राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की लगातार अनदेखी
अहमदाबाद/नई दिल्ली, 23 अप्रैल। गुजरात के प्रतिष्ठित सेठ वादीलाल साराभाई (वी.एस.) अस्पताल में बड़े पैमाने पर अनैतिक दवा परीक्षण का मामला उजागर हुआ है। प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार, इस अस्पताल में 58 फार्मा कंपनियों द्वारा लगभग 500 मरीजों पर बिना उचित अनुमति के ड्रग ट्रायल किए गए।
स्थानीय पार्षद राजश्री केसवानी द्वारा शिकायत किए जाने के बाद गठित जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि इन परीक्षणों के लिए न तो अस्पताल की एथिक्स कमेटी से अनुमति ली गई थी और न ही मरीजों को पूरी जानकारी दी गई थी। इस खुलासे के बाद प्रशासन ने 8 चिकित्सकों को निलंबित कर दिया है।
स्वास्थ्य अधिकार मंच और जन स्वास्थ्य अभियान इंडिया ने इस गंभीर मुद्दे को उठाते हुए भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया, गुजरात के मुख्य सचिव और राज्य स्वास्थ्य सचिव को पत्र लिखकर मामले की विस्तृत, निष्पक्ष और समयबद्ध जांच की मांग की है। उन्होंने दोषियों पर कठोर कार्रवाई और सभी क्लीनिकल ट्रायल की पारदर्शी निगरानी की भी मांग की है।
स्वास्थ्य अधिकार मंच और जन स्वास्थ्य अभियान इंडिया द्वारा सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार को भेजे गए पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि वर्ष 2015 से 2018 के बीच गुजरात में कुल 1517 क्लीनिकल ट्रायल्स संपन्न हुए और इसी अवधि में 133 एथिक्स कमेटियाँ केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) में पंजीकृत की गई थीं। पत्र में यह भी कहा गया है कि गुजरात में 50 क्लीनिकल ट्रायल केन्द्रों पर इन परीक्षणों का संचालन हुआ है जिसकी विस्तृत सूची भेजी गई है। स्वास्थ्य अधिकार मंच का कहना है कि इन सभी केन्द्रों की जांच की जानी चाहिए कि क्या वे नियमों और दिशा-निर्देशों का सही पालन कर रहे हैं या नहीं। साथ ही, इन केन्द्रों की अद्यतन सूची सार्वजनिक करने की भी मांग की गई है।
स्वास्थ्य अधिकार मंच के अमूल्य निधि ने कहा कि, “माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही मरीजों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए हैं, परंतु इसके बावजूद ऐसी घटनाएं चिंताजनक और दुर्भाग्यपूर्ण हैं। केवल निलंबन पर्याप्त नहीं है — जवाबदेही तय होनी चाहिए।”
जन स्वास्थ्य अभियान, गुजरात इकाई के प्रतिनिधि जगदीश पटेल ने कहा कि, “राज्य सरकार को इस मामले की समयबद्ध और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करनी चाहिए। साथ ही यह भी आवश्यक है कि सभी क्लीनिकल ट्रायल्स नियमानुसार हों और भागीदार मरीजों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जाए।”
ज्ञात हो कि स्वास्थ्य अधिकार मंच पिछले एक दशक से अधिक समय से अनैतिक दवा परीक्षणों के खिलाफ सक्रिय है और इस विषय में एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के स्पष्ट आदेशों के बावजूद, बिना पंजीकृत एथिक्स कमेटी के ऐसे ट्रायल को मंजूरी दिया जाना न केवल नियमों का उल्लंघन है बल्कि “ड्रग्स एंड क्लिनिकल ट्रायल रूल्स 2019” का भी सीधा उल्लंघन है।