संविधान ने पर्यावरण को खासी अहमियत दी है, लेकिन उसे अमल में नहीं लाया जाता या आधे-अधूरे मन से लाया जाता है। संविधान में पर्यावरण को लेकर किये गए प्रावधान इस विषय की ओर संवेदनशीलता दर्शाते हैं। संविधान के ऐसे ही प्रावधानों के बारे इस लेख में बता रहे हैं, डॉ. ओ. पी. जोशी।
देश की आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को लागू हुए संविधान को 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं। हमारा संविधान महज एक किताब न होकर एक जीवंत दस्तावेज है जो समय के साथ संशोधित होकर विकसित होता रहता है। संविधान में पर्यावरण को लेकर किये गए प्रावधान इस विषय की ओर संवेदनशीलता दर्शाते हैं। अनुच्छेद-21 के अनुसार जीवन के अधिकार के तहत स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण एवं अनुच्छेद 19 के तहत शांतिपूर्ण जीवन जीने का अधिकार निहित हैं।
संविधान में वर्णित पर्यावरण से जुड़े अनुच्छेदों के आधार पर सरकार द्वारा पारित ‘पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1980’ में हवा, पानी एवं मिट्टी के साथ पेड़-पौधों व जीव-जंतुओं को भी पर्यावरण में शामिल किया गया है। वर्तमान समय में देश में चारों ओर फैले एवं बढ़ते हवा, पानी, मिट्टी एवं ध्वनि के प्रदूषण ने स्वच्छ, स्वस्थ्य एवं शांतिपूर्ण जीवन जीने के अधिकार छीन लिए हैं।
वायु-प्रदूषण महानगर से गांव तक फैल गया है। प्रदूषणकारी पदार्थ महीन कण ‘पीएम2.5’ की गणना शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग समान हो गयी है। एक आंकलन के अनुसार देश के 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में वायु गुणवता काफी गिर गयी है। देश के किसी भी क्षेत्र में ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (डब्ल्यूएचओ) के मानकों के अनुसार साफ हवा नसीब नहीं है। ‘लैंसेट प्लेनेट हेल्थ जर्नल’ के मुताबिक देश की लगभग 81.9 प्रतिशत आबादी ऐसे इलाकों में रहती है जहां हवा की गुणवत्ता बेहद खराब है।
देश के 130 शहरों में वर्ष 2019 से लागू ‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम’ (एनकेप) के बावजूद इन शहरों में कोई ज्यादा सुधार नहीं हुआ है। ‘स्टेट आफ ग्लोबल एअर’ की वर्ष 2024 की रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रतिवर्ष 21 लाख से ज्यादा लोग प्रदूषित वायु से पैदा रोगों के कारण मारे जाते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि वायु प्रदूषण दिल्ली की नहीं, पूरे देश की समस्या है।
ज्यादातर सतही जल स्रोतों (नदी, नाले, तालाब, झीलें, पोखर) के साथ भूजल भी प्रदूषित हो गया है। ‘केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल’ के एक अध्ययन के अनुसार 521 नदियों में से 351 काफी प्रदूषित पायी गयी हैं। ‘विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र,’ (सीएसई) नई दिल्ली तथा ‘राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन’ द्वारा जारी 2024 की रिपोर्ट में बताया गया है कि घरों, कारखानों तथा शहरों, गांवों आदि से निकलने वाला 72 प्रतिशत गंदा पानी बगैर किसी उपचार के नदियों एवं झीलों में जा रहा है। प्रतिदिन निकलने वाले गंदे पानी का केवल 22 प्रतिशत ही ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट’ (एस.टी.पी.) से उपचारित किया जाता है। ‘नीति आयोग’ की एक रिपोर्ट के अनुसार देश का 70 प्रतिशत से ज्यादा पानी प्रदूषित है। देश के 360 जिलों में भूजल में नाइट्रेट, क्लोराइड तथा आर्सेनिक की मात्रा बढ़ी है।
खेती में उपयोगी रसायन ‘अन-उपचारित जलमल’ (सीवेज) तथा कारखानों के अपशिष्ट से मिट्टी भी प्रदूषित हो गयी है एवं उसका उपजाऊपन कम हो रहा है। 15 करोड़ हेक्टर कृषि भूमि में से लगभग 12 करोड़ हेक्टर में पैदावार घटी है। मिट्टी को प्रदूषित करने वाले रसायन खाद्य एवं पेय पदार्थो में पहुंचकर मानव में कई प्रकार के रोग पैदा कर रहे हैं। देश के कई स्थानों पर मां का दूध भी प्रदूषित पाया गया है।
बढ़ते ध्वनि-प्रदूषण के कारण चितंन-मनन हेतु शांत वातावरण भी दुर्लभ होता जा रहा है। देश के कई शहरों में स्थानीय प्रशासन द्वारा घोषित शांत क्षेत्रों (दवाखाने, न्यायालय, शिक्षण संस्थाएं, प्राणी संग्रहालय) में भी शोर की तीव्रता 2-3 गुना ज्यादा आंकी गयी है। आवासीय क्षेत्रों में दिन एवं रात के समय क्रमश : शोर की तीव्रता 50 एवं 40 डेसीबल निर्धारित की गयी है। बढ़ता शोर धीमे जहर की तरह मानव स्वास्थ्य पर कई विपरीत प्रभाव डाल रहा है।संविधान में उल्लिखित साफ हवा, पानी एवं शांत वातावरण मिलने के लिए सरकार ने कई नियम कानून बनाए, अलग से पर्यावरण विभाग भी बनाया, परंतु फिर भी ये चीजें नागरिकों को नहीं मिल पा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने कई फैसलों में इन्हें नागरिकों के मौलिक अधिकार बताया है। अनुच्छेद 51 ए (जी) में पर्यावरण संरक्षण हेतु नागरिकों के जो कर्तव्य बताये हैं वहां भी कुछ अपवादों को छोड़कर ज्यादातर उदासीनता दिखाई देती है। (सप्रेस)