गर्मी की तीखी धूप और मूसलाधर बरसात से बचने के लिए प्रकृति ने हमें पेडों के रूप में सामूहिक छाते उपलब्ध करवाए हैं। मानसून का यह मौसम इन ‘छातों’ को रोपने का है। ग्रीन ‘इको फ्रेंडली’ ‘एयर कंडीशनर’ से ताजी हवा सर्कुलेट होती है जो सुगंधित और स्वच्छ भी होती है। इन छातों के नीचे कभी आंख बंदकर कर बैठें तो संगीत की स्वर-लहरी सुनाई देगी। यह पक्षियों का कलरव है जो इन पर बसेरा पाते हैं।
बारिश और धूप से बचने के लिए हम अक्सर छाते का उपयोग करते हैं। अलग-अलग तरह के छोटे-बड़े-फोल्डिंग, तो कभी पुराने जमाने के मुड़े हुए हैंडिल वाले, परंतु जिनके पास अपने स्वयं के छाते नहीं होते वे तो सड़कों के किनारे लगे बड़े-बड़े प्राकृतिक छातों के नीचे खड़े होकर ही तेज धूप और पानी से बचने की कोशिश करते हैं। अक्सर मई-जून के महीने में डामर या सीमेंट की सड़कों के किनारे तपती दोपहर में मनुष्य-तो-मनुष्य, पशु भी छाया ढूंढते नजर आते हैं।
मैं बात कर रहा हूं सड़कों के किनारे लगे हरे, प्राकृतिक छातों अर्थात पेड़ों की। जहां एक ओर हमारे छाते केवल व्यक्तिगत सुविधा उपलब्ध कराते हैं, वहीं ये सामुदायिक छाते सहकार की भावना लिए पूरे समुदाय का ध्यान रखते हैं। इनकी इसी खास उपयोगिता को ध्यान में रखकर पहले भी लंबी-लंबी सड़कों के किनारे मीलों तक घने छायादार पेड़ लगवाए जाते रहे हैं। याद कीजिए शेरशाह सूरी द्वारा बनवाई गई 2500 मील लंबी ‘ग्रैंड ट्रंक रोड’ जिसके दोनों किनारों पर उन्होंने छायादार वृक्ष लगवाए थे। कहते हैं, सम्राट अशोक ने भी अपने शासनकाल में आम और इमली के छायादार वृक्ष लगाए थे।
सड़कों के किनारे लगे ये छाते दिनों-दिन बढ़ते भी हैं और सांस भी लेते हैं और हमेशा खुले रहते हैं। छातों की इस बिरादरी में कुछ छाते बिलकुल हरे हैं तो कुछ प्रिंटेड और कुछ तो फैशनेबल भी। कुछ छाते हमेशा हरे रहते हैं, जैसे – पीपल, नीम, बरगद, गूलर आदि, तो कुछ अपना रंग बदलते हैं, फैशनेबल छातों की तरह। इनके छातों के कपड़े लाल, पीले, छींटदार होते हैं, जैसे – गुलमोहर, अमलतास और शिरीष।
इन छातों की छोटी-बड़ी शाखाएं ताड़ियों का काम करती हैं जिन पर पत्तियों का कपड़ा चढा होता है। कुछ छातों में कपड़ा काफी मोटा और गफ होता है, जैसे – बरगद, पाकड़ और गूलर, तो कुछ छातों में पीपल की तरह पतला और नीम की तरह झिरझिरा होता है जिसमें से धूप छन-छनकर आती रहती है, पर भर-गर्मी में नीम का यह झीना कपड़ा भी काफी सुकून देता है।
ये हरे छाते सिर्फ अपने आसपास की हवा को ही ठंडा नहीं करते। इनकी छाया के चलते धूप की चमक और गर्मी भी धरातल पर नहीं पहुंच पाती। इस तरह वृक्षों के कारण आसपास के भवन व सड़क आदि खुले स्थानों की तुलना में अपेक्षाकृत कम गर्म होते हैं। सन 1988 में अर्ध-शहरी क्षेत्र में किया गया अध्ययन बताता है कि जहां पेड़ ज्यादा होते हैं वहां दिन का तापमान वृक्ष-विहीन स्थानों की अपेक्षा 1.7 से लेकर 3.3 डिग्री सेल्सियस तक कम होता है।
फ्लोरिडा (अमेरिका) में किए गए एक अध्ययन से बड़े पेड़ों के कारण तापमान में 3.6 डिग्री सेल्सियस की कमी पाई गई थी। इस क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिक अकबरी का मानना है कि वृक्षों का घनत्व 25% बढ़ा देने से आसपास का तापमान 3.3 से लेकर 5 डिग्री तक कम किया जा सकता है। वृक्ष हमें तेज गर्मी से राहत पहुंचाते हैं। वे सीधे नीचे आने वाली धूप को रोक देते हैं। कुछ प्रकाश को पत्तियां परावर्तित कर देती हैं। दूसरा तरीका है, वाष्पीकरण का।पत्तियों के ऊपर और नीचे लाखों वायु-छिद्र पाए जाते हैं जिनके द्वारा पत्तियों पर गिरने वाली धूप की गर्मी से पत्तियों के अंदर का पानी वाष्प बनकर उड़ता रहता है। इस क्रिया के कारण पत्तियां हवा की तुलना में ठंडी बनी रहती हैं। इन पत्तियों से टकराकर आने वाली हवा भी ठंडी हो जाती है।
कुछ छाते तो गजब के हैं। कभी गर्मियों में आम के नीचे से गुजरकर देखें जहां ठंडी-ठंडी बूंदें भी टपककर गजब की ठंडक का एहसास कराती हैं। जीवन की आपाधापी में कुछ समय मिले तो कभी गर्मी में एक-दो दिन अमराई में गुजारिए तो सही। आप ‘एयर-कंडीशन’ और ‘हेप्पा फिल्टर’ भूल जाएंगे। ठंडी हवा के झोंके कोयल की मधुर कूक के साथ आपको सुनाई देंगे। तभी आप समझ पाएंगे कि अमराई में कोयल क्यों कूकती है।
अध्ययनों से पता चला है कि पेड़ों के आसपास की हवा का तापमान गर्मियों में खुले स्थानों की अपेक्षा 2 डिग्री सेल्सियस तक कम होता है। सेंटामॉरिस द्वारा 2001 में किए गए एक अध्ययन से पता चला था कि एक पेड़ 5 ‘एयर कंडीशनर’ के बराबर हवा ठंडी कर इतनी उर्जा बचाता है। दरअसल पेड़ सूर्य की ऊर्जा से चलने वाले ‘एयर कंडीशनर’ हैं। ये कृत्रिम ‘एयर कंडीशनर’ की तरह अंदर की हवा को ठंडी करके बाहर गर्म हवा नहीं फेंकते।
इस दिशा में अध्ययनरत वैज्ञानिक अकबरी का कहना है कि पेड़ों द्वारा की गई ‘एयर कंडीशनिंग’ से धुआं और प्रदूषण भी कम होता है। एक पेड़ द्वारा किए जाने वाले इस कार्य की कीमत 200 डॉलर आंकी गई है। ये ‘एयर कंडीशनर’ भारी-भरकम बिजली भी खर्च नहीं करते और ना ही इनका कोई मोटा बिल आता है। इनकी बाहरी यूनिट से बहुत ही गर्म हवा निकलती है जो कमरे को तो ठंडा कर देती है, पर हमारी सड़कों, गलियों अर्थात बाहरी पर्यावरण को और अधिक गर्म कर देती है। ऐसे में सड़क चलते राहगीर पर गर्मी की दोहरी मार पड़ती है।
ग्रीन ‘इको फ्रेंडली’ ‘एयर कंडीशनर’ से ताजी हवा सर्कुलेट होती है जो सुगंधित और स्वच्छ भी होती है। इन छातों पर कभी-कभी रसीले फल भी लगते हैं जिनमें से कुछ बारहमासी हैं। इन छातों के नीचे कभी आंख बंदकर कर बैठें तो संगीत की स्वर-लहरी सुनाई देगी। यह पक्षियों का कलरव है जो इन पर बसेरा पाते हैं। मत्स्य पुराण में एक बहुत ही सारगर्भित श्लोक है – दस कूप समा वापी, दस वापी समो हृद:। दस हृद: सम:पुत्र, दस पुत्रो समो द्रुम:।।
अर्थात 10 कुओं के बराबर एक बावड़ी, 10 बावड़ी के बराबर एक तालाब, 10 तालाबों के बराबर एक पुत्र तथा 10 पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है। अर्थात वृक्षों की महिमा सर्वोपरि है। इसलिए इस बारिश के मौसम में सड़कों के किनारे तथा ट्रैफिक सिग्नलों के आस-पास अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाइए, ताकि आपको धूप से बचने के लिए इधर-उधर भटकना न पड़े। (सप्रेस)
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