विडंबना है कि मानव सभ्यता की समाप्ति का संकट खुद मानव-निर्मित हो गया है। मसलन – लगातार बढ़ते चक्रवात, वायुमंडल और समुद्र के बढ़ते तापक्रम की वजह से पैदा हो रहे हैं और तापक्रम बढ़ने की वजह रोजमर्रा की मानवीय गतिविधियों के कारण बढता गैसों का उत्सर्जन है। हाल में आई विशेषज्ञों की एक रिपोर्ट से भी उजागर हुआ है कि सन् 2100 तक यह संकट जानलेवा बन जाएगा।
मानव द्वारा प्रकृति को पहुंचाए जा रहे नुकसान के कारण पृथ्वी के जलवायु पर निरंतर दबाव बढ़ता जा रहा है और यही कारण है विश्व में चक्रवातों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। चक्रवात एक ऐसा ‘समुद्री दानव’ है जो समुद्र से ऊर्जा ग्रहण करता है और फिर पृथ्वी की ओर आक्रामक रूप से बढ़ता है इसमें अत्यधिक प्रचंड वेग और ऊर्जा होती है। जब यह 150 से 250 किमी/प्रति घंटे के वेग से पृथ्वी की सतह से टकराता है तो भीषण आंधी और तूफान के साथ पृथ्वी को अत्यधिक प्रभावित करता है।
तापमान अधिक होने से समुद्र की सतह भाप में परिवर्तित होकर भँवर या बवंडर के रूप में सीधे आकाश की ओर जाती है। इस बवंडर से समुद्र की सतह पर कम दबाव का क्षेत्र बनता है जिससे वाष्पीकरण की प्रक्रिया और तेज हो जाती है। हवा गरम होकर जैसे ही ऊपर उठती है, आसपास की ठंडी हवा खाली जगह भरने को आ जाती है। यह हवा भी गरम हो जाती है और अपने साथ पानी लेकर ऊपर उठती है। इस तरह लगातार ऊपर उठती हवाएं पानी के बादलों का कुंडली की तरह एक वृत्त बना लेती हैं जो एक चक्र की तरह घूमने लगता है। चक्रवात तेजी से एक घेरे में घूमती हवा होती है इसलिए इसका मध्य-बिंदु हमेशा रिक्त होता है। घूमती हुई हवा उस बिंदु के चारों ओर घेरा बनाती है, लेकिन उस बिंदु तक नहीं पहुंच पाती। इसे ‘चक्रवात की आंख’ कहते हैं।
अरब सागर में उठा चक्रवाती तूफान ‘ताऊ ते’ अनुकूल मौसमी कारकों की वजह से विनाशकारी हुआ था। भारत में चक्रवाती तूफान अधिकांशतः मई और अक्टूबर के बीच आते हैं। ज्यादातर चक्रवात बंगाल की खाड़ी में उठते हैं और पूर्वी तटरेखा पर उनका असर दिखता है। वर्ष 1999 में उड़ीसा में आए ‘सुपर साइक्लोन’ के अलावा ‘आइला,’ ‘पाइलिन,’ ‘हुदहुद,’ ‘गज,’ ‘तितली’ और ‘फानी’ जैसे तूफान पिछले 20 सालों में बंगाल की खाड़ी में आए हैं। अब अरब सागर में भी लगातार चक्रवाती तूफानों की संख्या में वृद्धि हो रही है। ‘ताऊ ते’ पिछले दो दशकों के सबसे ताकतवर तूफानों में से है।
चक्रवाती तूफान का नामकरण –
ट्रॉपिकल चक्रवात एक बार में एक हफ्ते या उससे अधिक समय तक बने रह सकते हैं। ऐसे में एक समय में एक से अधिक चक्रवाती तूफान होने की आशंका बनी रहती है। इसलिए तूफान को एक नाम दे दिया जाता है जिससे पूर्वानुमान करते समय वैज्ञानिकों में भ्रम की स्थिति नहीं रहे।
तूफानों का औपचारिक नाम रखने की परंपरा 1950 में अमेरिका से शुरू हुई थी। इससे पहले तूफानों के नाम नाविक अपनी प्रेमिकाओं के नाम पर रखते थे। इसलिए शुरुआत में औपचारिक रूप से तूफानों के नाम महिलाओं के नाम से होते थे। सत्तर के दशक से यह परंपरा बदल गई और तूफानों के नाम महिला और पुरुष दोनों के नाम पर होने लगे। समसंख्या वाले वर्षों में तूफानों के नाम महिलाओं और विषम संख्या वाले वर्षों में यह पुरुषों के नाम पर होता है।
वर्ष 2004 से ‘विश्व मौसम संगठन’ और ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ के ‘प्रशांत-एशियाई क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक आयोग’ की चरणबद्ध प्रक्रिया के तहत चक्रवात का नाम रखा जाता है। आठ उत्तरी भारतीय समुद्री देश (बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका, और थाईलैंड) एक साथ मिलकर आने वाले चक्रवाती तूफ़ानों के 64 (हर देश से आठ नाम) नाम तय करते हैं। जब चक्रवात इन आठों देशों के किसी हिस्से में पहुंचता है, सूची से अगला दूसरा सुलभ नाम रख दिया जाता है। इन आठ देशों की ओर से सुझाए गए नामों के पहले अक्षर के अनुसार उनका क्रम तय किया जाता है और उसके हिसाब से ही चक्रवाती तूफान के नाम रखे जाते हैं।
भारत में चक्रवाती तूफान से प्रभावित इलाके-
भारत के तटवर्ती इलाके, विशेषकर ओडिशा, गुजरात, आंध्रप्रदेश, पश्चिम-बंगाल, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गोवा चक्रवाती तूफान से ज्यादा प्रभावित होते हैं। ‘भारतीय मौसम विभाग – पुणे’ के अनुसार पिछले एक दशक में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में उठने वाले चक्रवाती तूफानों की संख्या में 11 प्रतिशत वृद्धि हुई है, जबकि 2014 और 2019 के बीच चक्रवातों में 32 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण पूरी दुनिया में समुद्र का तापमान बढ़ रहा है। समुद्र सतह का तापमान बढ़ने से चक्रवात अधिक शक्तिशाली और विनाशकारी हो जाते हैं। अरब सागर में समुद्र सतह का तापमान 28-29 डिग्री तक रहता है, किन्तु हाल में ‘ताऊ ते’ तूफान के समय यह 31 डिग्री था। एक अनुमान के आधार पर सबसे शक्तिशाली तूफानों की ताकत हर दशक में करीब 8 प्रतिशत तक बढ़ रही है।
‘आईपीसीसी’ और ‘इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटियोरोलॉजी’ की वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कॉल के अनुसार, “साइक्लोन ‘ताऊ ते’ के रूप में हम देख रहे हैं कि लगातार तीसरे साल साइक्लोन पश्चिमी तट के अत्यधिक करीब आया है। पिछली एक सदी में अरब सागर के तापमान में वृद्धि हुई है और इससे यहां चक्रवातों की संख्या और मारक क्षमता बढ़ी है।” रॉक्सी मैथ्यू ने आगे बताया की पहली बार लगातार चार वर्षों (2018, 2019, 2020 व 2021) में प्री-मानसून सीजन (अप्रैल-जून) में अरब सागर में चक्रवात दिखायी दे रहे थे।
‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय’ की “असेसमेंट ऑफ क्लाइमेट चेंज ओवर द इंडियन रीजन” नाम की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए बड़े कदम नहीं उठाए गए तो गर्म-लहर (हीट वेव्स) में तीन से चार गुना की बढ़ोतरी दिखाई देगी और समुद्र का जलस्तर 30 सेंटीमीटर तक बढ सकता है। रिपोर्ट के अनुसार सदी के अंत तक (सन् 2100 तक) भारत के औसत तापमान में 4.4 डिग्री की बढ़ोतरी हो जाएगी। इसका सीधा असर लू के थपेड़ों और चक्रवाती तूफानों की संख्या बढ़ने के साथ समुद्र के जल-स्तर के उफान के रूप में दिखाई देगा।
इस रिपोर्ट के अनुसार मौसमी कारकों की वजह से उत्तरी हिन्द महासागर में अब और अधिक शक्तिशाली चक्रवात तटों से टकराएंगे। ग्लोबल वॉर्मिंग से समुद्र की सतह लगातार उठ रही है। उत्तरी हिन्द महासागर में जहां 1874 से 2004 के बीच 1.06 से 1.75 मिलीमीटर की बढ़ोतरी हो रही थी वहीं पिछले 25 सालों (1993-2017) में समुद्री जलस्तर में 3.3 मिलीमीटर प्रति वर्ष वृद्धि देखी जा रही है।
अमेरिका के ‘नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन’ (एनओएए), प्रिंसटन यूनिवर्सिटी और यूके में ‘यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया’ के वैज्ञानिकों ने उष्णकटिबंधीय चक्रवातों पर बदलती जलवायु के प्रभाव को समझने के लिए इससे संबंधित 90 लेखों की समीक्षा की व निष्कर्ष निकाला कि यदि वर्ष 2100 तक दुनिया का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है तो चक्रवाती हवा की अधिकतम गति में 5 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। चक्रवाती हवा की गति 300 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक हुई तो बिजली के खंभों, मकानों और वनस्पति जैसे सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा सकती है।
समुद्र के बढ़ते जल स्तर के कारण तूफान भी बढ़ते हैं, जिससे चक्रवाती तूफानों के विनाशकारी प्रभाव की आशंका बढ़ जाएगी। चक्रवाती तूफानों को कम करने एवं उनसे होने वाले विनाश से बचने के लिए कार्बन उत्सर्जन व प्रदूषण पर नियंत्रण एवं वनोन्मूलन को रोकना अत्यंत आवश्यक है। (सप्रेस)
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