
सिर्फ भूख ही नहीं, भोजन भी हमें बीमार करता है। असीमित, अस्वास्थ्यकर खान-पान और कथित आधुनिक रहन-सहन हमें लगातार मोटापे की चपेट में फांस रहे हैं। यह बीमारी इस हद तक पहुंच गई है कि खुद देश के प्रधानमंत्री तक को इससे बचने की सलाह देनी पड़ रही है। क्या हैं, इसके कारण? इससे कैसे निपटा जा सकता है?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में देशवासियों को मोटापे से लड़ने की सलाह दी है। लोगों को भोजन में 10 प्रतिशत कम तेल उपयोग करने एवं यह बात 10 अन्य लोगों को भी समझाने को कहा है। प्रधानमंत्री की सलाह एवं सुझाव बड़े समयानुकूल हैं, क्योंकि मोटापे का बढ़ना अब एक समस्या नहीं, अपितु बीमारी के रूप में उभर रहा है। विश्व में एक अरब से ज्यादा आबादी इस समस्या से जूझ रही है, जिसमें बच्चे, वयस्क एवं बुजुर्ग सभी शामिल हैं। बच्चों एवं किशोरों में वर्ष 1990 के मुकाबले 2022 में मोटापे की दर चार गुना बढ़ी है।
हमारे देश में ‘नीति आयोग’ की रिपोर्ट (2021-22) के अनुसार बच्चों, किशोरों व महिलाओं में वजन बढ़ने व मोटापे की समस्या लगातार बढ़ रही है। ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे’ (एनएफएचएस) के अनुसार 24 प्रतिशत महिलाऐं व 22 प्रतिशत पुरूष मोटे हैं। फास्ट-फुड का बढ़ता चलन, स्वास्थ्यप्रद खाने की कमी, मेहनती कार्य व व्यायाम में कमी, मानसिक तनाव तथा पर्याप्त नींद का अभाव आदि मोटापा बढ़ने के कारण बताये गए हैं। मोटापे की गणना सामान्यतः ‘बॉडी-मास इंडेक्स’ से की जाती है। यह इंडेक्स 30 या इससे ज्यादा होने पर मोटापा माना जाता है।
पर्यावरण प्रदूषण से मोटापा बढ़ता है या मोटापा पर्यावरण प्रदूषण बढ़ाता है, इस बात पर चिकित्सक, पर्यावरण एवं पोषक-आहार विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं, क्योंकि सभी के अपने-अपने अध्ययन एवं प्रमाण हैं। पर्यावरण प्रदूषण के कारण वायुमण्डल में उपस्थित कार्बन के महीन कणों एवं मानव मस्तिष्क को प्रभावित करने वाले हार्मोन्स को लेकर अध्ययन किए गए हैं। हार्मोन्स रासायनिक संदेश-वाहक होते हैं, जो खून के माध्यम से शरीर के विभिन्न अंगों में पहुंचते हैं। मानव शरीर की कई क्रियाएँ, जैसे – भूख लगना, प्रसन्न या दुखी होना, गुस्सा आना एवं नींद आना आदि हार्मोन्स से ही नियंत्रित होती हैं।
डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने अपने 20 वर्ष के अध्ययन में पाया है कि वायुमण्डल में उपस्थित कार्बन के महीन कण मानव मस्तिष्क में उपस्थित ‘हार्मोन ओरेक्सीजीन’ की कार्यक्षमता कम कर देते हैं, जिससे ज्यादा भूख लगती है एवं परिणाम-स्वरूप वजन बढ़ने लगता है। एक दूसरे शोध में कार्बन तथा ‘हार्मोन लेप्टिन’ के मध्य सीधा सम्बन्ध देखा गया है। ज्यादा कार्बन प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में इसकी मात्रा 27 प्रतिशत ज्यादा आंकी गयी है।
वसा-कोशिकाओं में पैदा होने वाला ‘हार्मोन लेप्टिन’ मनुष्य के मस्तिष्क को भूख की स्थिति के बारे में बताता है। कुछ जैव-रासायनिक कारणों से (जो अभी ज्यादा स्पष्ट नहीं हैं) यह मस्तिष्क को भूख की सही स्थिति का संदेश नहीं दे पाता है। इस कारण ज्यादा भूख का अहसास होता है एवं ज्यादा खाने से मोटापा बढ़ने लगता है।
इस पूरे घटनाक्रम को वैज्ञानिक ‘लेप्टिन प्रतिरोध’ कहते हैं। वायु-प्रदूषण के कारण आंतों (इंटेस्टाइन) में उपस्थित भोजन पचाने वाले जीवाणुओं (गुड बेक्टीरिया या माइक्रो-बायोटा) पर विपरीत प्रभाव होता है, जिससे पाचन-क्रिया गड़बड़ा जाती है एवं ज्यादा वसा (फैट) एकत्रित होने लगता है। ‘एनवायरोनमेंटल इंटरनेशनल जर्नल’ में प्रकाशित शोध के मुताबिक इससे मोटापे के साथ अन्य समस्याऐं भी पैदा हो जाती हैं।
‘कोलारॉडो बोउल्डर विश्वविद्यालय’ के शोधकर्ताओं के अनुसार वाहनों से उत्सर्जित नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स पर सूर्य के प्रकाश की क्रिया से भूतल के पास बनी ओजोन गैस भी आंतों के जीवाणुओं पर विपरित प्रभाव डालती है। फिनलैंड के ‘फिनिश इंस्टीट्यूट फार हेल्थ एंड वेलफेयर’ के अध्ययन के अनुसार ज्यादा सोडियम का सेवन करने वालों में कम सेवन वालों की तुलना में मोटापा बढ़ने की सम्भावना 8 से 10 गुना ज्यादा रहती है। प्रसंस्कृत (प्रोसेस्ड) मांस, ब्रेड व डेअरी पदार्थों में पाया जाने वाला सोडियम मोटापे के लिए महत्वपूर्ण कारण हो सकता है।
मोटापे के लिए जिम्मेदार बताये गये प्रदूषकों में ‘बिस-फीनाल-ए’ भी शामिल है, जो प्लास्टिक में पाया जाता है। महिलाओं में मोटापे के लिए ‘डीडीटी’ जैसे कीटनाशक भी जिम्मेदार बताये गये हैं। कुछ औद्योगिक रसायन के शरीर की ‘इंडोक्राइन’ या हार्मोन प्रणाली पर विपरित प्रभाव डालने से वसा ज्यादा जमा होने लगता है। यह प्रणाली शरीर की विभिन्न ग्रंथियों (ग्लैण्ड्स) तथा अंगों के मध्य एक नेटवर्क है।
मोटे लोगों द्वारा वाहनों का ज्यादा उपयोग करने से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है, जो ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने में सहायक है। कुछ पर्यावरणविदों का कहना है कि मोटे लोग अपने वजन में 10 किलोग्राम की कमी लाऐं तो प्रतिवर्ष 49.5 मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन कम होगा।
मोटापा एवं पर्यावरण के संबंध को लेकर अभी भी संशय बरकरार है कि प्रदूषण से मोटापा बढ़ता है या मोटापा प्रदूषण बढ़ाता है। जनवरी 2023 में केलिफोर्निया में आयोजित ‘ओबेसिटी वीक’ सम्मेलन में ज्यादातर विशेषज्ञों ने यही सुझाव दिया था कि खान-पान एवं लाईफ-स्टाइल में बदलाव कर मोटापा कम करना मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण दोनों के हित में है। (सप्रेस)