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पिछले कुछ सालों से प्लास्टिक पर्यावरण के दुश्मन के रूप में उभरा है। कहा जाता है कि यदि प्लास्टिक का उपयोग इसी तरह से किया जाता रहा तो एक समय के बाद हमारा जीवन तक खतरे में आ जाएगा। ऐसे में कैसे निपटें, प्लास्टिक के संकट से? कई वैज्ञानिकों और व्यावसायिक संस्थानों ने प्लास्टिक के विकल्प पर काम किया है।
पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले मुख्य कारकों में सबसे बड़ा कारण प्लास्टिक से फैलने वाला प्रदूषण है। यदि हम प्लास्टिक के विकल्प या इनके उपयोग में नवाचार लाएं तो पर्यावरण प्रदूषण की सबसे बड़ी समस्या को हल कर सकने में कामयाब हो जाएंगे। इसी दिशा में ‘जैव-प्लास्टिक’ का निर्माण किया गया है। साथ ही ‘एकल उपयोग’ वाली प्लास्टिक को पुनः उपयोग/रिसाइकल करके हम इससे फैलने वाले प्रदूषण को अत्यंत कम कर सकते हैं। वर्तमान में ‘एकल उपयोग’ वाली प्लास्टिक वस्तुओं की वजह से होने वाला प्रदूषण सभी देशों के लिए एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौती बन गया है।
‘एकल उपयोग’ वाले प्लास्टिक के कचरे से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए हाल ही में भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक चिह्नित की गई ‘एकल उपयोग’ वाली प्लास्टिक वस्तुओं को प्रतिबंधित करने वाले ‘प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम – 2021’ को अधिसूचित किया है। 30 सितंबर, 2021 से प्लास्टिक कैरी-बैग की मोटाई 50 माइक्रोन से बढ़ाकर 75 माइक्रोन और 31 दिसंबर, 2022 से 120 माइक्रोन तक कर दी गई है। इसके साथ ही विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व से संबंधित दिशानिर्देश को कानूनी शक्ति प्रदान की गई है। सरकार ‘एकल उपयोग’ वाले प्लास्टिक का उन्मूलन करने और ‘प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम – 2016’ के कारगर क्रियान्वयन के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए भी कार्य रही है।
प्लास्टिक के विकल्प-
चुकंदर के उत्पादन से निकलने वाले बाई-प्रोडक्ट वातावरण के लिए बेहतर हैं। एक इतालवी कंपनी ‘बायो ऑन’ जैव प्लास्टिक के क्षेत्र में नवीनतम प्रयास कर रही है। ‘बायो ऑन’ चुकंदर से चीनी बनने के बाद बचे अशुद्धीकृत शीरे से प्लास्टिक बनाती है। चीनी के कारखाने से शीरा कचरे के तौर पर निकलता है।
‘बायो ऑन’ के वैज्ञानिकों ने पांच साल के शोध से शीरे को प्लास्टिक में परिवर्तित किया है। कंपनी चुकंदर के शीरे को एक ऐसे जीवाणु के साथ मिलाती है जो किण्वन के दौरान चीनी पर पलते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान लैक्टिक एसिड, फिल्ट्रेट और पॉलीमर बनता है जिसका इस्तेमाल प्राकृतिक तरीके से सड़ने वाली प्लास्टिक बनाने में किया जा सकता है।
‘बॉयो ऑन’ के मुख्य जीव विज्ञानी साइमन बिगोटी डॉयचे वेले ने कहा है – “हम कई तरह की चीजें बना सकते हैं क्योंकि कई तरह की प्लास्टिक बना पाना मुमकिन है। हम पॉलीइथाइलिन, पॉलीस्टाइरीन, पॉलीप्रॉपाईलीन को बदल सकते हैं।” इन्होंने यह भी कहा है कि “हम ऐसी प्लास्टिक बना रहे हैं जो अपने जीवन काल के खत्म होने के 10 दिन के भीतर पानी में घुल जाएगी।”
‘यूरोपीय बायो-प्लास्टिक’ के अध्यक्ष हैराल्ड कैब का मानना है कि यूरोप के प्लास्टिक बाजार के कुल हिस्से का 5 से 10 प्रतिशत हिस्सा बायो-प्लास्टिक ले सकती है। ‘बायो ऑन’ के सह-संस्थापक मार्को अस्टोरी का कहना है कि उनकी कंपनी अनोखी है, क्योंकि वह कचरे का इस्तेमाल कर प्लास्टिक बनाती है। अस्टोरी के मुताबिक – “हम सिर्फ कचरे का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि खाद्य सामग्री का इस्तेमाल प्लास्टिक बनाने के लिए करना पागलपन है।”
इसके अतिरिक्त ‘क्यूमिल्च कंपनी’ खराब दूध से ‘केसिन टेक्सटाइल्स फाइबर’ का निर्माण करती है जो प्लास्टिक बैग का विकल्प हो सकता है। वहीं अनन्नास की पत्तियों से पिनाटेक्स भी प्लास्टिक के विकल्प के रूप में उपलब्ध है। अबका के रेसे (अखाद्य केला मूसा टेक्टिलिस), जीइन (मक्का के प्रोटीन), खरगोश का फर, कवक से फोम एवं समुद्री घास से प्लास्टिक का निर्माण किया जा सकता है जो पर्यावरण के लिए वरदान साबित हो सकता है।
कोका-कोला कंपनी भी बायोप्लास्टिक का उपयोग बढ़ा रही है। हाल ही में इस कंपनी ने ‘प्लांटबॉटल’ नाम का प्लास्टिक उपलब्ध कराया है, जो ब्राज़ील में पैदा होने वाले गन्ने को मिलाकर तैयार होता है। गन्ने से तैयार होने वाला बायोप्लास्टिक सामान्य प्लास्टिक की तुलना में दोगुना महंगा पड़ता है, किन्तु कंपनी का मानना है कि वह पर्यावरण के हित के लिए यह अतिरिक्त बोझ उठाने को तैयार है।
प्लास्टिक का पुनः उपयोग/रिसाइकल-
जर्मनी के आंद्रेयास फ्रोएजे ने प्लास्टिक से होने वाली पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को दूर करने के लिए लोगों द्वारा उपयोग के बाद फेंकी गई प्लास्टिक का पुनः उपयोग करके प्लास्टिक का घर बनाने का नवाचार किया है। दुनिया में उपयोग होने वाला 80 फीसदी प्लास्टिक बहकर समुद्र में पहुंच जाता है, जिसकी वजह से वह दुनिया का सबसे बड़ा कूड़ा भंडार हो गया है। प्लास्टिक की बोतलों को गलकर समाप्त होने में सैकड़ों साल लगते हैं। परन्तु आंद्रेयास फ्रोएजे का कहना है कि बेकार सा लगता यह कूड़ा मूल्यवान संसाधन हो सकता है। रास्ता एकदम आसान है और प्रभावी है। उन्होंने प्लास्टिक की खाली बोतलों को बालू या राख से भरकर एक दूसरे के ऊपर जमा किया और फिर गारे से चुन दिया। इस ढांचे को नाइलोन की रस्सी से पक्का भी किया जिससे की वह गिरे नहीं। इस तरह उन्होंने एक मजबूत और बेहतर घर का निर्माण फेंकी जाने वाली प्लास्टिक की बोतलों से कर दिखाया।
फ्रोएजे के अनुसार, प्लास्टिक की बोतल सामान्य ईंट से ज्यादा बोझ और धक्का सह सकती है। उन्होंने कादूना में प्लास्टिक की बोतलों से अफ्रीका का पहला घर बनाया है। उगांडा में इन्होंने पानी का एक टैंक बनाया और नाइजीरिया में अक्षय उर्जा संस्थान ‘डेयर’ के साथ एक परियोजना भी शुरू की।
मेक्सिको की कंपनी ‘क्वाड्रो इको सॉल्यूशंस’ कूड़े से जमा हुए प्लास्टिक से प्लेट बनाती है। कंपनी के सीईओ रेमोन मार्टिन के अनुसार इस प्लास्टिक को लकड़ी, धातु या फिर कंक्रीट की जगह उपयोग में लाया जा सकता है। अगर इन प्लेटों से घर बनाया जाए तो 18 वर्ग फीट का घर बनाने के लिए करीब डेढ़ टन प्लास्टिक कचरे की जरूरत होगी, इनका लक्ष्य “ऐसे सामान बनाना है जो आज की जरूरतें पूरी कर सकें। समाज के निचले तबके के लिए घर बनाना भी इसमें शामिल है क्योंकि उन्हें ऐसे घर पहले नहीं मिले।” इस प्लास्टिक से 55 वर्ग मीटर का घर बनाने में लगभग साढ़े तीन लाख रुपये का खर्च आता है जो पारंपरिक तरीके से बनने वाले घर से काफी कम है।
हरियाणा के गुरुग्राम की एक कंपनी ‘री-प्लास्ट’ ने कई तरह की प्लास्टिक, जैसे – सिंगल यूज, मल्टी लेवल और वेल्यू प्लास्टिक को सफलतापूर्वक रिसाइकल कर कई तरह के टाइल्स बनाए हैं जिनका उपयोग मकान निर्माण में हो सकता है। साथ ही जमीन पर बिछाए जाने वाले ब्लॉक को बनाने के लिए अलग-अलग तरह की प्लास्टिक को साथ में मिलाकर रिसाइकल किया है।
कुछ देश अनुपयोगी प्लास्टिक कचरे से सड़कें बना रहे हैं, वहीं ईरान सहित कई देश प्लास्टिक को छोटे टुकड़ों में तोड़कर उन्हें कंक्रीट के रूप में पत्थरों की कमी दूर करने के लिए उपयोग कर रहे हैं। हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक ऐसे एंजाइम को भी खोजा है जो प्लास्टिक की बोतलों को नष्ट कर सकता है। संभव है कि इससे प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या का समाधान करने में सहायता मिल सकती है।
‘वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम’ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल भर में 56 लाख टन प्लास्टिक कचरा बनता है। वह दुनिया के 60 प्रतिशत प्लास्टिक कूड़े को समुद्र में डालता है। प्रत्येक भारतीय औसतन रोजाना 15000 टन प्लास्टिक को कचरे के रूप में फेंक देते हैं जिसकी वजह से पर्यावरण को क्षति व कई जीव-जंतुओं की मौतें हो रही है।
वैश्विक स्तर पर जिस तरह से प्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग के बाद कूड़े का निर्माण किया जा रहा है उस हिसाब से सिर्फ प्लास्टिक के रिसाइकल द्वारा इसके प्रदूषण और दुष्प्रभावों से बचा नहीं जा सकता है। प्लास्टिक प्रदूषण से बचने के लिए जरूरी है कि ‘सिंगल यूज’ प्लास्टिक को पूरी तरह प्रतिबंधित कर प्लास्टिक के उपयोग को सीमित किया जाए और जैविक प्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग को बढ़ावा दिया जाए। (सप्रेस)
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