डॉ.खुशालसिंह पुरोहित

किसी राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर आम लोगों का ध्यान आकर्षित करने की गरज से ‘दिवस’ घोषित किए जाते हैं। करीब तेरह साल पहले 21 मार्च को इसीलिए ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने ‘विश्व वानिकी दिवस’ घोषित किया था। अब इतने साल बाद वनों की क्या हालत है?

21 मार्च : विश्व वानिकी दिवस

‘विश्व वानिकी दिवस’ एक अंतरराष्ट्रीय दिवस है जो हर साल 21 मार्च को सारी दुनिया में मनाया जाता है। सामाजिक जीवन में वनों के महत्व की जागरूकता बढ़ाता यह दिवस ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने 2012 में घोषित किया था। हर वर्ष यह दिन वर्तमान समाज और आने वाली पीढ़ियों के लिए हरित आवरण के महत्व के बारे में जागरूक करने के लिए मनाया जाता है।

विश्व वानिकी दिवस’ की इस साल, 2025 की थीम है – ‘वन और भोजन।’ खाद्य-सुरक्षा हमें अन्न से ही मिलती है। जिस हिसाब से जनसंख्या बढ़ रही है, उससे आने वाले दिनों में पृथ्वी पर अन्न उत्पादन का दबाव निःसंदेह बढ़ने वाला है। बढ़ती जनसंख्या को हम तभी खाद्यान्न उपलब्ध करा सकते हैं, जब कृषि भूमि की उर्वरता बनी रहे। ‘विश्व वानिकी दिवस’ की इस थीम का अर्थ है, पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवन किसी-न-किसी तरह से वनों के अस्तित्व से जुड़े हैं। हम जो पानी पीते हैं, जो दवाइयाँ लेते हैं, जो भोजन खाते हैं, जिस आश्रय में रहते हैं, यहाँ तक कि हमें जिस प्राणवायु की ज़रूरत होती है, इन सभी का संबंध वनों से है।

आज दुनिया जिस कठिन दौर से गुज़र रही है, उसमें जलवायु परिवर्तन, ओजोन गैस का ख़तरनाक स्तर पर पहुंचना प्रमुख है, जबकि इसके पीछे मुख्य कारण पृथ्वी पर मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप होने वाला प्रदूषण है। तापमान में ख़तरनाक वृद्धि और मौसम-चक्र में बढ़ रही प्रतिकूलता हमारे ग्रह पर जीवन के संकट का स्पष्ट संकेत है। इस दिन का उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति से धरती पर जीवन को सुरक्षित रखने के लिए अपना योगदान देने का आग्रह करना है।

मानव जीवन के तीन बुनियादी आधार शुद्ध हवा, ताजा पानी और उपजाऊ मिट्टी मुख्य रूप से वनों पर ही आधारित हैं। इसके साथ ही वनों से कई अप्रत्यक्ष लाभ भी हैं, जैसे – खाद्य पदार्थ, औषधियां, फल-फूल, ईंधन, पशु-आहार, इमारती लकड़ी, वर्षा संतुलन, भू-जल संरक्षण और मिट्टी की उर्वरता आदि। प्रसिद्ध वन विशेषज्ञ प्रो. तारक मोहनदास ने अपने शोध में बताया है कि 50 साल में तैयार 50 टन वजनी, मध्यम आकार के वृक्ष से चीजों एवं अन्य प्रदत्त सुविधाओं की कीमत लगभग 15.70 लाख रूपये होती है।

वन विनाश आज समूचे विश्व की प्रमुख समस्या है, सभ्यता के विकास और तीव्र औद्योगीकरण के फलस्वरूप आज दुनिया वन विनाश के कगार पर खड़ी है। वनों के विनाश का सवाल इस सदी का सर्वाधिक चिंता का विषय बन गया है। पिछले पांच दशकों से इस पर बहस छिड़ी हुई है और विश्व में वनों का विनाश रोकने के प्रयास भी तेज हुए हैं।

हालांकि देश में पर्यावरण और वनों के प्रति आम लोगों में जागरूकता आयी है, लेकिन हरीतिमा में अपेक्षित विस्तार नहीं हो पा रहा है। पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में औद्योगिक विकास की गति थोड़ी धीमी रही, किन्तु स्वतंत्रता के बाद तीन गुना बढ़ी जनसंख्या का दबाव वन एवं वन्य प्राणियों पर पड़ना स्वाभाविक ही था। यही कारण था कि हमारे समृद्ध वन क्षेत्र सिकुड़ते गये और वन्य प्राणियों की अनेक जातियां धीरे-धीरे विलुप्ति की ओर बढ़ने लगीं।

हमारे देश के संबंध में यह सुखद बात है कि वानिकी के प्रति प्रेम का संदेश हमारे धर्मग्रंथों और नीतिशतकों में प्राचीनकाल से ही रहा है। सभी पूजा-पाठ में तुलसी-पत्र और वृक्ष पूजा के विभिन्न पर्वों की हमारी समृद्ध परंपरा रही है। यह लोक मान्यता रही है कि सांझ हो जाने पर पेड़-पौधों से छेड़-छाड़ नहीं करना चाहिए, क्योंकि पौधों में प्राण हैं और वे संवेदनशील होते हैं। हमारे देश में एक तरफ वनों के प्रति श्रृद्धा और आस्था का यह दौर रहा, लेकिन दूसरी ओर बड़ी बेरहमी से वनों को उजाड़ा जाता रहा। यह सिलसिला अभी भी थमा नहीं है।         

आज हम जितनी सभ्य और विकसित दुनिया में जी रहे हैं उतने ही प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। हमारे सामाजिक जीवन में वन, उपवन और उद्यानों की विरल होती जा रही परंपरा में आजकल तुलसी का पौधा भी घरों के आँगन में कम होता जा रहा है। वन महत्वपूर्ण प्राकृतिक संपदा है, जो न केवल देश की समृध्दि को बढ़ाते हैं वरन देश के पर्यावरण संतुलन को भी बनाये रखते हैं। आज विश्व की जलवायु में आश्चर्यजनक परिवर्तन हो रहे हैं। इसमें वन कटाई प्रमुख कारण है। इस विषय पर अब तक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बहस हो चुकी है। पर्यावरण विमर्श में जलवायु परिवर्तन सर्वाधिक महत्व का मुद्दा है। जलवायु परिवर्तन और स्थायी विकास के मुद्दों में गहरा संबंध है। हमारे देश में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सामाजिक संकट आने की संभावना बनी रहती है, क्योंकि भारतीय ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था के संतुलन का जलवायु संतुलन से सीधा संबंध है।

भारतीय संस्कृति मूलतः अरण्य संस्कृति रही है। हमारे मनीषियों ने वनों के सुरम्य, शांत और स्वच्छ परिवेश में चिंतन मनन कर ऐसे अनेक महान ग्रंथों की रचना की थी जो आज भी विश्व मानवता का मार्गदर्शन कर रहे हैं। सन् 1976 में 42 वें संविधान संशोधन के जरिये संविधान में पर्यावरण संबंधी मुद्दे शामिल किए गये थे। राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 48 ‘अ’ जोड़ा गया जिसमें कहा गया है कि राज्य देश के प्राकृतिक पर्यावरण, वनों एवं वन्यजीवों की सुरक्षा तथा विकास के संरक्षण के उपाय करेगा। मौलिक कर्तव्यों से संबंधित अनुच्छेद 51 ‘अ’ में कहा गया है कि वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन की सुरक्षा व विकास तथा सभी जीवों के प्रति सहानुभूति हरेक नागरिक का कर्तव्य होगा।इसके साथ ही वन एवं वन्य जीवन से जुड़े सवालों को ‘राज्य की सूची’ से उठाकर ‘समवर्ती सूची’ में शामिल कर दिया गया है।

भारत में ‘विश्व वानिकी दिवस’ का विशेष महत्व है। ‘खेजड़ी के शहीदों’ से लेकर ‘चिपको आंदोलन’ तक पेड़ और प्रकृति रक्षा की महान विरासत हमारी राष्ट्रीय धरोहर है। हमने विश्व को संदेश दिया है कि पेड़ों से हमारे पारिवारिक रिश्ते हैं, हम पेड़ को अपना भाई मानते हैं, उसकी रक्षा में प्राणों की बलि देने में हम संकोच नहीं करते। हम जानते हैं कि पर्यावरण की रक्षा अपने होने की रक्षा है। आज के विश्व के सुखद भविष्य के लिए इसी संदेश की आवश्यकता है। (सप्रेस)