कहावत है कि ‘फिसल पडे की हर गंगा,’ यानि गलती से फिसल गए तो हर गंगा कहकर डुबकी मार ली और पुण्य कमा लिया। कोविड-19 के दौर में कुछ ऐसा ही हुआ है। बीमारी से बचने की खातिर देशभर में सम्पूर्ण लॉकडाउन लगाया गया था, उसे भारी लानत-मलामत भी झेलनी पड़ी थी, लेकिन बदले में उसी लॉकडाउन ने अप्रत्याशित रूप से पर्यावरण में जाहिर सुधार कर दिया।
वर्ष 2020 कोरोना महामारी एवं उससे पैदा समस्याओं के साथ-साथ कुछ समय के लिए साफ हुए पर्यावरण एवं इस कारण फैली प्राकृतिक छटा के लिए भी याद किया जाना चाहिये। जो पीढ़ी अभी 25-30 वर्ष की है उसने शहरी क्षेत्रों में इतना साफ पर्यावरण नहीं देखा होगा। इससे पुरानी पीढ़ी ने जो साफ पर्यावरण देखा था, वह अब उनकी यादों में ही होगा एवं उसने कल्पना भी नहीं की होगी कि पर्यावरण इतना साफ हो जाएगा, भले ही कम समय के लिए हो? बिगड़े एवं प्रदूषित पर्यावरण को कम समय के लिए साफ-सुथरा करने का यह कार्य कोरोना वायरस (काविड-19) की एक बड़े चम्मच जितनी मात्रा ने किया है।
दुनिया के दूसरे देशों के साथ हमारे देश में भी लॉकडाउन से पर्यावरण सुधार के अलग-अलग नजारे देखे गये। लॉकडाउन के बाद 8-10 दिनों में ही 103 शहरों में से 85 से ज्यादा शहरों में वायु गुणवता-सूचकांक (ए.क्यू.आय.) 100 से नीचे आ गया। चारों महानगरों दिल्ली, मुम्बई, चैन्नई, कोलकता में मार्च से मई के मध्य खतरनाक माने गये महीन कण-पीएम10 एवं 2.5 की मात्रा 40 से 60 प्रतिशत तक घट गयी थी। आंकड़ों में साफ हुई हवा को कई स्थानों पर लोगों ने महसूस भी किया।
पश्चिमी बंगाल के रायगंज (जिला – दीनाजपुर) से लगभग 250 कि.मी. दूरी पर स्थित कंचनजंगा की पर्वत मालाएं दिखायी देने लगीं। इसी प्रकार जालंधर से भी लगभग 200 कि.मी. दूरी पर फैली धोला-धार की बर्फीली पहाड़ियों के भी दर्शन होने लगे थे। मध्यप्रदेश के व्यावसायिक शहर इन्दौर की एम.आर. 10 सड़क पर बने एक पुल से 35 कि.मी. दूर देवास की पहाड़ी पर लगी पवन चक्कियां लोगों ने देखीं। मुम्बई एवं आसपास की हवा भी इतनी साफ हुई कि लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा लगभग 10-15 वर्षों बाद साफ आकाश, दिन में नीला एवं रात को तारों से भरा दिखायी दिया।
नवी मुम्बई का तलवे-वेटलैंड अप्रैल में ही विदेशी गुलाबी पंखों वाले फ्लेमिंगो पक्षियों से भर गया। मेरीन-ड्राइव पर समुद्र में डाल्फिन नजर आने लगी। ओडीसा के समुद्र तट पर विरल प्रजाति में शामिल ओलिव रीड से कछुए देखे गये। रांची (झारखंड) में वायु प्रदूषण घटने से फरवरी के अंत तक लौटने वाले प्रवासी पक्षी अप्रैल के अंत तक जमे रहे। राजस्थान के चुरू जिले में स्थित ‘तालछापर कृष्णमृग अभयारण्य’ में ग्रेटर फ्लेमिंगो के अलावा अफ्रीका मूल के कई पक्षी जो शीतकाल (अक्टूबर, नवम्बर) में आते हैं वे साफ-सुथरी हवा के कारण सितम्बर में ही पहुंच गये। मनुष्यों के लिए लगाया लॉकडाउन कई वन्य जीवों के लिए ‘अन-लॉक’ साबित हुआ। चंडीगड़ के सेक्टर पांच में तेंदुए तथा मध्यप्रदेश के बैतूल राजमार्ग पर हिरणों के झुंड विचरते देखे गये। केरल राज्य के कोझीकोड की एक सड़क पर बिग केट (मालाबार सिवीट) भी देखी गयी थी तथा शितुर जिले में हाथियों का काफिला जंगल से सड़क पर आकर घूमते देखा गया। कई शहरों के आसपास के खेतों में मोर व हिरण विचरण करते पाये गये।
लॉकडाउन के 10-12 दिनों में ही गंगा नदी के प्रदूषण में 40-50 प्रतिशत सुधार देखा गया। गंगा के पानी के निगरानी केन्द्रों पर पानी बदबूदार काले रंग से गंधहीन मटमैला हो गया एवं उसमें नाइट्रेट की मात्रा भी घट गयी। दिल्ली में यमुना का पानी भी झागदार नहीं रहा। नर्मदा, गोमती, हिंडन तथा कई अन्य नदियों का पानी भी साफ हो गया। औंकारेश्वर में नर्मदा का पानी इतना साफ हो गया कि तल के पत्थर दिखायी देने लगे। इन्दौर की कान्ह नदी 20-22 कि.मी. की दूरी पर उज्जैन रोड पर बसे सांवेर तक साफ हो गयी। नदियों के साथ-साथ कई झीलें भी स्वच्छ व निर्मल हो गयीं, जिनमें उदयपुर की ‘फतेहसागर,’ हैदराबाद की ‘हुसैन सागर’ तथा चम्बा जिले की ‘खाजियार’ प्रमुख हैं।
देश का ताज या मुकुट कहे जाने वाले हिमालय ने भी लॉकडाउन में राहत की सांस ली। पर्यटन नहीं होने से कूडा-कचरा कम फैला तथा वाहनों से पैदा प्रदूषण भी काफी कम हुआ। हिमालय के आसपास के देशों में भी लॉकडाउन के कारण कम प्रदूषित हवाओं में ब्लेक कार्बन की मात्रा भी कम जमा हो पायी। लॉकडाउन में प्रदूषण घटने से प्रकृति को नया जीवन मिला। इस पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति डीवाय चन्द्रचूड ने कहा था कि ’’मैंने रात में आसमान में बहुत तारे देखे, घर के सामने मोर घूमते दिखे, काश! लॉकडाउन कुछ और महीने जारी रहे।’ (सप्रेस)
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