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एक जमाने में शरद ऋतु के गुलाबी जाडे का इंतजार किया जाता था, लेकिन आजकल यह मौसम जहरीली, प्रदूषित हवा के कारण डराता है। जाहिर है, हम धीरे-धीरे खतरनाक बीमारियों की तरफ बढते जा रहे हैं।
बढ़ते वायु-प्रदूषण से भारत के 40 प्रतिशत लोगों की औसत आयु 10 साल तक कम हो सकती है। हैरानी है कि वायु-प्रदूषण से जुड़े जो ताजा आंकड़े आए हैं, उनका विस्तार समूचे भारत के साथ पूर्वोत्तर तक है, जबकि इस क्षेत्र में प्रदूषण की गुंजाइश कम-से-कम है। अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय की शोध संस्था ‘एपिक’ (एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट एट यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो) द्वारा तैयार किए गए ‘वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक-2022‘ (एक्यूएलआई) ने चिंताजनक जानकारी दी है। उसके मुताबिक पूरे भारत में एक भी ऐसा स्थान नहीं हैं, जहां वायु की गुणवत्ता ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (डब्ल्यूएचओ) के मानकों के अनुसार हो। ‘डब्ल्यूएचओ’ के अनुसार पीएम – 2.5 का स्तर 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से कम होना चाहिए। भारत में 63 प्रतिशत आबादी ऐसे स्थानों पर रहती है, जहां का वायु मानक 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से भी अधिक प्रदूषित है। जाहिर है, ऐसी आबादी ज्यादा संकटग्रस्त है।
मध्य-पूर्वी और उत्तर भारत में रहने वाले करीब 48 करोड़ लोग खतरनाक वायु-प्रदूषण की गिरफ्त में हैं। इनमें दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रदूषित है। यहां पीएम – 2.5 का स्तर सबसे ज्यादा 197.6 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। उत्तरप्रदेश में यह 83.3 माइक्रोग्राम, बिहार में 86 माइक्रोग्राम, हरियाणा में 80.8 माइक्रोग्राम, बंगाल में 66.4 माइक्रोग्राम और पंजाब में 65.7 माइक्रोग्राम प्रति ब्यूबिक मीटर है। नतीजतन दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार, हरियाणा और झारखंड में खतरा ज्यादा है। इन राज्यों में 10 से लेकर 7.3 वर्ष उम्र घटने की आशंका है। पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ में औसत उम्र 6.73 से लेकर 5.4 वर्ष तक घट सकती है।
पूर्वोत्तर के राज्यों में भी दूषित हवा की मात्रा बढ़ रही है। त्रिपुरा में 4.17, मेघालय में 3.65 और असम में 3.8 वर्ष उम्र कम हो सकती है। दादरा-नगरहवेली, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और हिमाचल-प्रदेश में भी 3.8 से लेकर 2.91 वर्ष उम्र कम होने की शंका है। लद्दाख, अंडमान-निकोबार, अरुणाचल-प्रदेश, गोवा और कर्नाटक में अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति है। ऐसा हवा के कण-प्रदूषण (पर्टिकुलेट मेटर) में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों के मिश्रण की मात्रा बढ़ने से है। यह मात्रा चूल्हे, भूसे, उद्योगों और कारों से निकलने वाले धुएं से बढ़ रही है। हवा में सल्फर-डाईऑक्साइड व नाइट्रोजन-ऑक्साइड जैसे रसायनों की मात्रा बढ़ने से खांसी, अस्थमा, हृदय-रोग और मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है।
देश में बढ़ते वायु-प्रदूषण को लेकर रोज नए सर्वे आ रहे हैं। उनका दावा है कि इस प्रदूषण से देश में कुल बीमारियों से जो मौतें हो रही हैं, उनमें से 11 फीसदी की वजह वायु-प्रदूषण है। केंद्र सरकार द्वारा ‘भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद्’ और गैर-सरकारी संगठन ‘हेल्थ ऑफ द नेशन्स स्टेट्स‘ के साथ मिलकर कराए सर्वे के अनुसार ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र’ दिल्ली में वायु-प्रदूषण से पीड़ित जो एक लाख मरीज अस्पतालों में पहुंचते हैं, उनमें से 3469 लोगों की मृत्यु हो जाती है। इसी तरह राजस्थान में 4528, उत्तरप्रदेश में 4390, मध्यप्रदेश में 3809 और छत्तीसगढ़ में 3667 रोगियों की मृत्यु हो जाती है। इन अध्ययनों और वायु-प्रदूषण के खतरनाक आंकड़ों के उजागर होने के साथ ही उच्चतम न्यायालय प्रदूषण पर लगाम कसने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों पर दबाव बनाता है, लेकिन विधायिका एवं कार्यपालिका लाचार से खड़े नजर आते हैं, जबकि न्यायालय के निर्देशों के पालन का दायित्व इन्हीं पर है।
दरअसल इन निर्देशों पर अमल इतना कठिन और अव्यावहारिक है कि जिम्मेदारी का भार उठाने के पचड़े में कोई सरकार पड़ना नहीं चाहती। इसीलिए यह विकराल स्थिति पिछले एक दशक से लगातार बनी हुई है। इसकी एक वजह यह भी है कि प्रदूषण के मूल कारणों को समझने और फिर उनके निवारण की जरूरत ही नहीं समझी जा रही है। दीपावली के आसपास जब हरियाणा, पंजाब में फसलों के अवशेष (पराली) जलाए जाते हैं और इसी समय जब बड़ी मात्रा में पटाखे फोड़े जाते हैं, तब एकाएक वायु-प्रदूषण की समस्या ‘जीने के अधिकार पर आघात‘ के जानलेवा रूप में पेश होने लगती है। जबकि ये समस्याएं एकाएक प्राकृतिक घटना के रूप में सामने नहीं आतीं, बल्कि हर साल दोहराई जाती हैं। अब तक दिल्ली, पंजाब व हरियाणा सरकारें ऐसा कोई ठोस विकल्प नहीं दे पाई हैं जिससे किसानों को पराली न जलानी पड़े। सरकारों की इस उदासीनता के प्रति ‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ भी असहाय साबित हुआ है।
हाल के शोधों से पता चला है कि पाकिस्तान में बड़ी मात्रा में पराली जलाई जाती है, जिसके लिए हमारे किसान दोषी नहीं हैं। ‘पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर’ (पीआरएससी) द्वारा लिए उपग्रह चित्रों से पता चला है कि सीमा पार का धुआं भी दिल्ली की आबो-हवा खराब कर रहा है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ ने पंजाब के खेतों में जलती पराली की तस्वीरें जारी करके यह पुष्टि करने की कोशिश की है कि वायु-प्रदूषण के लिए पराली ही दोषी है। इसके जबाव में पंजाब सरकार का तर्क है कि यह धुआं सिर्फ पराली का नहीं है, इसमें कचरा घरों, श्मशानों और भोजन पकाने का धुआं भी शमिल है। अब इस प्रदूषण से मुक्ति के क्या संभव उपाय हैं, कोई नहीं सुझाता? ‘आइआइटी – कानपुर’ ने एक अध्ययन में पाया है कि देश में अभी भी 20 प्रतिशत लोगों के पास रसोई गैस के कनेक्शन नहीं हैं। उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार और राजस्थान में अभी तक ईंट भट्टों की चिमनियों को निर्धारित मानकों में नहीं ढाला जा सका है। लिहाजा ये भी वायु-प्रदूषण के कारणों में शामिल हैं।
भारत में औद्योगीकरण की रफ्तार भूमण्डलीकरण के बाद तेज हुई है। एक तरफ प्राकृतिक संपदा का दोहन बढ़ा है तो दूसरी तरफ औद्योगिक कचरे में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है। लिहाजा दिल्ली में जब शीत ऋृतु दस्तक देती है तो वायुमण्डल में आर्द्रता छा जाती है। यह नमी धूल और धुएं के बारीक कणों को वायुमण्डल में विलय होने से रोक देती है। नतीजतन दिल्ली के ऊपर एकाएक कोहरा आच्छादित हो जाता है। वातावरण का यह निर्माण क्यों होता है, मौसम विज्ञानियों के पास इसका कोई स्पष्ट व तार्किक उत्तर नहीं है। वे इसकी तात्कालिक वजह पंजाब एवं हरियाणा के खेतों में जलाई जा रही पराली को बता देते हैं। यदि वास्तव में इसी आग से निकला धुआं दिल्ली में छाए कोहरे का कारण होता तो यह स्थिति चंडीगढ़, अमृतसर, लुधियाना और जालंधर जैसे बड़े शहरों में भी दिखनी चाहिए थी? लेकिन वहां नहीं दिखती?
अलबत्ता इसकी मुख्य वजह हवा में लगातार प्रदूषक तत्वों का बढ़ना है। दरअसल मौसम गरम होने पर जो धूल और धुंए के कण आसमान में कुछ ऊपर उठ जाते हैं, वे सर्दी बढ़ने के साथ-साथ नीचे खिसक आते हैं। दिल्ली में बढ़ते वाहन और उनका सह-उत्पाद प्रदूषित धुआं और सड़क से उड़ती धूल इस अंधियारे की परत को और गहरा बना देते हैं। दिल्ली में जब मानक पैमाने से ढाई गुना ज्यादा प्रदूषक तत्व बढ़ जाते हैं, तब लोगों में गला, फेफड़े और आंखों की तकलीफ बढ़ जाती है। कई लोग मानसिक अवसाद की गिरफ्त में भी आ जाते हैं।
हालांकि हवा में घुलता जहर महानगरों में ही नहीं, छोटे नगरों में भी प्रदूषण का सबब बन रहा है। कार-बाजार ने इसे भयावह बनाया है। यही कारण है कि लखनऊ, कानपुर, अमृतसर, इंदौर और अहमदाबाद जैसे शहरों में प्रदूषण खतरनाक स्तर की सीमा लांघने को तत्पर है। उद्योगों से धुआं उगलने और खेतों में बड़े पैमाने पर औद्योगिक व इलेक्ट्रोनिक कचरा जलाने से भी दिल्ली की हवा में जहरीले तत्वों की सघनता बढ़ी है। इस कारण दिल्ली दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल हो गया है। भारत सरकार ने हाल ही में 15 साल तक की कारों को सड़कों से हटाकर इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग का निर्णय लिया है, संभव है उसके अमल में आने से वायु का शुद्धिकरण हो? (सप्रेस)
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