जलवायु परिवर्तन का मौसम की बदलती तर्ज से गहरा नाता है और यह ताकतवर चक्रवाती तूफानों तथा बारिश के परिवर्तित होते कालचक्र से साफ जाहिर भी होता है। इसका विनाशकारी रूप अब दक्षिण पश्चिमी मानसून पर भी असर डालता दिख रहा है, जो चिंता का विषय हो सकता है।

मॉनसून 2021 भारत की दहलीज पर खड़ा है और अब वह केरल में दाखिल होने वाला है। केरल में मानसून के दस्तक देने की आधिकारिक तारीख 1 जून है मगर यह 4 दिन आगे-पीछे हो सकती है। मौसम विभाग ने इस साल 3 जून को मानसून के केरल पहुंचने की संभावना जताई है। इससे पहले मौसम के मॉडल मॉनसून के सही समय पर पहुंचने का इशारा देते थे। कभी-कभी तो मानसून एक-दो दिन पहले ही दस्तक दे देता था। मगर इस बार बंगाल की खाड़ी में आए चक्रवाती तूफान यास का निर्माण ऐसे वक्त पर हुआ जब मानसून आने का समय था। इस तूफान की वजह से मानसून की लहर ठहर गई।

चक्रवात ताउते और यास तूफानों ने की मानसून की रफ्तार कम

भारतीय वायुसेना में पूर्व एवीएम मीटियोरोलॉजी और स्काईमेट वेदर में मीटियोरोलॉजी एवं जलवायु परिवर्तन शाखा के अध्यक्ष जीपी शर्मा के मुताबिक “महासागरों के पानी के तापमान में हुई अभूतपूर्व वृद्धि की वजह से अरब सागर में ताउते और बंगाल की खाड़ी में यास रूपी दो शक्तिशाली चक्रवाती तूफान आए। इन तूफानों को संबंधित जल स्रोतों से अत्यधिक गतिज ऊर्जा मिली जिसकी वजह से केरल में मौसम संबंधी गतिविधि लगभग ठहर गई। मानसून लाने के लिए जरूरी हवा की रफ्तार और उसका चलन दोनों ही नदारद हो गए, जिसकी वजह से मानसून आने में देर हुई।” 

वायुमंडलीय एवं अंतरिक्ष विज्ञान विभाग के मौसम अनुसंधान एवं पूर्वानुमान संकाय के वैज्ञानिक एवं पुणे विश्वविद्यालय में इसरो जूनियर रिसर्च फेलो डॉक्टर सुशांत पुराणिक ने कहा “अनुकूल वातावरण स्थितियों की वजह से चक्रवात यास ने बहुत जल्दी तेजी पकड़ी और पूरी नमी तथा ऊर्जा को अपने साथ ले गया। मौसमी विक्षोभ पर हवा का संकेंद्रण भी शुरू हो गया। इसके परिणामस्वरूप मानसून का पूर्वी हिस्सा जो बंगाल की खाड़ी से गुजरा वह अधिक शक्तिशाली हो गया। वहीं, पश्चिमी हिस्सा जो अरब सागर से होकर बढ़ा, वह कमजोर हो गया। मानसून की आमद के लिए पश्चिमी हिस्से का ज्यादा ताकतवर होकर आगे रहना जरूरी है। यही वजह है कि हम केरल में मॉनसून को देर से पहुंचते देख रहे हैं।”

पुणे स्थित इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियोरॉलॉजी के जलवायु वैज्ञानिक मैथ्‍यू रोक्‍सी कोल इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं, ‘‘अब यह जगजाहिर हो चुका है कि दुनिया के महासागर वर्ष 1970 से उत्‍सर्जित ग्रीनहाउस गैसों के कारण उत्‍पन्‍न अतिरिक्‍त ऊष्‍मा का 90 प्रतिशत हिस्‍सा सोख चुके हैं। इसकी वजह से अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के महासागरों का तापमान असंगत रूप से बढ़ा है, इसकी वजह से चक्रवात तेजी से शक्तिशाली हो जाते हैं। ऊष्‍मा खुद में एक ऊर्जा है और चक्रवात महासागर में मौजूदा ऊर्जा को तेजी से गतिज ऊर्जा में बदलकर बेहद ताकतवर बन जाते हैं। पश्चिमी उष्‍णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) हिन्‍द महासागर एक सदी से भी ज्‍यादा वक्‍त से ट्रॉपिकल महासागरों के किसी भी हिस्‍से के मुकाबले ज्‍यादा तेजी से गर्म हो रहा है और वह वैश्विक माध्‍य समुद्र सतह तापमान (एसएसटी) के सम्‍पूर्ण रुख में सबसे बड़ा योगदानकर्ता है। ट्रॉपिकल साइक्‍लोन हीट पोटेंशियल (टीएचसीपी) महासागर की ऊपरी सतह के उस तापमान को नापने का पैमाना है जो तूफानों के लिये उपलब्‍ध ऊर्जा स्रोत होता है। गहरे रंगों से यह संकेत मिलता है कि अरब सागर के मौजूदा हालात चक्रवातजनन (साइक्‍लोजेनेसिस) में मदद कर सकते हैं।’’

जलवायु परिवर्तन और चक्रवातजनन  

पर्यवेक्षणों से जाहिर होता है कि वर्ष 1998 से 2018 के बीच मानसून के बाद के मौसम के दौरान अरब सागर में अत्‍यन्‍त भीषण चक्रवाती तूफानों (ईएससीएस) की आवृत्ति में इजाफा हुआ है। तूफानों के बार-बार आने के सिलसिले में आयी इस तेजी को मानव द्वारा उत्पन्‍न एसएसटी वार्मिंग से जोड़ने की बात मीडियम कान्फिडेंस से कही जा सकती है।

भारत सरकार के पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के आकलन और जलवायु के मॉडल्‍स से 21वीं सदी के दौरान उत्‍तरी हिन्‍द महासागर (एनआईओ) बेसिन में चक्रवाती तूफानों की तीव्रता बढ़ने की बात जाहिर होती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है जलवायु परिवर्तन यह संकेत देता है कि एसएसटी में बदलाव और उससे सम्‍बन्धित ट्रॉपिकल साइक्‍लोन (टीसी) गतिविधि अन्‍य महासागरीय बेसिन के मुकाबले हिन्‍द महासागर में जल्‍दी उभर सकती है। एनआईओ क्षेत्र में चिंता का एक और सम्‍भावित कारण यह है कि खासकर अरब सागर (एएस) क्षेत्र में हाल के वर्षों में टीसी की तीव्रता में अभूतपूर्व तेजी देखी गयी है। हाई-रिजॉल्‍यूशन वैश्विक जलवायु मॉडल के प्रयोगों से संकेत मिलते हैं कि मानव की गतिविधियों के कारण उत्‍पन्‍न ग्‍लोबल वार्मिंग के कारण मानसून के बाद के सत्र के दौरान अरब सागर क्षेत्र में अत्‍यन्‍त भीषण चक्रवात बनने की सम्‍भावना बढ़ गयी है।

जलवायु परिवर्तन और मानसून के सामने आगे का रास्‍ता

मौसम विज्ञानियों तथा विशेषज्ञों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का असर आने वाले समय में और भी साफ दिखाई देगा। कार्बन का उत्सर्जन बढ़ने की वजह से अरब सागर की सतह के तापमान में वृद्धि जारी रहेगी जिससे भविष्य में और भी भीषण तूफान आएंगे।

‘असेसमेंट ऑफ क्लाइमेट चेंज ओवर द इंडियन रीजन’ रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 1951 से 2015 के बीच भारत भर में जून से सितंबर के दौरान होने वाली मानसूनी बारिश में करीब 6% की गिरावट आई है, जिनमें सिंधु गंगा के मैदानों और पश्चिमी घाटों के इलाकों में यह गिरावट उल्लेखनीय रूप से हुई है। हाल की अवधि में अपेक्षाकृत ज्यादा जल्दी-जल्दी आने वाले सूखे स्पेल (1951-1980 की तुलना में 1981-2011 के दौरान 27% अधिक) की तरफ चीजों का झुकाव हुआ है और ग्रीष्म मॉनसून सत्र के दौरान अधिक सघन बारिश देखी गई है। बढ़ी हुई वातावरणीय नमी की वजह से स्थानीय स्तर पर भारी बारिश की आवृत्ति में बढ़ोत्तरी हुई है।

बीसवीं सदी के मध्य से भारत में सामान्य तापमान में बढ़ोत्तरी, मानसूनी बारिश में गिरावट, भीषण तपिश और बारिश, सूखा और समुद्र जल स्तर में वृद्धि देखी गई है। इसके अलावा मानसून की तर्ज में अन्य बदलावों के साथ साथ भीषण चक्रवाती तूफानों की तीव्रता में वृद्धि हुई है। ऐसे वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हैं जो यह मानने को मजबूर करते हैं कि इंसानी गतिविधियों के कारण क्षेत्रीय पर्यावरण पर वे प्रभाव पड़े हैं।

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