गढ़चिरौली । चेन्नई में 2 मार्च को भगवान महावीर फाउंडेशन द्वारा दिया जाने वाला प्रतिष्ठित पुरस्कार सर्च संस्था, गढ़चिरौली को लोक सभा अध्यक्ष ओम बिडला व्दारा प्रदान किया गया। तीन अन्य सामाजिक संगठनों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पुरस्कार स्वरूप 10 लाख रुपये की राशि और मानपत्र प्रदान किया गया। ‘सर्च’ (Society for Education, Action & Research in Community Health) की ओर से समाज सेवा के लिए पुरस्कार डॉ. अभय बंग और डॉ. रानी बंग ने ग्रहण किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एस. कृष्णमूर्ति ने की। विजेताओं का चयन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वेंकटचलया की अध्यक्षता वाली जूरी द्वारा किया गया था। अन्य पुरस्कार विजेताओं में सद्गुरु आई क्लिनिक, मध्य प्रदेश, महिला अभिवृद्धि मट्टू संरक्षण संस्थान, कर्नाटक और श्री जसराज श्रीश्रीमाला, तेलंगाना शामिल हैं। इस कार्यक्रम में फाउंडेशन के संस्थापक सुगनचंद जैन, ट्रस्टी प्रसन्नचंद जैन, सेबी के पूर्व प्रमुख डीएस मेहता, एस गुरुमूर्ति और चेन्नई के प्रमुख व्यवसायी मौजूद थे।
उल्लेखनीय है कि डॉ. अभय बंग व उनकी पत्नी डॉ. रानी बंग ने पिछले 35 वर्षों से महाराष्ट्र के पिछड़े जिलों में से एक माने जाने वाले गढ़चिरौली जिले के आदिवासी वर्ग के बीच रहकर न केवल उनके उत्थान के लिए काम किया है बल्कि गरीब और अनपढ़ आदिवासियों के स्वास्थ्य और अन्य समस्याओं को हल करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
उन्होंने SEARCH सोसायटी फोर एजुकेशन, एक्शन एंड रिसर्च इन पब्लिक हेल्थ की स्थापना की। इनका यह शोधग्राम असल में एक आदिवासी गांव है। पति पत्नी ने सोचा कि यदि वे आदिवासी क्षेत्रों में काम करना चाहते हैं तो उन्हें आदिवासी जीवन के साथ एकीकृत होने का प्रयास करना होगा। इसके बाद यह महसूस करते हुए कि आदिवासियों को अलग थलग या नया महसूस नहीं करना चाहिए, उन्होंने उनके लिए अस्पताल की स्थापना की।
बाल मृत्यु दर को कम करने के लिए उन्हें विश्व प्रसिद्ध होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने युवाओं के लिए निर्माण गतिविधियों, दारुमुक्ति आंदोलन और नशा मुक्ति के लिए मुक्तिपथ अभियान चलाया। डॉ. बंग भारत सरकार के जनजातीय स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष भी रहे।
डॉ. बंग दंपती पर महात्मा गांधी और आचार्य विनोबा भावे के विचारों का प्रभाव साफ देखा जा सकता है, खासकर अभय बंग पर। नई तालीम में पढ़ते समय वे गांधीजी की विचारधारा से आकर्षित हुए और फिर आगे भी गांधी जी के साथ यह लगाव जारी रहा। गांधीवादी विचारों का प्रभाव गढ़चिरौली जैसे पिछड़े आदिवासी वर्ग में काम करने के उनके निर्णय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। कॉलेज जीवन में उन्होंने आचार्य विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था।
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