पहली अप्रैल से प्रभावी हो गए ई-वेस्ट मैनेजमेंट नियम को अब सख्ती से लागू किया जायेगा। इस कानून के मुताबिक ई कचरा पैदा करने वाले को ही उसके निष्पादन की जिम्मेदारी भी उठानी होगी। ऐसा न करने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा, जिसमें उन्हें जुर्माना और जेल दोनों ही भुगतना पड़ सकता है।
e-waste ई कचरे के दायरे में 21 वस्तुओं की जगह अब 106 वस्तुओं को शामिल किया गया है, जिसमें मोबाइल चार्जर से लेकर घरों में इस्तेमाल की जाने वाली सभी छोटी-बड़ी इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल चीजें इनमें खराब हो चुकी या लाइफ पूरी कर चुकी इलेक्ट्रॉनिक चीज़ें शामिल हैं। इलेक्ट्रिक कचरे में मुख्य रूप से बिजली और बैटरी से चलने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, टीवी, वाशिंग मशीन, रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर समेत तमाम चीजें आती हैं।
कचरा निष्पादन के लिए स्थापित होगें कलेक्शन सेंटर
अब पंचायतों एवं नगर निकायों को इस कचरे के निष्पादन के लिए कलेक्शन सेंटर स्थापित करने होंगे। चूँकि इलेक्ट्रिक कचरे का बड़े स्तर पर उत्पादन करने वाले उपभोक्ता, जिनमें सरकारी दफ्तर, बैंक समेत कई बड़ी एजेंसियां शामिल हैं, उनके लिए इन नियमो में जरूरी किया गया है कि वे ई-कचरे को रिसाइकिलिंग व कलेक्ट करने वाली पंजीकृत एजेंसी को प्रदान करें। इसके तहत ई-कचरे के संग्रहण और रिसाइकिलिंग की जिम्मेदारी री-साइक्लर की होगी। इसके बदले उन्हें ई-कचरे से निकलने वाली कीमती धातुएं मिलेंगी। साथ ही वह जितना ई- कचरा री-साइकिल करेंगे, उतनी मात्रा का सर्टिफिकेट ब्रांड उत्पादकों को बेच सकेंगे। सभी 106 वस्तुओं को तैयार करने वाले उत्पादकों को पोर्टल पर खुद को रजिस्टर्ड कराना जरूरी होगा इसके अलावा सभी री-साइकिल को भी पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा और उसी आधार पर ही उन्हें नए उत्पादन की अनुमति मिलेगी।
हमारी सुविधाएं, विकास के प्रतिमान और आधुनिकता के आईने जल्दी ही हमारे लिए गले का फंदा बनने वाला है। पर्यावरण और वन मंत्रालय की वेबसाइट कहती है कि वर्ष 2021-22 में देश में कुल उत्पन्न 16,01,155 टनई कचरे का महज 32. 9 फीसदी ही पुनर्चक्रित क्या जा सका। जाहिर है कि शेष 67 प्रतिशत कचरा यूँ ही किसी कूड़ा ढलाव घर में प्रकृति को जहर बना रहा है ।
देश में सालाना 18.5 लाख टन ई कचरे का उत्पाद
एक अनुमान है कि इस साल कोई 33 लाख मेट्रीक टन ई कचरा उत्पादित हो जाएगा और यदि इसके सुरक्षित निबटारे के लिए अभी से काम नहीं किया गया तो देश की धरती, हवा और पानी में इतना जहर घुल जाएगा कि उसका निदान होना मुश्किल होगा। कहते हैं ना कि हर सुविधा या विकास की माकूल कीमत चुकानी ही होती है, लेकिन इस बात का नहीं पता था कि इतनी बड़ी कीमत चुकानी होगी। सनद रहे आज देश में लगभग 18.5 लाख टन ई कचरा हर साल निकल रहा है।
यदि गैर सरकारी संगठन toxic link ‘‘टाक्सिक लिंक’ की रिपोर्ट पर भरोसा करें तो दिल्ली में सीलमपुर, शास्त्री पार्क, तुर्कमान गेट, मंडोली, लोनी, सीमापुरी सहित कुल 15 ऐसे स्थान हैं जहां सारे देश का ई-कचरा पहुंचता है और वहां इसका गैर-वैज्ञानिक व अवैध तरीके से निस्तार होता है। इसके लिए बड़े स्तर पर तेजाब या अम्ल का इस्तेमाल होता है और उससे वायु प्रदूषण के साथ-साथ धरती के बंजर होने और विषैले तरल के कारण यमुना नदी के जल के जहरीले होने का प्रारंभ हो चुका है।
ई-कचरे का निपटान आसान नहीं
टीवी व पुराने कम्प्यूटर मॉनिटर में लगी सीआरटी (केथोंड रे ट्यूब) को रिसाइकल करना मुश्किल होता है। इस कचरे में लेड, मरक्युरी, केडमियम जैसे घातक तत्व भी होते हैं। दरअसल ई-कचरे का निपटान आसान काम नहीं है क्योंकि इसमें प्लास्टिक और कई तरह की धातुओं से लेकर अन्य पदार्थ रहते हैं। सबसे खतरनाक कूड़ा तो बैटरियों, कंप्यूटरों और मोबाईल का है। इसमें पारा, कोबाल्ट, और ना जाने कितने किस्म के जहरीले रसायन होते हैं। कैडमियम से फेफड़े प्रभावित होते हैं, जबकि कैडमियम के धुएं और धूल के कारण फेफड़े व किडनी दोनों को गंभीर नुकसान पहुंचता है। एक कंप्यूटर का वजन लगभग 3.15 किलो ग्राम होता है। इसमें 1.90 किग्रा सीसा और 0.693 ग्राम पारा और 0.04936 ग्राम आर्सेनिक होता हे। जो जलाए जाने पर सीधे वातावरण में घुलते हैं। इनका अवशेष पर्यावरण के विनाश का कारण बनता है। शेष हिस्सा प्लास्टिक होता है। इसमें से अधिकांश सामग्री गलती-सड़ती नहीं है और जमीन में जज्ब हो कर मिट्टी की गुणवत्ता को प्रभावित करने और भूगर्भ जल को जहरीला बनाने का काम करती है। ठीक इसी तरह का जहर बैटरियों व बेकार मोबाईलों से भी उपज रहा है। इनसे निकलने वाले जहरीले तत्व और गैसें मिट्टी व पानी में मिलकर उन्हें बंजर और जहरीला बना देते हैं। फसलों और पानी के जरिए ये तत्व हमारे शरीर में पहुंचकर बीमारियों को जन्म देते हैं।
कचरे को अवैज्ञानिक तरीके से निपटान खतरनाक
देश के अधिकांश छोटे- बड़े शहरों में ई कचरे का लगभग 97 फीसदी कचरे को अवैज्ञानिक तरीके से जला कर या तोड़ कर कीमती धातु निकाली जाती है व शेष को यूं ही कहीं फैंक दिया जाता है। इससे रिसने वाले रसायनों का एक अदृश्य लेकिन भयानक तथ्य यह है कि इस कचरे की वजह से पूरी खाद्य श्रंखला बिगड़ रही है। ई-कचरे के आधे-अधूरे तरीके से निस्तारण से मिट्टी में खतरनाक रासायनिक तत्त्व मिल जाते हैं जो पेड़-पौधों के अस्तित्व पर खतरा बन रहा है। इसके चलते पौधों में प्रकाश संशलेषण की प्रक्रिया ठीक से नहीं हो पाती है और जिसका सीधा असर वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा पर होता है। इतना ही नहीं पारा, क्रोमियम , कैडमियम , सीसा, सिलिकॉन, निकेल, जिंक, मैंगनीज, कॉपर आदि भूजल पर भी असर डालते हैं ।
अकेले भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए इलेक्ट्रानिक वस्तुओं का इस्तेमाल भले ही अब अनिवार्य बन गया हो, लेकिन यह भी सच है कि इससे उपज रहे कचरे को सही तरीके से नष्ट (डिस्पोज) करने की तकनीक का घनघोर अभाव है। घरों और यहां तक कि बड़ी कंपनियों से निकलनेवाला ई-वेस्ट ज्यादातर कबाड़ी उठाते हैं। वे इसे या तो किसी लैंडफिल में डाल देते हैं या फिर कीमती मेटल निकालने के लिए इसे जला देते हैं, जोकि और भी नुकसानदेह है। हमारे यहां ई-कचरा या कबाड़ा आमतौर पर सामान्य कूड़े-कचरे के साथ ही इसे जमा किया जाता है और अक्सर उसके साथ ही डंप भी कर दिया जाता है। ऐसे में इनसे निकलने वाले रेडियोएक्टिव और दूसरे हानिकारक तत्व भूजल और जमीन को प्रदूषित कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि हम या कंपनियां बेकार हो गए इलेक्ट्रानिक उपकरणों को स्थानीय कबाड़ी को बेचती हैं व कबाड़ी उन्हें मेटल या धातु निकालने वालों को बेच देता है। वे इसमें महंगी धातुओं को निकालने के लिए इन्हें जलाते हैं या फिर तेजाब या ऐसिड में उबालते है। धातु निकालने के बाद बचा हुआ ऐसिड या तो जमीन में डाल दिया जाता है या फिर आम नालियों में बहा दिया जाता है।
ऐसा भी नहीं है कि ई-कचरा महज कचरा या आफत ही है। झारखंड के जमशेदपुर स्थित राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला के धातु निष्कर्ष्ण विभाग ने ई- कचरे में छुपे सोने को खोजने की सस्ती तकनीक खोज ली है। इसके माध्यम से एक टन ई-कचरे से 350 ग्राम सोना निकाला जा सकता है। जानकारी है कि मोबाइल फोन पीसीबी बोर्ड की दूसरी तरफ कीबोर्ड के पास सोना लगा होता हैं। अभी यह भी समाचार है कि अगले ओलंपिक में विजेता खिलाड़ियों को मिलने वाले मैडल भी ई-कचरे से ही बनाए जा रहे हैं। नया कानून लागू होने के बाद अब यह भी देखना होगा कि इसके ईमानदारी से क्रियान्वयन की जिम्मेदारी किस विभाग के पास आती है, सबसे बड़ी बात हम आम लोगों को इस जहरीले कचरे के बारे में कितनी जल्दी समझा सकते हैं।
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