमनी के धुएं में प्रति घन मीटर 125 मिलीग्राम धूलकण की अनुमति है। यदि इस मानक का अनुपालन हो तो चिमनी से निकलने वाला धुंआ नंगी आंखों से दिखाई नहीं देना चाहिए। जबकि चिमनियों से निकलने वाले धुंआ के संग उड़ते फ्लाई ऐश को हर कोई नंगी आंखों से देख रहा है, महसूस कर रहा है और उस जहरीले घुटन से तड़प रहा है।

कहलगांव शहर के अवकाश प्राप्त प्रो. डॉ पवन कुमार सिंह ने कुछ वर्ष पूर्व इस विषय की गंभीरता को भांपते हुए एनटीपीसी की चिमनियों से दूर – दूर तक उड़ते फैलते धुंए के संग फ्लाई ऐश को अपने मोबाइल फोन से रिकार्ड कर फोटो व वीडियो अपने सोशल मीडिया पर सार्वजनिक किया। फोटो में एक चिमनी से ज्यादा और दूसरी से कुछ कम फ्लाई ऐश को हवा में उड़ते देखा गया जबकि तीसरी ( छोटी ) चिमनी का धुआं बिल्कुल अदृश्य है। वीडियो में साफ – साफ देखा गया कि किस प्रकार यह उड़नशील राख पुरबा हवा के साथ जाकर गंगा पार गोपालपुर क्षेत्र में बरस रही है।

शनिवार 22 फ़रवरी को भागलपुर जिले के कहलगांव स्थित कागजी टोला में गंगा मुक्ति आंदोलन के 43वें वर्षगांठ के अवसर कहलगांव में देश भर से आए कार्यकर्ताओं और परिवर्तनवादियों की मौजूदगी रही। 42 वर्ष पूर्व अर्थात 1982 में शुरू हुए इस आंदोलन की निरंतरता आज भी कायम है। अनिल प्रकाश के नेतृत्व में गंगा की जमींदारी के खिलाफ शुरू हुआ यह आन्दोलन 1987-88 आते आते बिहार के सम्पूर्ण गंगा क्षेत्र में फैल गया था और इसमें मछुआरों समेत लाखों लोग शामिल हो गए थे। इसी क्रम में कुर्सेला से पटना तक (लगभग 500 किलोमीटर) नौका जुलूस निकाला गया। नौका जुलूस के बाद जब बिहार के सम्पूर्ण गंगा क्षेत्र में जलकर (मछली पकड़ने के एवज में मुगलों के समय से दिया जानेवाला टैक्स) बंद कर दिया गया तो पानी के ठेकेदारों ने अनेक प्रकार के जुल्म ढाहे, लेकिन अन्ततः 1990 के जनवरी में सरकार को बाध्य होकर गंगा समेत बिहार की सभी नदियों की बहती धारा में परम्परागत मछुआरों के लिए मछली पकड़ना करमुक्त कर दिया था। गंगा मुक्ति आंदोलन से जुड़े लोगों के लिए यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि रही।

गंगा मुक्ति आंदोलन के 43वें वर्षगांठ के अवसर पर नागरिक संघर्ष मोर्चा के संयोजक प्रो डॉ पवन कुमार ने कहलगांव स्थित एनटीपीसी द्वारा फ्लाई ऐश के निपटान के लिए बरती जा रही घोर लापरवाही का मुद्दा एक बार फिर सबके समक्ष उठाया। उन्होंने बताया कि यह बारीक राख जीवों में लंग्स कैंसर और श्वासजन्य अन्य बीमारियों की जड़ होने के साथ फसलों की उपज पर भी घातक असर डाल रहा है। वर्षों से इसके प्रमाण सामने आते रहे हैं। कहलगांव क्षेत्र के लोग,जीव–जन्तु और वनस्पति जगत एनटीपीसी से उत्सर्जित राख के प्रदूषण का कहर झेलने को अभिशप्त हैं। बॉटम ऐश के साथ फ्लाई ऐश मिश्रित होकर कहलगांव, पीरपैंती से सबौर तक और बलबड्डा से लेकर गंगा पार तक सड़क, खेत और बाग-बगीचों को अच्छादित कर चुकी है। इस इलाके में सभी फसलों की उपज घट गई है। सारे जीव–जन्तु श्वास सम्बंधी बीमारियों की गिरफ्त में आ चुके हैं।

भागलपुर के कई हड्डी एवं क्षय रोग के चिकित्सकों का भी मानना है कि कहलगांव क्षेत्र से आने वाले रोगियों के फेफड़ों में खतरनाक स्तर पर फ्लाई ऐश का संक्रमण पाया जा रहा है। छाती के एक्स- रे और बलगम की जांच में इस संक्रमण के प्रमाण मिलते हैं। हैरत तो तब हो जाती है जब ऐसी शिकायत की जांच कराने के बाद एनटीपीसी को पूर्णरूप से क्लीन चिट दे दिया जाता हैं।

इस मामले में उक्त समय पूर्व केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी चौबे का हर मौके पर कहना रहा कि कहलगांव स्थित एनटीपीसी से वायु प्रदूषण नहीं हो रहा है। धनोखर निवासी सजन कुमार सिंह जो वर्षों से कहलगांव शहर स्थित नाथलोक में रहते हैं। उन्हें सीएमसी वेल्लोर के एक डॉक्टर ने जांचोपरांत कहा कि आपके फेफड़े में राख जमा है। पीड़ित भोलसर ग्राम निवासी रामस्वरूप सिंह ने हाल ही में जिलाधिकारी के जनसंवाद कार्यक्रम में एनटीपीसी द्वारा फ्लाई ऐश की समस्या के समाधान हेतु गुहार लगाई थी। उन्होंने कहा कि उड़ते राख के प्रदूषण से आसपास के दर्जनों गांव तड़प रहे हैं। भोजन के साथ राख निगल रहे है। उड़ते राख से अत्यधिक प्रभावित गांव मजदाहा, कटोरिया के करीब तीन सौ परिवार है, जो वर्षों से ऐश डाइक में बन चुके पहाड़ से उड़ते राख की तबाही से पल-पल जूझ रहे हैं।

कहलगांव के समीप चांयटोला, कटोरिया,भोलसर, एकचारी, महेशामुंडा,ओगरी,लगमा, शोभनाथपुर, लदमा,लक्ष्मीपुर बभनिया,धनौरा, जमुनिया टोला,लालापुर भदेर, कद्दू टोला जैसे प्रभावित गांव के ग्रामीण कहते हैं कि अब हम राख ही खा रहे हैं। गर्मी हो या सर्दी हर मौसम में घर-आंगन, चौका, बर्तन सबके सब राख से भर जा रहे हैं। जीना मुहाल हो गया है। श्वांस की बीमारी से लोग पीड़ित हो रहे हैं। दो वर्ष पूर्व प्रदूषण की शिकायत करने पर केंद्रीय टीम कहलगांव आई थी। हर बार कि तरह वह भी लीपापोती कर चली गई। दो वर्ष पूर्व ही अप्रैल-मई महीने में नागरिक संघर्ष मोर्चा के सदस्यों ने प्रदूषण प्रभावित क्षेत्र के 16 गांवों में बैठक करके कुल 585 हस्ताक्षरों के साथ एनजीटी (राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण/ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) को ज्ञापन भेजा था।उसके बाद जांच टीम आई थी।

प्राप्त जानकारी के अनुसार एनटीपीसी से उत्सर्जित राख के अनुपात में निबटान महज 20 प्रतिशत ही होने के कारण लगातार ऐश का पहाड़ जमा हो रहा है। मालूम हो कि एनटीपीसी हर दिन करीब 45 हजार टन कोयले का उपयोग बिजली उत्पादन के लिए करता है। कोयले के गुणवत्ता के आधार पर करीब 20 से 30 प्रतिशत राख का उत्सर्जन होता है। अतः हर दिन लगभग 12 हजार टन राख का उत्सर्जन हो रहा है वहीं महज 20 प्रतिशत राख का निबटान प्रति दिन हो पा रहा है। भय इस बात की है कि कहीं भूकंप के बड़े झटके में यह स्टॉक यानी ‘ राख बम ‘ ध्वस्त हो गया तो फिर प्रलय-तबाही तय है। भूकंप के दौरान ऐसे झटके पूर्व में देखे जा चुके हैं।

भविष्य में कहलगांव के आस पास के लोगों को अगर इस प्रकार के आपदाओं का सामना करना पड़ा तो इसका जिम्मेदार कौन? क्या मुआवजा देना भर काफी होगा??1982 में आरंभ हुई गंगा मुक्ति आंदोलन के दौरान एनटीपीसी के दुष्परिणामों को सबके समक्ष रखा गया था। गंगा मुक्ति आंदोलन के अनिल प्रकाश ने एनटीपीसी से होने वाले दुष्परिणामों की चेतावनी भी दी थी। जिसे नजरंदाज किया गया और इस आंदोलन को ही विकास विरोधी करार दिया गया। लेकिन पिछले वर्ष जब बोलसर की सभा में अनिल प्रकाश गए थे तो लोगों ने कहा कि आपने उस दौर में जो कहा था वह आज शत प्रतिशत सही साबित हो रहा है। बावजूद इसके एनटीपीसी के दुष्परिणामों से सबक नहीं लिया जा रहा और फिर इस क्षेत्र में थोड़ी ही दूर पीरपैंती क्षेत्र में एक नया एनटीपीसी खड़ा करने की कवायद चल रही है।