अमरपाल सिंह वर्मा

इलाज और दवाओं के लिए लिखी जाने वाली डॉक्टरों की पर्ची अक्सर न तो इलाज के बारे में मरीज या उसकी तीमारदारी में लगे लोगों को कुछ स्पष्ट बता पाती है और न ही दवा-विक्रेताओं को। ऐसे में हाल में ‘पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट’ ने इस बेहद जरूरी विषय पर नजर डाली है।

‘पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट’ ने हाल ही में एक फैसले में डॉक्टरों की खराब लिखावट को चिंताजनक बताते हुए इसमें सुधार के लिए जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने मेडिकल-लीगल रिपोर्ट में अस्पष्ट और अपठनीय लिखावट को लेकर कड़ी टिप्पणी की है और इसे तकनीकी युग में अस्वीकार्य करार दिया है। कोर्ट ने ये निर्देश एक मामले की सुनवाई के दौरान दिए जिसमें एक मैडीकल-लीगल रिपोर्ट में लिखी गई जानकारी अत्यंत अस्पष्ट और अपठनीय थी, जिसे पढ़ पाना संभव नहीं था। जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने कहा कि ‘‘कई मामलों में देखा गया है कि मैडीकल पर्ची पर लिखावट ऐसी होती है कि उसे केवल कुछ ही डॉक्टर या कुछ दवा-विक्रेता ही समझ पाते हैं। मरीज की मेडिकल हिस्ट्री और पर्ची पर दी गई दवाओं की जानकारी स्पष्ट होनी चाहिए क्योंकि यह व्यक्ति के मौलिक अधिकारों से जुड़ा विषय है।’’

कोर्ट के अनुसार यह काफी चौंकाने वाली बात है कि तकनीकी युग में भी सरकारी डॉक्टर मेडिकल हिस्ट्री और इलाज हाथ से लिखते हैं। कोर्ट ने इस समस्या के समाधान के लिए पंजाब और हरियाणा के महाधिवक्ताओं, चंडीगढ़ के वरिष्ठ वकीलों और ‘राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग’ से सुझाव मांगे हैं। डॉक्टरों की खराब लिखावट हमेशा चर्चा का विषय रही है। डॉक्टरों की लिखावट को लेकर आम जन-मानस में लंबे समय से शिकायत रही है कि वे साफ क्यों नहीं लिखते? मेडिकल पर्ची की अस्पष्टता के कारण गलत दवा लेने की आशंका रहती है और कई बार दवा – विक्रेता भी डॉक्टर की लिखी दवा को नहीं समझ पाते। यह समस्या केवल मरीजों तक सीमित नहीं है, बल्कि कानूनी मामलों में भी बाधा उत्पन्न कर सकती है, जैसा कि कोर्ट ने अपने फैसले में संकेत किया है।

यह एक पुरानी समस्या है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। सोशल मीडिया पर डॉक्टरों की इलाज की पर्ची का अक्सर मजाक बनता है। दरअसल, पर्ची पर दवाओं के नाम इतनी खराब लिखाई में लिखे होते हैं कि उन्हें समझना आम आदमी के लिए तो मुश्किल होता ही है, कई बार दवा-विक्रेताओं के लिए भी समझना असंभव हो जाता है। ‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान’ (एम्स), दिल्ली ने एक रिसर्च में पाया है कि ज्यादातर डॉक्टर्स के लिखे इलाज के विवरण काफी भ्रम पैदा करते हैं, जबकि मेडिकल दिशा-निर्देश के तहत डॉक्टरों को पर्ची पर पूरी जानकारी साफ-साफ लिखना जरूरी है।

‘एम्स’ के शोध से पता चलता है कि प्रत्येक दो में से एक नुस्खे में गाइडलाइंस का पालन नहीं किया जा रहा है। ये पर्चियां भ्रम पैदा करती हैं और मानक इलाज की गाइडलाइंस से बिलकुल अलग हैं। इनमें से 10 फीसदी पर्चियां तो ऐसी हैं कि वे किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं हो सकतीं। ‘एम्स’ ने यह भी कहा है कि इससे मरीजों की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

हाईकोर्ट का यह फैसला कई कारणों से महत्वपूर्ण और समयानुकूल है। सबसे पहली बात यह है कि यह मरीजों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा से जुड़ा विषय है। यह समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब अस्पष्ट लिखावट के कारण गलत दवाएं दी जाती हैं। दूसरा पहलू यह है कि मेडिकल रिकॉर्ड की स्पष्टता की कानूनी मामलों में भी अहम भूमिका होती है। यदि किसी मरीज के इलाज से संबंधित दस्तावेज स्पष्ट न हों तो न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। इसके अलावा डिजिटल युग में जहां हर चीज कंप्यूटर पर दर्ज की जा रही है, वहां डॉक्टरों का हाथ से अस्पष्ट लिखना वाकई चिंता का विषय है। हाईकोर्ट ने भी यही कहा है।

यदि डॉक्टर हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करते हैं और स्पष्ट लिखावट में पर्ची देने की आदत डालते हैं, तो इसके कई लाभ होंगे। इससे गलत दवा दिए जाने का खतरा कम होगा। मरीज खुद भी डॉक्टर की लिखी दवा को समझ सकेंगे। ‘पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट’ का यह निर्देश अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसे पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए। यह आदेश न केवल मेडिकल जगत के लिए इशारा है, बल्कि मरीजों के स्वास्थ्य के लिहाज से भी एक महत्वपूर्ण सुधारात्मक कदम है।

हालांकि, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि डॉक्टरों को साफ लिखने के लिए कोर्ट का हस्तक्षेप जरूरी पड़ रहा है। स्पष्ट लिखावट केवल आदत का विषय है। यदि सभी डॉक्टर इस दिशा में कदम उठाएं, तो मरीजों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं अधिक सुगम और सुरक्षित बन सकती हैं। हाईकोर्ट की मंशा के अनुसार साफ-सुथरा लिखने से डॉक्टरों को तो कोई घाटा होने वाला नहीं है, उलटे यह आदेश अस्पतालों को ‘डिजिटल प्रिस्क्रिप्शन सिस्टम’ अपनाने के लिए प्रेरित कर सकता है। (सप्रेस)