दुनिया भर के जीवन पर मंडराते जलवायु परिवर्तन और परमाणु हथियारों के खतरों से कैसे निपटा जा सकता है? क्या इसके लिए ‘विश्व-सरकार’ का गठन कारगर हो सकता है? कैसी हो सकती है, ऐसी सरकार? इसी की पड़ताल करता भारत डोगरा का लेख।
पिछली एक शताब्दी की सबसे चिंताजनक स्थिति यह रही है कि परमाणु व अन्य महाविनाशक हथियारों ने अनेक गंभीर भूमंडलीय पर्यावरणीय समस्याओं को पैदा किया है और धरती की जैविक क्षमताओं को बुरी तरह संकटग्रस्त कर दिया है। इस संदर्भ में एक सवाल यह उठा है कि क्या इन समस्याओं के समाधान के लिए जरूरी अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने हेतु ‘विश्व-सरकार’ का गठन हो सकता है?
अब यह भली-भांति स्पष्ट हो चुका है कि विश्व में ऐसे गंभीर संकट हैं जिनमें धरती की जीवनदायिनी क्षमता ही खतरे में पड़ सकती है। जलवायु परिवर्तन और इससे जुड़ी कुछ पर्यावरणीय समस्याएं ऐसा एक अति गंभीर संकट उपस्थित कर रही हैं। एक अन्य अति गंभीर संकट लगभग 13000 परमाणु हथियारों व अन्य महाविनाशक हथियारों की उपस्थिति के कारण उत्पन्न हुआ है।
ये संकट विश्व नेतृत्व के सामने काफी समय से हैं, पर इनका कोई संतोषजनक समाधान संभव नहीं हो पाया है। विश्व के पांच सबसे शक्तिशाली देश ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ की ‘सुरक्षा परिषद’ के ‘वीटो’ अधिकार वाले स्थाई सदस्य हैं। इन देशों के पास ही सबसे अधिक परमाणु हथियार हैं। यही रोबोट हथियारों में आगे हैं। इनकी जलवायु परिवर्तन व अन्य पर्यावरणीय विनाश में भी बड़ी भूमिका है।
जब जरूरत इस बात की थी कि ‘ग्रीनहाऊस गैसों’ के उत्सर्जन में तेजी से कमी हो, उस दौर में इसके उत्सर्जन में वृद्धि देखी गई है। जिस समय जरूरत परमाणु हथियारों में तत्काल कमी की थी, उस दौर में इनकी विध्वंसक क्षमता बढ़ाने पर करोड़ों डालर का निवेश हुआ व इसके साथ रोबोट हथियार भी बनाए गए। यह बहुत बड़ा सवाल हमारे सामने है कि आखिर इन गंभीर संकटों को समय रहते कैसे कम किया जाए। समय सीमा का सवाल इस कारण भी बहुत बड़ा है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के साथ ‘टिपिंग प्वाईंट’ भी जुड़े हैं। एक बार यह सीमा पार हो गई तो फिर स्थितियां हमारे नियंत्रण से बाहर निकल सकती हैं। विश्व के शीर्ष-विशेषज्ञ बता रहे हैं कि इस समस्या के समाधान के लिए बस एक दशक हमारे पास बचा है।
इस स्थिति में आखिर उम्मीद की किरण कहीं तो खोजनी पड़ेगी। यदि मौजूदा व्यवस्था में समाधान नहीं मिल रहे हैं तो उसमें बड़े बदलाव लाने की तैयारी करनी होगी। इस संदर्भ में हम यह संभावना तलाश सकते हैं कि जो संकट धरती की जीवनदायिनी क्षमता को खतरे में डाल रहे हैं, उनके समाधान के लिए एक ऐसी ‘विश्व-सरकार’ बनानी चाहिए जो केवल इन विषयों पर निर्णय ले व ये निर्णय पूरे विश्व के लिए मान्य हों।
इस ‘विश्व-सरकार’ का आरंभिक कार्य क्षेत्र बहुत सीमित पर अति महत्त्वपूर्ण होगा। उसे मूलतः यह सही ढंग से कार्यान्वित करना है कि (1) परमाणु व महाविनाशक हथियारों को शीघ्र-से-शीघ्र समाप्त कर दिया जाए व (2) सबसे गंभीर विश्व स्तर की पर्यावरणीय समस्याओं को सुलझाया जाए। इन दो उद्देश्यों को पहले अल्प-काल में पूरा करना होगा व आगे सुनिश्चित करना होगा कि यह सफलता भविष्य में बनी रहे।
यदि यह कार्य सफलता से हो जाता है तो फिर आगे ‘विश्व-सरकार’ के कार्यक्षेत्र को और बढ़ाने या उसका विस्तार करने के बारे में सोचा जा सकता है, पर उसके पहले सवाल यह है कि आखिर ‘विश्व-सरकार’ का गठन कैसे होगा? इसके लिए मौजूदा सीमाओं से अलग हटकर एक निश्चित जनसंख्या के ‘विश्व-सरकार’ निर्वाचन क्षेत्र बनाने चाहिए जहां से उसके प्रतिनिधि चुने जाएं। इन प्रतिनिधियों के लिए कुछ न्यूनतम योग्यताएं भी तय की जा सकती हैं।
इन निर्वाचित प्रतिनिधियों के सहयोग के लिए विश्व के सबसे योग्य निशस्त्रीकरण व जलवायु परिवर्तन के विशेषज्ञों का एक परामर्श मंडल बनाया जाए। ये निर्वाचित प्रतिनिधि व विशेषज्ञ मिलकर इन दो विषयों (महाविनाशक हथियार व जलवायु परिवर्तन) पर जरूरी निर्णय लेंगे जो विश्व के सभी देशों के लिए मान्य होंगे। ‘विश्व-सरकार’ के पास मौजूदा महाविनाशक हथियारों का मात्र एक प्रतिशत भंडार बना रहेगा।
यह ‘विश्व-सरकार’ की एक परिकल्पना है जो कुछ सबसे बड़े संकटों पर निर्णय तक सीमित है। इससे एक कदम आगे जाते हुए एक अन्य सोच विकसित की जा सकती है जिसमें विश्व के सभी देशों का सीमा नियंत्रण ‘विश्व-सरकार’ को सौंप दिया जाए। इस स्थिति में सभी देशों को अपनी जल, थल व वायु सेनाओं को व सभी सैन्य सामग्री उत्पादन को भंग कर देना होगा या इसके एक सीमित (5 से 10 प्रतिशत हिस्से) को ‘विश्व-सरकार’ को सौंप देना पड़ेगा।
इस स्थिति में किसी भी देश के पास न सेना होगी न वह कोई युद्ध करेगा। ‘विश्व-सरकार’ के पास सीमित सेना व सैन्य सामग्री होगी जिसका उपयोग वह पूरे विश्व में शान्ति बनाए रखने के लिए करेगी। विभिन्न देशों की सेनाओं के किसी भी सैनिक को बेरोजगार नहीं किया जाएगा, अपितु उनके लिए ‘विश्व-सरकार’ की शांति सेना, पुलिस, प्राकृतिक आपदा रक्षा दलों, प्रकृति रक्षा दलों आदि में पहले जैसे वेतन पर वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध करवाए जाएंगे।
‘विश्व-सरकार’ की यह दूसरी परिकल्पना पहली सोच से आगे जाते हुए एक युद्ध-विहीन विश्व की ओर ले जाती है व विश्व के सैन्य खर्च को 80 प्रतिशत तक कम कर सकती है, पर इस सोच में भी मौजूदा राष्ट्रीय सीमाएं अपनी जगह बनी रहेंगी। ‘विश्व-सरकार’ की तीसरी परिकल्पना इससे भी आगे जाती है व इस सोच में राष्ट्रीय सीमाएं भी समाप्त हो जाती हैं। यह सोच इस सिद्धांत पर आधारित है कि विश्व के सभी लोग एक हैं व उनमें राष्ट्रीयता, क्षेत्रीयता, धर्म, जाति, नस्ल, रंग, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। विश्व के सभी लोग एक हैं, सारी धरती एक है, सारे समुद्र व आकाश एक हैं – यह इस तीसरी परिकल्पना की बेहद विस्तृत सोच है।
इस तीसरी परिकल्पना में विश्व सुशासन के लिए बेहद विकेंद्रित ढंग से चलेगा। पूरा विश्व छोटी-छोटी विकेंद्रित इकाईयों में बंटा होगा जो व्यापक जन-भागीदारी से, लोकतांत्रिक व विकेंद्रित तौर-तरीकों से दैनिक जीवन के, बुनियादी जरूरतों की आपूर्त्ति के सभी मामलों को सुलझाएंगी, पर पूरे विश्व के लिए कुछ मार्गदर्शी सिद्धान्त एक से होंगे, जैसे – समता, सादगी, न्याय, लोकतंत्र, पर्यावरण व अन्य जीवों की रक्षा के लिए प्रतिबद्धता।
‘विश्व-सरकार’ इन सिद्धान्तों का निरंतरता से प्रसार करेगी। विभिन्न प्रशासनिक इकाईयों में कोई मतभेद होने पर वह अन्य पड़ौसी इकाईयों व ‘विश्व-सरकार’ के सहयोग से इन मतभेदों को शांतिपूर्ण, सौहार्दपूर्ण माहौल में दूर करेगी। विभिन्न इकाईयों में आपस में व्यापार के संबंध रहेंगे, पर बुनियादी जरूरतों की आपूर्त्ति का अधिक प्रयास किया जाएगा, ताकि पर्यावरण पर बोझ कम हो। इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण होंगे मित्रता व सांस्कृतिक आदान-प्रदान के संबंध।
‘विश्व-सरकार’ की यह तीसरी परिकल्पना किसी सरकार की परिकल्पना से कहीं आगे जाकर ‘एक विश्व’ की सोच है। जैसे-जैसे धरती पर जीवन का संकट बढ़ रहा है, मौजूदा व्यवस्था से अलग हटकर नई व्यवस्थाओं के बारे में हमें सोचना होगा व तब हमें यह भी सोचना होगा कि बिना किसी सीमाओं व भेदभाव के एक विश्व की दिशा में हम कितना आगे बढ़ सकते हैं। इतना स्पष्ट है कि ऐसा कोई बड़ा बदलाव अपने आप ही अचानक नहीं आ जाएगा। इसके अनुकूल जीवन-मूल्यों का प्रचार-प्रसार बहुत निष्ठा से कुछ वर्षों तक करना पड़ेगा। विश्व नागरिकता की सोच को फैलाना होगा। साथ में यह भी स्पष्ट है कि दैनिक जीवन के संदर्भ में बेहद विकेंद्रित सोच को ही अपनाना होगा। छोटी विकेंद्रित इकाई हो या ‘विश्व-सरकार,’ लोकतांत्रिक सोच को हर जगह सही भावना से अपनाना होगा। (सप्रेस)