जलवायु परिवर्तन: ‘फिट फॉर 55’ पैकेज लायेगा यूरोपीय संघ को जलवायु तटस्थता के करीब

Photo credit : Yves Herman/Reuters

यूरोपीय आयोग ने दावा किया है कि जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए उसकी तरफ से पेश योजना दुनिया की इस मकसद से बनाई गई सबसे महत्वाकांक्षी योजना है। इसके तहत साल 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 55 फीसदी कटौती करने का लक्ष्य रखा गया है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक अगर इस योजना को स्वीकार कर कदम उठाए गए, तो यूरोप की अर्थव्यवस्था का लगभग हर क्षेत्र इससे प्रभावित होगा।

जलवायु योजना का मसौदा बुधवार को जारी किया गया। इसके तहत 13 कानूनों का ड्राफ्ट पेश किया गया है, जिनका मकसद प्रदूषण फैलाने वाले आयात पर कर लगाना, जीवाश्म (फॉसिल) ईंधन को चरणबद्ध ढंग से खत्म करना, सौर, वायु तथा पनबिजली जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के इस्तेमाल को और विस्तार देना, इलेक्ट्रिक कारों को विकसित करने के काम में तेजी लाना, एक सामाजिक जलवायु कोष बनाना, और अगले दस साल में अक्षय ऊर्जा का उपयोग बढ़ा कर दो गुना करना है।

इस जलवायु योजना का नाम ‘फिट फॉर फिफ्टी फाइव’ पहल दिया गया है। मसविदे में कहा गया है कि उसमें तय लक्ष्य यूरोपियन ग्रीन डील का हिस्सा हैं, जिनके जरिए साल 2050 तक यूरोप को जलवायु तटस्थ बना दिया जाएगा। जलवायु तटस्थ का मतलब ऐसी अर्थव्यवस्था को पूरी तरह अपना लेना है, जिससे जलवायु को नुकसान पहुंचाने वाला कोई उत्सर्जन नहीं होगा।

क्‍या है यह ‘फिट फॉर 55’?

‘फिट फॉर 55’ पैकेज यूरोपीय यूनियन (ईयू) के आगामी विधान का मसविदा है। यह उस राजनीतिक प्रतिज्ञा के समर्थन के लिये तैयार किया गया है जिसके तहत वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्‍सर्जन में 1990 के स्‍तरों के मुकाबले 55 प्रतिशत तक की कटौती करने का इरादा जाहिर किया गया था।

यह लक्ष्‍य वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्‍सर्जन में 40 प्रतिशत कटौती करने के पिछले लक्ष्‍य के मुकाबले ज्‍यादा महत्‍वाकांक्षी है। यह वर्ष 2050 तक जलवायु-तटस्‍थ हो जाने ईयू के लक्ष्‍य का एक हिस्‍सा है। व्‍यापक संदर्भ में देखें तो इसका उद्देश्‍य एक यूरोपियन ‘ग्रीन डील’ को अंजाम देना है ताकि ईयू को अधिक सतत, समावेशी और प्रतिस्‍पर्द्धी बनाया जाए।

ईयू ऐसे देशों का नेतृत्‍वकर्ता संगठन है जिन्‍होंने दिसम्‍बर 2020 में वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्‍सर्जन में कुल 55 प्रतिशत की कटौती के लक्ष्‍य पर रजामंदी दी थी। इससे यूरोपियन विधायी प्रस्‍तावों के लिये एक मंच तैयार हुआ, जिनका उद्देश्‍य लक्ष्‍य को हासिल करने का है।

ये मसौदा जारी करते हुए यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उरसुला वॉन डेर लियेन ने कहा कि जीवाश्म ईंधन पर आधारित अर्थव्यवस्था अपनी सीमा पर पहुंच गई है। हम अगली पीढ़ी के लिए ऐसी दुनिया छोड़ कर जाना चाहते हैं, जो स्वस्थ हो और जहां अच्छी नौकरियों और आर्थिक विकास के अवसर हों।

इस योजना में सबसे अहम बात कार्बन उत्सर्जन को खत्म करने की दिशा में उठाए जाने वाले कदम हैं। इस दिशा में धीरे-धीरे कदम आगे बढ़ाते हुए 2025 तक लक्ष्य हासिल करने की योजना सामने रखी गई है। इसके तहत सबसे पहले अधिक कार्बन उत्सर्जन से तैयार होने होने वाले उत्पादों के आयात को निशाना बनाया जाएगा। सीमेंट, लौह, इस्पात, एलुमिनियम, उर्वरक, और बिजली ऐसे उत्पाद हैं। बाद में इस लिस्ट में दूसरे उत्पाद भी शामिल किए जाएंगे।

जानकारों का कहना है कि इस कदम से सबसे ज्यादा प्रभावित टर्की, रूस, यूक्रेन, मिस्र और चीन होंगे। ये देश इन उत्पादों के सबसे बड़े निर्यातक हैं। यूरोपीय आयोग ने कहा है कि इन उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने से इनके उत्पादक देश उत्सर्जन घटाने और ग्रीन नीतियों को अपनाने के लिए प्रेरित होंगे।

लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि इन शुल्कों से उन देशों के साथ ईयू का विवाद खड़ा हो सकता है, जो उसके सदस्य नहीं हैं। ये मामला विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में जा सकता है, क्योंकि नए शुल्क व्यापार में भेदभाव वाले व्यवहार की परिभाषा के तहत आ सकते हैँ। आलोचकों ने कहा है कि यूरोपीय आयोग ने अति महत्वाकांक्षी योजना बना ली है, जिस पर अमल आसान नहीं होगा। मसलन, अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने की योजना पर लक्जमबर्ग, माल्टा और नीदरलैंड्स जैसे देशों को एतराज हो सकता है, जिनके यहां कुल ऊर्जा उपभोग में अक्षय ऊर्जा की मात्रा अभी दस फीसदी भी नहीं है।

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