फ्रेंक कुवोन

बाजार प्रोत्साहन में अरुचि के परिणाम स्वरूप बीमारियों के अनुसंधान में भारी कमी और असमानता है, जिसका सबसे ज्यादा खामियाजा समाज की उपेक्षित आबादी को ही उठाना पड़ता है। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रीय स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक और संयुक्त राष्ट्र के 15 सदस्यीय पैनल के सदस्य के अनुसार यह रिपोर्ट स्वास्थ्य अनुसंधान और विकास के नए दृष्टिकोण को आवश्यकता की ओर ध्यान आकर्षित करती है ताकि स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी के लाभ सभी को मिल सके।

निमोनिया, फेफड़ों में होने वाला तीव्र संक्रमण है, जिससे दुनियाभर के बच्चों की मौंते हो रही हैं, जबकि इसका इलाज तथा टीके आसानी से उपलब्ध हैं। यह रोग दक्षिण एशिया और उप सहारा अफ्रीका के गरीब हिस्सों में आज भी दूर तक फैला है क्योंकि इसे रोकने के लिए आवश्यक टीकों की कीमतें काफी ज्यादा  होती हैं। निमोनिया टीके के एक खुराक की लागत करीब 68 डॉलर होती है जबकि एक बच्चे को टीकाकरण के लिए जरूरी 3 खुराक की लागत करीब 204 डॉलर होती है। हालांकि मानवतावादी संगठनों को यह टीके कम कीमतों पर भी मिल सकते हैं।

वर्ष 2015 में इस रोग से 5 वर्ष से कम आयु के 10 लाख बच्चे मारे गए। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) के अनुसार दुनियाभर में इस आयु समूह के बच्चों की मृत्यु का यह 15 प्रतिशत है।

स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं तथा अन्य समूह जैसे मेडिसिन सेंस फ्रंटियर्स (एम एस एफ) या डॉक्टर विद् आउट बॉर्डर्स, अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा समूह है- जो आपातकालीन स्थितियों में लोगों को सहायता प्रदान करता है, ने कई बार शिकायतें की हैं  कि अन्य दवाईयों के मुकाबले निमोनिया के टीकों  की कीमतें कृत्रिम रूप से बढ़ाई। उच्च कीमतें होती है। इसके लिए उनकी चिंता है कि इन मंहगी दवाओं का खर्च वहन नहीं कर पाने कि वजह से गरीब देशों के निमोनिया के मरीजों की मदद करने में अक्षम है। 

 अक्टूबर 2016 को एमएसएफ ने  न्यूयार्क स्थित दवा कंपनी द्वारा दिए गए निमोनिया के टीके की 10 लाख मुफ्त खुराक का दान ठुकरा दिया था। संस्थान का कहना है कि इस प्रकार कुछ विशेष दान देना जरूरत का हल नहीं है और निर्माताओं से अपील की है कि बेहतर होगा कि वे इन दवाओं को किफायती बनाने का प्रयास करे।

एमएसएफ, संयुक्त राज्य अमेरिका के निर्देशक जेसन कोन के अनुसार ’’मुफ्त हमेशा बेहतर नहीं होता है’’ और इस प्रकार के दान से टीकाकरण अभियान में विलंब हो सकता है और इन दवाओं की कीमतें पहुंच में लाने के लंबे समय से किए जा रहे प्रयासों को कमजोर कर सकता है।’’

अंततः नवंबर में दवा निर्माता कंपनियां इस टीके की कीमतें कम करने के लिए सहमत हो गई परंतु सिर्फ मानवीय आपात स्थितियों में फंसे बच्चों के लिए। फिर भी एमएसएफ सहित जन सामाजिक  संगठनों का मानना है कि कीमतों में कमी सभी विकासशील देशों के लिए की जानी चाहिए।

एमएसएफ के इस कदम को मीडिया में अधिक प्रसारित नहीं किया गया। लेकिन संयुक्त राष्ट्र महासचिव की एक उच्च स्तरीय पैनल के द्वारा इस मुद्दे को पुरजोर ढ़ंग से उठाने के नतीजन स्वास्थ्य तकनीकों में विकास का पूरा लाभ सभी तक पहुंचाने में आ रही बाधाओं का पता लगाने की जरूरत प्रतिध्वनित हुई। साथ ही भारी मुनाफे की तलाश में दवा कंपनियों की भूमिका पर भी प्र्काश डाला गया।

सितंबर 2016 में जारी दवाओं के उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव के उच्च स्तरीय पैनल की रिपोर्ट: ’स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों की नई पद्धति तथा उपयोग’ सरकार से अपील करती है कि वैश्विक समझौतों द्वारा गरीब तथा अमीर देशों में स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी की लागत को कम किया जाए। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बेन-की-सून के अनुसार दुनिया में किसी को भी इसलिए कष्ट उठाना नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि वे दवाईयां, मेडिकल साधन या टीकों का खर्च वहन नहीं कर सकते।

रिपोर्ट के अनुसार अनुसंधान एवं विकास बाजार द्वारा संचालित होता है। नई तकनीकों में शोध सिर्फ इसी उद्देश्य से किया जाता है कि निर्माताओं को अधिक से अधिक लाभ प्राप्त हो सके। जबकि कुछ दुर्लभ रोग, जो अपेक्षाकृत कम लोगों को प्रभावित करते हैं, उनके अनुसंधान को प्रोत्साहन प्राप्त नहीं होता है।

  बाजार प्रोत्साहन में अरुचि के परिणाम स्वरूप  बीमारियों के अनुसंधान में भारी कमी और असामनता है, जिसका सबसे ज्यादा खामियाजा समाज की उपेक्षित आबादी को ही उठाना पड़ता है। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रीय स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक और संयुक्त राष्ट्र के 15 सदस्यीय पैनल के सदस्य के अनुसार यह रिपोर्ट स्वास्थ्य अनुसंधान और विकास के नए दृष्टिकोण को आवश्यकता की ओर ध्यान आकर्षित करती है ताकि स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी के लाभ सभी को मिल सके।

 चिकित्सा एवं स्वास्थ्य तकनीकों की आकाश चुमती कीमतें विकासशील देशों के लिए गंभीर चिंता का विषय है। जिसने एच आई वी/एडस् जैसी महामारियों के चरम पर पहुंचने पर वैश्विक ध्यान केन्द्रित किया है।

 यू एन एड के अनुसार वर्तमान में अफ्रीका में  एच आई वी के प्रारंभिक इलाज की दवाओं की एक साल की कीमतें 100 डॉलर प्रति व्यक्ति से भी कम है, जो कि वर्ष 2000 में 10000 डॉलर थी।

वर्ष 2000 में केवल पेटेंट प्राप्त दवा कंपनियां ही एंटीटेट्रोवायरल दवाओं का उत्पादन कर सकती थी, किंतु जब विकासशील देशों ने दवाओं के जेनेरिक संस्करण का उत्पादन शुरू किया और उन्हें पेटेंट से मुक्त दूसरे विकासशील देशों को निर्यात करना शुरू कर दिया तो कीमतें गिरना शुरू हो गई।

इसके लिए जन स्वास्थ्य पर विश्व व्यापार संगठन के बीच बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार संबंधी अधिकार (ट्रिप्स्) पर हुए समझौते को धन्यवाद दिया जा सकता है। धीरे-धीरे ही, लेकिन ट्रिप्स् के लचीलेपन का लाभ लेते हुए द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के जरिए रिपोर्ट ही संकट में है। यह बौद्धिक संपदा अधिकार और जन स्वास्थ्य पर दोहा घोषणा पत्र की अखंडता और वैधता का उल्लंघन है। इस रिपोर्ट में अपील की गई है कि सभी देश ट्रिप्स् (बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार संबंधी अधिकार) का पूर्ण इस्तेमाल करें और अनुचित आर्थिक और राजनैतिक दबाव के बारे में जागरक किये जाने की जरूरत है। (सप्रेस/थर्ड वल्र्ड नेटवर्क/फीचर्स)   

श्री  फ्रेंक कुवोन् थर्ड वल्र्ड नेटवर्क फीचर्स से जुड़़े लेखक हैं।

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