महासागरों में गंभीर चक्रवातों की आवृति में हुई 150% की बढ़त

वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रॉक्सी मैथ्यू कोल बताते हैं, “अरब सागर में चक्रवाती गतिविधि में वृद्धि, समुद्र के बढ़ते तापमान और ग्लोबल वार्मिंग के कारण नमी की बढ़ती उपलब्धता से मज़बूती से जुड़ी हुई है। इसका तात्पर्य न केवल ऐसी घटनाओं की संख्या में वृद्धि है, बल्कि उत्तर हिंद महासागर में चक्रवाती गतिविधि के पैटर्न और व्यवहार में बदलाव है। इन घटनाओं की तीव्रता के साथ-साथ चक्रवातों की कुल अवधि में काफी वृद्धि हुई है।”

बीते समय के मुकाबले अरब सागर में चक्रवातों की आवृत्ति, अवधि और तीव्रता में खतरनाक वृद्धि हुई है। इतनी ख़तरनाक, कि इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि बेहद गंभीर (वेरी सीवियर) चक्रवातों की आवृति में 150% की बढ़त दर्ज की गयी है। यह दावा  किया है पुणे के भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ ट्रॉपिकल मेटिओरॉलॉजी) के वैज्ञानिकों के एक नए अध्ययन में। इस अध्ययन का दावा है कि 2001 और 2019 के बीच अरब सागर में चक्रवातों की आवृत्ति में 52% की वृद्धि हुई, जबकि ‘वेरी सीवियर’ (‘बहुत गंभीर’) चक्रवातों में 150% की वृद्धि हुई। लेकिन इस बीच, बंगाल की खाड़ी में चक्रवाती तूफानों में 8% की कमी देखी गई है। स्प्रिंगर जर्नल में प्रकाशित पेपर “चेंजिंग स्टेटस ऑफ ट्रॉपिकल साइक्लोन्स ओवर द नॉर्थ इंडियन ओशन” में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर, दोनों में 1982 से 2019 तक, 38 वर्षों के लिए ट्रॉपिकल साइक्लोनिक गतिविधि की आवृत्ति, अवधि, वितरण, उत्पत्ति स्थानों और उनके ट्रैकों के संदर्भ में जांच की गई है।

अध्ययन स्थापित करता है कि जबकि परंपरागत रूप से महासागर और वायुमंडलीय परिस्थितियां अरब सागर की तुलना में बंगाल की खाड़ी में उष्णकटिबंधीय चक्रवात के गठन के लिए अधिक अनुकूल थीं, वैज्ञानिक अरब सागर में चक्रवाती गतिविधि में बढ़ते अब्नोर्मल पैटर्न देख रहे हैं। 2015 में, एक बाद एक दो निहायत गंभीर चक्रवाती तूफान, चपला और मेघा, एक ही महीने के भीतर आए, जबकि 2018 में, सात में से ऐसे तीन चक्रवात अरब सागर में हुए। 2019 में उत्तर हिंद महासागर में आठ ऐसी घटनाओं को जोड़कर अधिकतम चक्रवाती गतिविधि देखी गई, जिनमें से पांच की रचना अरब सागर में हुई। 2020 में, चक्रवात निसारगा मुंबई के पास महाराष्ट्र तट पर लैंडफॉल बनाने वाली इतिहास में पहली दर्ज की गई घटना थी, और 2021 में तौक्ते भारत के पश्चिमी तट के साथ सभी चार राज्यों को प्रभावित करने वाला सबसे शक्तिशाली चक्रवाती तूफान था।

IITM, पुणे के वरिष्ठ वैज्ञानिक, डॉ. रॉक्सी मैथ्यू कोल बताते हैं, “अरब सागर में चक्रवाती गतिविधि में वृद्धि, समुद्र के बढ़ते तापमान और ग्लोबल वार्मिंग के कारण नमी की बढ़ती उपलब्धता से मज़बूती से जुड़ी हुई है। इसका तात्पर्य न केवल ऐसी घटनाओं की संख्या में वृद्धि है, बल्कि उत्तर हिंद महासागर में चक्रवाती गतिविधि के पैटर्न और व्यवहार में बदलाव है। इन घटनाओं की तीव्रता के साथ-साथ चक्रवातों की कुल अवधि में काफी वृद्धि हुई है।”

अध्ययन के अनुसार, 1982 से 2000 के बीच 92 उष्णकटिबंधीय चक्रवात आए, जिनमें से 30% ‘वेरी सीवियर साइक्लोनिक स्टॉर्म’ (‘बहुत गंभीर चक्रवाती तूफान’) श्रेणी में बदल गए, जबकि 2001 और 2019 के बीच संख्या बढ़कर 100 हो गई, जिनमें से 36% ‘वेरी सीवियर’ (‘बहुत गंभीर’) में बढ़ गए। मई-जून अरब सागर में चक्रवातों के लिए पहला पीक सीज़न (चरम मौसम) होता है और अक्टूबर-नवंबर दूसरा। बंगाल की खाड़ी फरवरी और अगस्त को छोड़कर पूरे साल सक्रिय रहती है, हालांकि इसका पीक (चरम) अप्रैल-मई और फिर नवंबर में होता है। दिलचस्प बात यह है कि पिछले दो दशकों के दौरान अरब सागर में चक्रवातों की कुल अवधि में 80% की वृद्धि हुई है, जबकि ‘वेरी सीवियर’ (‘बहुत गंभीर’) चक्रवातों की अवधि में 260% की वृद्धि हुई है। बंगाल की खाड़ी में चक्रवातों की अवधि में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं देखा गया है।

अरब सागर में भी चक्रवातों की तीव्रता लगभग 20% (मानसून के बाद) बढ़कर 40% (पूर्व-मानसून) हो गई है। चक्रवात की उत्पत्ति और तीव्रता समुद्र की सतह के तापमान, सापेक्ष आर्द्रता, नम स्टैटिक एनर्जी, निम्न-स्तर की वोर्टिसिटी, वर्टिकल विंड शियर आदि जैसे विभिन्न मापदंडों द्वारा नियंत्रित होती है। अध्ययन का दावा है कि पूर्व-मानसून के दौरान उत्पत्ति पैटर्न सोमालिया के पास और मध्य अरब सागर के हिस्सों के ऊपर बढ़ रहे हैं, लेकिन ओमान और यमन के पास कम हो रहे हैं। जबकि, पूर्वी बंगाल की खाड़ी के ऊपर उत्पत्ति पैटर्न में घटती प्रवृत्ति है, पश्चिमी बंगाल की खाड़ी में एक बढ़ती प्रवृत्ति देखी गई है। मानसून के बाद के दौरान, पूर्वी अरब सागर के ऊपर एक महत्वपूर्ण बढ़ती प्रवृत्ति और पश्चिमी बंगाल की खाड़ी के ऊपर एक घटती प्रवृत्ति होती है।

पिछले अध्ययनों ने पूरे उत्तर हिंद महासागर के तेज़ी से गर्म होने के प्रभाव को भारतीय तटों के पार बढ़ती चक्रवाती गतिविधि के रूप में दिखाया है। हालांकि अध्ययन में नोट किया गया है कि बावजूद इसके के समुद्र की सतह का तापमान पूरे अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के उत्तर-पूर्वी हिस्से में महत्वपूर्ण पूर्व-मानसून वृद्धि दर्शाता है, उष्णकटिबंधीय चक्रवात गर्मी क्षमता केवल अरब सागर के भारतीय तट और पूर्वी और मध्य बंगाल की खाड़ी के हिस्सों पर बढ़ रही है, जो भारत के लिए चेतावनी के रुझान को दर्शाता है।

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