दो महीनों से ज्यादा समय से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध ने अब समूची दुनिया के सामने कुछ कठिन सवाल खडे कर दिए हैं। इस समय यह बहुत जरूरी है कि निष्पक्षता के आधार पर यूक्रेन युद्ध पर एक सुलझी हुई समझ बनाई जाए। क्या हैं, ये सवाल?
यूक्रेन युद्ध आधुनिक इतिहास का एक अति महत्त्वपूर्ण अध्याय है। यह युद्ध ऐसे समय में लड़ा जा रहा है, जब शक्तिशाली, साधन-संपन्न तत्त्वों द्वारा तरह-तरह के भ्रामक व एक-पक्षीय तथ्य प्रचारित हो रहे हैं। इस समय यह बहुत जरूरी है कि निष्पक्षता के आधार पर यूक्रेन युद्ध पर एक सुलझी हुई समझ बनाई जाए। यह उद्देश्य ध्यान में रखते हुए यहां यूक्रेन युद्ध के सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
1. यह युद्ध एक बहुत बड़ी मानवीय त्रासदी है। अभी तक के समाचारों के अनुसार इसमें 40 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं, जबकि हजारों व्यक्ति (सैनिक व नागरिक) मारे जा चुके हैं।
2. यह युद्ध जितने दिन जारी रहेगा, निरंतर युद्ध का संकट फैलने व युद्ध के अधिक विनाशकारी होने का खतरा बना रहेगा। महाविनाशक हथियारों (परमाणु, रासायनिक, जैविक) के उपयोग की संभावना आ सकती है, या इन हथियारों के भंडार या अड्डे क्षतिग्रस्त हो सकते हैं, व इस तरह से फैले विनाश के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
3. इस युद्ध ने दुनिया को बुरी तरह बांट दिया है व तनावग्रस्त कर दिया है। इस समय दुनिया में जलवायु बदलाव व पर्यावरण की बहुत गंभीर समस्याएं हैं जो मनुष्य व अनेक अन्य जीव-रूपों के लिए अस्तित्व का संकट तक उपस्थित कर रही हैं। युद्ध के कारण विश्व बंटेगा, हथियारों की होड़ और तेज होगी, महाविनाशक हथियारों का उत्पादन बढ़ेगा, युद्ध संबंधी गतिविधियों में ‘ग्रीनहाऊस गैसों’ का उत्सर्जन और बढ़ेगा तो समय रहते अस्तित्व तक पर मंडरा रहे संकट का समाधान और कठिन हो जाएगा।
4. यूक्रेन युद्ध व उससे जुड़े विभिन्न प्रतिबंधों के कारण विश्व के अनेक देशों के लिए आर्थिक संकट व खाद्य संकट अधिक विकट हो गए हैं व इसका प्रतिकूल असर करोड़ों लोगों को बढ़ती आर्थिक कठिनाईयों, महंगाई, अभाव व यहां तक कि भुखमरी के रूप में भी झेलना पड़ सकता है। इनमें से बहुत से लोग अभी कोविड संकट की चपेट से बाहर निकल भी नहीं पाए हैं व यह नया संकट आ गया है, अतः इसकी मार और भी अधिक है।
5. यूरोप के लिए ‘शीत-युद्ध’ के दौर से भी बड़े संकट उपस्थित हो गए हैं। यूक्रेन में फासीवादी तत्त्वों को पश्चिमी सहायता से रूस-विरोधी ताकत के रूप से मजबूत किया गया है व फिर आसपास के अन्य देशों के कट्टरवादी दक्षिणपंथी भी उनकी मदद के लिए पहुंच सकते हैं। उधर रूस में भी कट्टर राष्ट्रवादी अधिक ताकतवर बन सकते हैं।
6. इन सभी कारणों से यह बहुत जरूरी है कि जितनी जल्दी संभव हो इस युद्ध को समाप्त कर दिया जाए। जितनी देर युद्ध जारी रहेगा, उतने ही संकट बढ़ेंगे। यह इस युद्ध के संदर्भ में सबसे बड़ी जरूरत है कि यह शीघ्र-से-शीघ्र समाप्त हो व इसके बाद भी अमन-शांति के प्रयास जारी रहें।
7. इस युद्ध का एक बड़ा कारण यह है कि अमेरिका ने लगभग तीन दशक से रूस के प्रति शत्रुता की नीति अपनाई है व यूक्रेन को इसमें प्राक्सी की तरह उपयोग किया है। उसने बार-बार प्रयास किए हैं कि रूस को अधिक दबाया जाए। जब इसमें पूर्ण सफलता नहीं मिली तो उसने ‘नाटो सैन्य संगठन’ का रूस की ओर विस्तार कर उसे घेरा। फिर यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाने का विवाद छिड़ गया।
यूक्रेन में अमेरिका ने दखलंदाजी व धन के उपयोग से ऐसे बदलाव किए जिसमें यूक्रेन रूस के प्रति शांति व समझौते की नीति न बना सके। इसके लिए अमेरिका ने घोर दक्षिणपंथी व फासीवादी तत्त्वों को मजबूत किया जिन्होंने रूसी भाषा बोलने वाले यूक्रेनी क्षेत्रों व नागरिकों पर हमले किये व तबाही की। राष्ट्रपति जेलेंस्की पर इन फासीवादी तत्त्वों का दबाव बढ़ाया गया, ताकि वे भी रूस विरोधी नीतियां ही अपनाएं।
8. इस तरह उकसाए जाने के बावजूद रूस को यूक्रेन पर हमला नहीं करना चाहिए था, क्योंकि मौजूदा स्थितियों में इस हमले से हानियां बहुत हैं। रूस को अपनी सुरक्षा के हित में हमले को छोड़कर अन्य उपाय अपनाने चाहिए थे व विश्व के जनमत को अपने पक्ष में करना चाहिए था। इस हमले व इससे जुड़े रूसी राष्ट्रपति के कुछ आक्रमक बयानों की भी निंदा होनी चाहिए। इस हमले को शीघ्र-से-शीघ्र रोक कर रूसी सेना की वापसी होना चाहिए।
9. इस हमले को रोकने, इसे शीघ्र समाप्त करवाने, इससे पहले की अमेरिकी आक्रमकता को रोकने, रूसी भाषी यूक्रैनी नागरिकों पर यूक्रेनी फासीवादियों के हमलो को रोकने, यूक्रेन के चुनावों में अमेरिकी दखलंदाजी को रोकने या कम-से-कम इसकी कड़ी आलोचना करने में ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ बुरी तरह विफल रहा है।
10. यह बाहरी तौर पर रूस-यूक्रेन युद्ध है, पर इसकी गहराई में जाएं तो यह अमेरिका व रूस का प्राक्सी युद्ध है जिसे भड़काने में अमेरिका की अधिक भूमिका रही है व रूस ने हमले की गंभीर गलती की है। राष्ट्रपति बाईडन व राष्ट्रपति पुतिन दोनों ने आक्रमक व अनुचित बयान दिए इसलिए अमेरिका व रूस दोनों की आलोचना होनी चाहिए। विश्व नेतृत्व बड़े संकटों को रोकने में कितना अक्षम और गैर-जिम्मेदार है, यह यूक्रेन युद्ध से एक बार फिर स्पष्ट हो गया है।
11. यूक्रेन युद्ध ने एक बार फिर विश्व स्तर पर अमन-शांति, न्याय-समता व पर्यावरण रक्षा के बड़े जन-आंदोलन की आवश्यकता को रेखांकित किया है, जो विश्व में सबसे जरूरी न्याय-समता, अमन-शांति (युद्ध की समाप्ति) व पर्यावरण रक्षा के एजेंडे को तेजी से आगे ले जा सकें। (सप्रेस)
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