डॉ.ओ.पी.जोशी

हमारे देश में एक वर्ष में बट्स सहित सिगरेट का कचरा लगभग 03 करोड़ टन निकलता है। एक किलो सिगरेट के कचरे में लगभग 3000 बट्स पाये जाते है। बट्स में पाये जाने वाले कैसरजन्य रसायनों से पैदा खतरों के संदर्भ में कुछ वर्ष पूर्व टाटा मेमोरियल कैसर हास्पिटल, दिल्ली के डॉ. पंकज चतुर्वेदी ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एन.जी.टी.) में याचिका दायर कर कहा था कि सिगरेट बट्स को खतरनाक कचरा घोषित कर इसके निस्‍तारण की उचित व्यवस्था की जाए। हमारे देश में पिछले वर्ष एकल उपयोगी प्लास्टिक की वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाया गया परंतु उनमें सिगरेट बट्स शामिल नहीं किया गया।

सिगरेट पीने के बाद बचे हिस्से फिल्‍टर को स्टबस या बट्स कहा जाता है। यह एक प्रकार का प्लास्टिक कचरा है, जिसे ऐसे ही लापरवाही से कहीं भी फेंक दिया जाता है यह माइक्रोप्लास्टिक सेल्युलोज एसीटेट फायबर का बना होता है। प्राकृतिक रूप से इस नष्ट होने में 10-12 वर्ष लगते है। इसके निस्तारण या उपचार की उचित व्यवस्था नहीं होने से इनमें उपस्थित रसायन निकोटिन, केडमियम, आर्सेनिक एवं लेड आदि पानी एवं मिट्टी में पहुंचकर उन्हें प्रदूषित करते है। इनमें से कुछ रसायन कैसरजन्य भी बताये गये है। पानी एवं मिट्टी से ये खाद्य श्रृंखला (फूड चेन) में प्रवेश कर विभिन्न जीवों के शरीर में पहुंच जाते है।

लगभग 4.5 लाख करोड़ cigarette butts सिगरेट बट्स प्रतिवर्ष दुनिया में फेंके जाते है। धूम्रपान की आदत बढ़ने से इनकी संख्या भी कचरे में बढ़ती जा रही है। दुनिया के कई शहरों के कचरे के ढेर में लगभग एक तिहाई भाग बट्स का आंका गया है। समुद्री किनारों पर बसे शहरों में जो प्लास्टिक कचरा तटों तक पहुंचता है उसमें सबसे ज्यादा कचरा सिगरेट बट्स का होता है। इन बट्स को जब पक्षी, मछलियां एवं अन्य जीव खाद्य पदार्थ मानकर खा जाते है या निगल जाते है तो उनके स्वास्थ्य पर इनमें उपस्थित रसायनों का विपरीत प्रभाव देखा गया है।

हमारे देश में एक वर्ष में बट्स सहित सिगरेट का कचरा लगभग 03 करोड़ टन निकलता है। एक किलो सिगरेट के कचरे में लगभग 3000 बट्स पाये जाते है। बट्स में पाये जाने वाले कैसरजन्य रसायनों से पैदा खतरों के संदर्भ में कुछ वर्ष पूर्व टाटा मेमोरियल कैसर हास्पिटल, दिल्ली के डॉ. पंकज चतुर्वेदी ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एन.जी.टी.) में याचिका दायर कर कहा था कि सिगरेट बट्स को खतरनाक कचरा घोषित कर इसके निस्‍तारण की उचित व्यवस्था की जाए। हमारे देश में पिछले वर्ष एकल उपयोगी प्लास्टिक की वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाया गया परंतु उनमें सिगरेट बट्स शामिल नहीं किया गया। केरल के वन विभाग ने एक रिपोर्ट से बताया था कि वर्ष 2010 से 2013 के मध्य अधजले बट्स के कारण जंगल में आग की 1300 घटनाएं हुई।

सिगरेट बट्स के खतरनाक कचरे के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए इसी वर्ष के प्रारंभ में पुर्तगाल के कुछ पर्यावरण-प्रेमियों ने बट्स का एक पहाड़ बनाया। इसे बनाने हेतु पूरे शहर से एक सप्ताह में 04 लाख 50 हजार बट्स एकत्र किये गये। स्वीडन में सड़कों पर फेंके गये बट्स एकत्र करने हेतु कौवों को एक स्टार्ट अप-कीप स्वीडन टाइडी फाउंडेशन द्वारा प्रशिक्षति किया गया। प्रशिक्षित कौवे चोंच से बट्स उठाकर पास में रखी बट्स बीन में डाल देते है। सिगरेट बट्स द्वारा एक पक्षी को सुरक्षा देने का अध्ययन मेक्सिको के नेशनल आटोनामस वि.वि. के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया। डॉ. एस. राट्रीज तथा डॉ. एम. गार्सिका ने पाया कि वि.वि. परिसर में हाउस कीच नामक पक्षी के घोसलों में पाये गये बट्स के कारण वहां खून चूसने वाले परजीवी नहीं पनप सके।

सिगरेट बट्स को अलग से एकत्र करने एवं इनके उपयोग के भी कुछ प्रयास हमारे देश में किये गये है। म.प्र. की व्यावसायिक राजधानी इन्दौर शहर में दो-तीन वर्ष पूर्व पर्यावरण हितैषी फांउडेशन ने चाय एवं पान की दुकानों पर बट्स एकत्र करने हेतु 2500 बट्स -बीन लगाये थे। जनता ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया एवं ज्यादातर बट्स-बीन चोरी हो गये। इसी शहर के पुराने इंजीनियरिंग कॉलेज जी.एस. आय.टी.एस के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. अंशुल कुलकर्णी ने सिगरेट बट्स एवं स्टील कारखाने  के व्यर्थ (स्लेम) से सड़क बनाने का प्रयोग किया जो डामर सड़क से मजबूत एवं सस्ती बतायी गयी।

नोएडा के एक स्टार्ट अप-कोड-एफर्ड प्रा.लि. बट्स को रिसायकील कर उपयोगी सामान तैयार कर रहा है। इसमें दिल्ली वि.वि. के नमन गुप्ता एवं विपुल गुप्ता तथा अन्य सहयोगियों का योगदान रहा। प्रारंभ में 30 लाख बट्स रिसायकील कर हेंड पेपर, खिलौने एवं कुशंस आदि बनाए गये। बट्स एकत्रित करने हेतु कई स्थानों पर बट्स बीन लगए गए है एवं 2000 के लगभग कूडा कचरा बीनने वाले लोग भी इससे जुड़े है। यह स्टार्ट अप बट्स की समस्या का अच्छा समधान है अतः इसे और विस्तारित किया जाना चाहिये। बट्स दिखने में भले ही छोटी हो परंतु इसके निष्पादन की यदि उचित व्यवस्था नहीं की जाती है तो यह जन स्वास्थ्य के लिए खतरा साबित होगा। (सप्रेस)

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