देश में परंपरागत ज्ञान की कमी नहीं, इसका सही तरीके से इस्तेमाल होना जरूरी

भोपाल, 5 मार्च। सार्वभौमिक स्वास्थ्य को लोगों तक पहुंचाने के लिए जिस तरह निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है, उसने स्वास्थ्य की समस्या को और गहरा कर दिया है। यह संकट केवल भारत का नहीं, पूरी दुनिया का है, उन देशों का भी जहां निजीकरण अधिक है, उन देशों में भी जहां स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकार अधिक खर्च कर रही है।

उक्‍त बातें जेएनयू की प्रोफेसर डॉ. रितु प्रिया ने गांधी भवन, भोपाल के सभागर में कही। वे डॉ. अजय खरे स्मृति व्याख्यानमाला में सार्वभौमिक स्वास्थ्य : वर्तमान स्वास्थ्य देखभाल का संकट एवं चुनौतियाँ विषय पर बोल रही थी । कार्यक्रम की अध्‍यक्षता पूर्व प्रशासनिक अधिकारी डॉ. मनोहर अगनानी ने की।

मुख्य वक्ता डॉ रितु प्रिया जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कम्युनिटी हेल्थ एंड कम्युनिटी मेडिसिन में प्रोफेसर के रूप कार्यरत है। प्रोफेसर डॉ. रितु प्रिया ने कहा कि स्वास्थ्य को लेकर दवा तक सीमित कर दिया गया है, जबकि पूरा मामला परिवेश का है। आज के समय में हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के साथ ही हम सभी स्वास्थ्य आंदोलनों और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्यरत व्‍यक्तियों को अपना एक दृष्टिकोण भी बनाना होगा।

उन्होंने अमेरिका के स्वास्थ्य संकट का जिक्र किया,  साथ ही इंग्लैंड की स्वास्थ्य सुविधाओं का भी। उन्होंने कहा  कि तमाम बीमारियों को सावधानी के साथ रोका जा सकता है। उन्होंने क्यूबा का उदाहरण देते हुए बताया वहां किस तरह परंपरागत ज्ञान का इस्तेमाल करके बीमारियों को रोका जाता है, इसके लिए स्कूली बच्चों को तैयार किया जाता है। उनका कहना है  कि हमारे देश में भी परंपरागत ज्ञान की कमी नहीं है, पर हम इसका सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर रहे। उन्होंने बताया कि अमेरिका जैसे देश में चिकित्सकों पर जिस तरह का दवाब डाला जा रहा है, उसके कारण एक लाख से अधिक डॉक्टरों ने अपना पेशा छोड़ दिया है। स्वास्थ्य का निजीकरण जिस तरह किया जा रहा है, उससे लोग कर्ज में डूबते जा रहे हैं, यह भारत में भी हो रहा है। अमेरीका जैसे देश में भी, जहां हर व्यक्ति का बीमा है। उन्होंने कहा कि लोगों का दवा की जरुरत 20 फीसदी तक होती है, 80 फीसदी मामला परिवेश पर निर्भर करता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व प्रशासनिक अधिकारी डॉ. मनोहर अगनानी ने की। उन्होंने कहा  कि हमारे देश की जरुरत अलग है इसलिए इसके लिए अपना ही मॉडल काम कर सकता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया  कि प्राथमिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश बढ़ाना होगा। भारत की आबादी जवान है, इसलिए उसकी चुनोती अलग है।

कार्यक्रम के दौरान इस वर्ष का स्वास्थ्य क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान प्रदान करने के लिए केरल के डॉ. बी. इकबाल को जन स्वास्थ्य सम्मान से सम्मानित किया गया। उल्‍लेखनीय है कि डॉ. इकबाल बाप्पुकुंजू सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता और न्यूरोसर्जन के रूप में ख्‍यात हैं। वे 2016 से केरल राज्य योजना बोर्ड के सदस्य के रूप में सेवा दे रहे हैं। वे केरल विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। उन्होंने पीपुल्स प्लान कैंपेन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कार्यक्रम के पूर्व वरिष्‍ठ पत्रकार एवं सप्रेस के संपादक राकेश दीवान ने मुख्‍य वक्‍ता का परिचय दिया। जन स्‍वास्‍थ्‍य अभियान के अमूल्‍य निधि के विषय प्रवर्तन किया। कार्यक्रम का संचालन एस. आर. आजाद ने किया। आभार प्रदर्शन मेडिकल एसोसिएशन के डॉ. माधव हसानी ने किया।

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