प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के खिलाफ एकजुट स्वास्थ्य संगठन
27 अक्टूबर 2024, भोपाल । मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के खिलाफ कार्रवाई के लिए एकजुट संगठन ने आज यहां प्रेस कांफ्रेंस में कहा है कि हम प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण की दिशा में किये जा रहे किसी भी प्रकार के पीपीपी माडल या आउटसोर्सिंग का विरोध करते हैं । उन्होंने मांग की है कि हम इसके बजाय सरकार सभी हितधारकों को आमंत्रित करने और अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर किये जानेपर चर्चा करने की वकालत करते हैं। यह सुनिश्चित करते हुए कि स्वास्थ्य सेवाएं सरकारी नियंत्रण में रहें। यह स्वास्थ्य प्रशासन को बढ़ाने और स्वास्थ्य संकेतकों को बेहतर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और यह इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में सरकार की जवाबदेही की पुष्टि करता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के 2374 पद रिक्त (स्वीकृत पदों का 64 प्रतिशत) है
मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के खिलाफ कार्रवाई के लिए एकजुट संगठन से जुड़े प्रदेश के वरिष्ठ चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में सामाजिक सरोकार रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस पर गहरी चिंता व्यक्त की है। संगठन से जुड़े डॉ. राकेश मालवीया (अध्यक्ष, एमपीएमटीए-एमपी मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन और मुख्य संयोजक, शासकीय स्वायत्तशासी चिकित्सा अधिकारी संघ), डॉ. माधव हासानी (अध्यक्ष, एमपीएमओए-एमपी मेडिकल ऑफिसर्स एसोसिएशन और संयोजक, शासकीय स्वायत्त शासी चिकित्सा महासंघ), अमूल्य निधि (राष्ट्रीय सह संयोजक जन स्वास्थ्य अभियान) ने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बहुत चुनौतीपूर्ण है और कई प्रयासों के बावजूद सरकार भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों को लागू नहीं कर पाई है। अभी भी विशेषज्ञों के 2374 पद रिक्त है, जो स्वीकृत पदों का 63.73% है। चिकित्सा अधिकारियों के 1054 (स्वीकृत पदों का 55.97%) पद और दंत चिकित्सकों के 314 पद रिक्त है और इसलिए कई सीएचसी और जिला अस्पतालों में स्त्री रोग विशेषज्ञ और आवश्यक सहायक कर्मचारी नहीं है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफ़ाइल के अनुसार मध्य प्रदेश में केवल 43 विशेषज्ञ ,सामान्य ड्यूटी मेडिकल ऑफिसर 670, रेडियोग्राफर 191, फार्मासिस्ट 474, प्रयोगशाला तकनीशियन 483 और 2087 नर्सिंग स्टाफ सीएचसी में काम कर रहे हैं।
27 जिला अस्पतालों और सीएचसी का निजीकरण की कोशिश का विभिन्न समूहों ने किया था विरोध
उन्होंने कहा कि सन् 2015 में म.प्र सरकार ने 27 जिलों के जिला अस्पतालों और सीएचसी को निजी हाथों में सौंपने की कोशिश की थी, जिसका मध्यप्रदेश के विभिन्न समूहों ने विरोध किया था। इसके बावजूद 3 नवंबर 2015 को राज्य स्वास्थ्य समिति ने अलीराजपुर जिला अस्पताल तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र जोबट के शिशु एवं मातृत्व मृत्यु दर में सुधार और कुछ अन्य चुनिंदा सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए वडोदरा की संस्था दीपक फाउंडेशन के साथ एम.ओ.यू. किया गया।राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने उन्हें फंड भी दिया। यह पूरा कार्य बिना किसी टेंडर प्रक्रिया के हुआ। जन स्वास्थ्य अभियान द्वारा जबलपुर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई और बाद में एक साल बाद यह अनुबंध रद्द कर दिया गया। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि उस दौरान अलीराजपुर में मातृ स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ था।
प्रेस कांफ्रेस में कहा गया कि मध्य प्रदेश स्वास्थ्य सेवा गारंटी योजना 2014 में शुरू की गई थी। इस योजना के अनुसार मुफ्त दवाइयाँ और जांचें मुफ्त प्रदान करने की गारंटी दिया गया था। हाल ही में हब और स्पोक मॉडल जो प्रयोगशाला सेवाओं के निजीकरण का एक और रूप है। निजी संस्थाओं ने लाभ कमाने के लिए सरकारी कर्मचारियों और प्रयोगशालाओं का उपयोग किया है।
अब सरकार द्वारा 348 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और 51 सिविल अस्पतालों को आउटसोर्स करने की योजना
11 जुलाई 2024 के पत्र क्रमांक एनआईटी संख्या 471/2/वाईवी/डीएमई/2024 के अनुसार निजी संस्थाएँ पीपीपी मोड के तहत 10 जिला अस्पतालों ( खरगौन, धार, बैतूल ,टीकमगढ़, बालाघाट, कटनी, सीधी, भिंड , मुरैना, पन्ना) में निजी मेडिकल कॉलेज विकसित करेंगी। यह नीति आयोग के 1 जनवरी 2020 के प्रस्ताव पर आधारित है, जिसका 2020 में विभिन्न राज्यों और मध्य प्रदेश ने विरोध किया था। मेडिकल कॉलेज स्थापित करने के लिए मॉडल रियायत समझौते में स्पष्ट रूप से कहा गया है (पृष्ठ 58 से 62) कि पूरे जिला अस्पतालों को निजी संस्थानों को सौंप दिया जाएगा।
22 अक्टूबर 2024 की मेडिकल न्यूज के अनुसार सरकार 348 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और 51 सिविल अस्पतालों को आउटसोर्स करने की योजना बना रही है। इस कदम से साफ पता चलता है कि मौजूदा सरकार अपने लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए संघर्ष कर रही है। अगर यह फैसला स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों या मंत्री स्तर पर लिया गया है, तो सरकार को इस कदम के पीछे की मंशा का पारदर्शी ब्यौरा देना चाहिए। जनता को निर्णय लेने की प्रक्रिया को जानने और समझने का अधिकार है। सरकार को इस कदम के कारणों की जांच रिपोर्ट साझा करना चाहिए और राज्य के सभी रेफरल अस्पतालों के निजीकरण के अपने फैसले को वापस लेने पर विचार करना चाहिए।
सरकार नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में सक्षम नहीं
पूर्व स्वास्थ्य सचिव ( स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय) के सुजाता राव ने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं का व्यावसायीकरण आपदा का कारण बन सकता है। इसका मतलब यह है कि मध्य प्रदेश राज्य अपने नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में सक्षम नहीं है और सार्वजनिक क्षेत्र के स्वास्थ्य संस्थानों को निजी संस्थाओं को सौंपकर लोगों के स्वास्थ्य से समझौता कर रहा है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देता है। इसमें कहा गया है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही किसी को इन अधिकारों से वंचित किया जा सकता है। जीवन के अधिकार में सम्मान के साथ जीने का अधिकार, आजीविका का अधिकार और स्वस्थ वातावरण का अधिकार शामिल है।
संविधान का अनुच्छेद- 47 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो राज्य को सार्वजनिक स्वास्थ्य के सुधार को प्राथमिकता देने का आदेश देता है, जो अपने नागरिकों के स्वास्थ्य और कल्याण के प्रति सरकार की जिम्मेदारी को उजागर करता है।
मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के खिलाफ कार्रवाई के लिए एकजुट संगठन से जुडे डॉ. राकेश मालवीया, डॉ. माधव हासानी, अमूल्य निधि के अलावा डॉ. गजेंद्र नाथ कौशल (संयुक्त सचिव, ईएसआई चिकित्सा अधिकारी ), डॉ. महेश कुमार (राज्य अध्यक्ष, चिकित्सा अधिकारी चिकित्सा शिक्षा), डॉ सिद्धार्थ कीमती, मध्य प्रदेश जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन , मनोरमा , मध्य प्रदेश नर्सिंग ऑफिसर एसोसिएशन, डॉ लोकेश रघुवंशी स्टेट प्रेसिडेंट कॉन्ट्रैक्चुअल डॉक्टर्स एसोसिएशन, राजकुमार सिन्हा राष्ट्रीय स्वास्थ्य अधिकार अभियान,एस. आर. आजाद (प्रदेश संयोजक जन स्वास्थ्य अभियान), डॉ. लोकेश रघुवंशी, प्रदेश (अध्यक्ष, संविदा चिकित्सक संघ), लक्ष्मी कौरव, (राज्य अध्यक्ष, एमपी आशा/आशा सहयोगिनी श्रमिक संघ), मध्य प्रदेश अस्पताल बचाओ जीव बचाओ संघर्ष मोर्चा ने भी प्रेस क्रांफ्रेस में अपनी बातों को रखा।