सुदर्शन सोलंकी

हाल के अध्‍ययन बता रहे हैं कि वायु-प्रदूषण अब घर, स्कूल और तरह-तरह के कमरों के भीतर तक पहुंच गया है और इससे बचना है तो हमें तेजी से कुछ उपाय करना होंगे। एक ताजा अध्ययन में पता चला है कि दिल्ली के स्कूल और कॉलेजों की बिल्डिंग सबसे अधिक प्रदूषित हैं। इस अध्ययन में रेस्टोरेंट, अस्पतालों व सिनेमा हॉल में भी प्रदूषण का स्तर ‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ द्वारा निर्धारित सीमा से दो से पाँच गुना तक अधिक पाया गया है।

भारत ने कोरोना पर नियंत्रण पा लिया है और अब धीरे-धीरे देश के कई राज्यों में स्कूल, कॉलेज व अन्य शैक्षणिक संस्‍थान खुल गए है। हालांकि अब भी कोरोना की तीसरी लहर का भय सबके मन में बना हुआ है और हर कोई बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है। ऐसे में हाल ही में आई ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट हमें चौंकाती है। इस रिपोर्ट से पता चला है कि कमरे के भीतर की हवा में उपस्थित प्रदूषणकारी तत्व बाहरी हवा की तुलना में हजार गुना ज्यादा आसानी से मनुष्य के फेफड़ों में पहुँच जाते हैं।

एक ताजा अध्ययन में पता चला है कि दिल्ली के स्कूल और कॉलेजों की बिल्डिंग सबसे अधिक प्रदूषित हैं। इस अध्ययन में रेस्टोरेंट, अस्पतालों व सिनेमा हॉल में भी प्रदूषण का स्तर ‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ द्वारा निर्धारित सीमा से दो से पाँच गुना तक अधिक पाया गया है। शैक्षिक संस्थान, जैसे – स्कूल और कॉलेज, कमरे के भीतर के प्रदूषण के मामले में शीर्ष पर हैं। ‘भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-दिल्ली’ (आईआईटी-डी), के ‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर रिसर्च ऑन क्लीन एयर,’ ‘सोसायटी फॉर इनडोर एन्वायरमेंट’ द्वारा राजधानी के 37 भवनों में 15 अक्टूबर 2020 से 30 जनवरी 2021 के बीच किए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी है। इससे स्पष्ट होता है कि यह बच्चों के स्वास्थ्य पर बेहद बुरा असर डालेगी।

एक मनुष्य दिनभर में औसतन 20 हजार बार श्वास लेता है। इसी श्वास के द्वारा मानव 35 पौण्ड वायु का प्रयोग करता है। इस तरह मानव अपने जीवन को बनाये रखने हेतु औसतन 8,000 लीटर वायु अंदर एवं बाहर करता है। यदि वायु में अशुद्धि है अथवा उसमें प्रदूषक तत्वों का समावेश है तो वह श्वास द्वारा शरीर में पहुँचकर विभिन्न प्रकार से शरीर को प्रभावित करती है और अनेक भयंकर रोगों का कारण बन जाती है। यदि यह प्राण देने वाली वायु शुद्ध नहीं होगी तो यह प्राण देने के बजाय प्राण ले लेगी।

‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल 70 लाख लोगों की मृत्यु प्रदूषित हवा के कारण होती है। हाल ही में कोरोना की दूसरी लहर में लाखों लोगों को श्वास सम्बन्धी समस्या एवं फेफड़ों में संक्रमण के कारण अपनी जान गवानी पड़ी है। ऐसे में कमरे के भीतर की हवा में उपस्थित प्रदूषणकारी तत्वों की बढ़ती संख्या अब कोरोना की नई लहर बनकर बच्चों को अपनी चपेट में ले सकती है।   

लगातार बढ़ते प्रदूषण के कारण वायु में उपस्थित धूल-कण हवा के माध्यम से घर, रेस्टोरेंट, अस्पतालों, सिनेमा हॉल, दफ्तर व स्कूल और कॉलेज में पहुंच रहे हैं। घर की धूल कई वस्तुओं, तत्वों का जटिल मिश्रण होती है। धूल के कणों से लोगों को ‘क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस,’ ‘एलर्जिक सायनुसाइटिस’ व ‘एलर्जिक राइनाइटिस’ जैसे रोग हो सकते हैं जो काफी दर्दनाक और गंभीर रूप से घातक साबित हो सकते हैं।

‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ की रिपोर्ट ‘एयर पॉल्यूशन एंड चाइल्ड हेल्थः प्रिसक्राइबिंग क्लीन एयर’ के मुताबिक वर्ष 2016 में भारत में वायु प्रदूषण के कारण मरने वाले पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या एक लाख के करीब थी। यह संख्या विश्व में पांच वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों की वायु प्रदूषण से होने वाली मृत्यु का पांचवा भाग है।

वायु-प्रदूषण को कोरोना से जोड़कर नहीं भी देखा जाए तब भी यह प्रदूषण हर वर्ष लाखों लोगों की मौत का कारण बन रहा है। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ की रिपोर्ट के अनुसार घरेलू वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष विश्व स्तर पर मरने वालों की संख्या 35 लाख है, जो कि बाहरी प्रदूषण से मरने वालों की संख्या से बहुत ज्यादा है।

‘सेंटर फॉर साइंस ऐंड इनवायरन्मेंट’ (सीएसई) के अनुसार घर से बाहर का वातावरण और घर के अंदर का वातावरण दोनों ही वायु प्रदूषण जानलेवा बीमारियों को न्योता दे रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ‘वायु प्रदूषण भारत में स्वास्थ्य संबंधी सभी खतरों में मौत का अब तीसरा सबसे बड़ा कारण हो गया है। यह बाहरी ‘पार्टिकुलेट मैटर’ (पीएम) 2.5, ओजोन और घर के अंदर के वायु प्रदूषण का सामूहिक प्रभाव है। रिपोर्ट के अनुसार, ‘दुनियाभर में आज जन्मा कोई बच्चा वायु-प्रदूषण की स्थिति की तुलना में औसतन 20 महीने पहले दुनिया छोड़ जाएगा, वहीं भारत में लोगों की मृत्यु औसत से 2.6 साल पहले हो जाएगी।’

‘इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च’ (आईसीएमआर) की रिपोर्ट से ज्ञात हुआ है कि घरेलू वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली मौतों में सन 1990 से 2019 तक 64 प्रतिशत की कमी आयी है किन्तु आउटडोर हवा में मौजूद प्रदूषण से होने वाली मौतों में 115 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। सन 2019 में प्रदुषण के कारण 18 प्रतिशत मौतें हुई हैं। हमारे देश में वायु प्रदूषण का खतरा इतना अधिक है कि प्रदूषण से हुई मौतें, सड़क दुर्घटनाओं, आत्महत्याओं व आतंकवाद जैसे कारणों से होने वाली कुल मौतों की संख्या से भी अधिक है।

वायु-प्रदूषण का वनस्पति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है, विशेषकर अम्लीय वर्षा, धूम-कोहरा, ओजोन, कार्बन मोनो-ऑक्साइड, सल्फर-डाई-ऑक्साइड आदि का। वायु प्रदूषण के कारण पौधों को प्रकाश कम मिलता है जिसके कारण उनकी प्रकाश-संश्लेषण क्रिया पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। वायु-प्रदूषण से वृक्ष, सब्जियाँ, फल, फूल सभी प्रभावित होते हैं। अधिक वायु-प्रदूषण के क्षेत्र में पौधे परिपक्व नहीं हो पाते, कलियाँ मुरझा जाती हैं तथा फल भी पूर्ण विकसित नहीं हो पाते।

वायु-प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए ‘केन्द्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ द्वारा वायु-प्रदूषण संबंधी विभिन्न अधिनियमों, नियमों और अधिसूचनाओं को जारी किया गया है, किन्तु विभिन्न शोधों से पता चलता है कि हम इन सबके बावजूद वायु-प्रदूषण पर नियंत्रण पाने में सफल नहीं हो पा रहे है।

वायु प्रदूषण के भयावह परिणामों को देखते हुए सरकार को इसे रोकने के लिए समुचित कार्य योजना बनाकर सख्ती से पालन करना ही होगा, क्योंकि अब यह सीधे तौर पर बच्चों के स्वास्थ्य को प्रतिकूल तरीके से प्रभावित कर रहा है। सरकार को कोरोना की तीसरी लहर से बचाव व बच्चों की सुरक्षा के लिए शैक्षणिक संस्थानों को वायु-प्रदूषण से मुक्त रखने के लिए तत्परता दिखानी होगी। (सप्रेस)

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