पवन ऊर्जा उत्पादन में इज़ाफ़ा किये जाने हेतु वैश्विक पवन उद्योगों के 25 प्रमुख सीईओ ने लिखा पत्र
वैश्विक पवन उद्योगों के प्रमुख सीईओ ने एकजुट होकर राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं और जीवाश्म ईंधन की जगह लेना के लिए पवन ऊर्जा उत्पादन में इज़ाफ़ा करने के लिए जी-20 सदस्यों से तत्काल ठोस योजना बनाकर जलवायु संकट में नेतृत्व दिखाने की माँग की है। पवन ऊर्जा और रिन्यूएबल प्रतिष्ठान वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक प्रक्षेप पथ से काफ़ी कम पड़ते हैं, जिस कारण ऊर्जा नीतियों में सुधार के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
COP26 के लिए ग्लोबल विंड एनर्जी कोअलिशन (वैश्विक पवन ऊर्जा गठबंधन) के सदस्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए 25 सीईओ ने जी-20 के प्रमुखों को एक खुला पत्र भेजा है। पत्र में कहा गया है कि ऊर्जा अवस्थांतर में कुछ प्रगति हुई है। जी-20 देशों की वर्तमान नेट ज़ीरो प्रतिज्ञाओं ने दुनिया को अभी भी 2.4°C ग्लोबल वार्मिंग मार्ग पर रखा है जो जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए जो आवश्यकता से कहीं अधिक है।
इस पत्र पर हस्ताक्षरकर्त्ता प्रमुख पवन ऊर्जा कंपनियों में वेस्टास विंड सिस्टम्स, (Vestas Wind Systems), सीमेंस गामेसा रिन्यूएबल एनर्जी (Siemens Gamesa Renewable Energy), ओर्स्टेड (Orsted), एसएसई (SSE), आरडब्लूई (RWE) और मेनस्ट्रीम रिन्यूएबल पावर (Mainstream Renewable Power) और यूके, यूरोप, ब्राजील, चीन, मैक्सिको, दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे प्रमुख भौगोलिक क्षेत्रों में उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाले संघ शामिल हैं।
वैश्विक पवन ऊर्जा परिषद (GWEC) के सीईओ बेन बैकवेल ने कहा, “जी-20 सदस्य देश वैश्विक ऊर्जा से संबंधित कार्बन उत्सर्जन के 80% से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिए इन देशों के नेता दुनिया की ऊर्जा प्रणाली को बदलने के लिए शक्ति और सार्वजनिक कर्तव्य रखते हैं। इन देशों को नवीकरणीय ऊर्जा के बारे में गंभीर होने की ज़रूरत है, और विशेष रूप से दुनिया को अपने पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करने की सबसे अधिक संभावना वाले स्वच्छ ऊर्जा समाधान के रूप में पवन ऊर्जा के बारे में।“
हस्ताक्षरकर्ता इस बात पर प्रकाश डालते है कि अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के हालिया रोडमैप से पता चलता है कि 2050 तक नेट ज़ीरो लक्ष्य को पूरा करने के परिदृश्य के लिए वार्षिक पवन परिनियोजन को 2020 में 93 गीगावॉट से चार गुना बढ़कर 2030 में 390 गीगावॉट हो जाना चाहिए। IEA और IRENA, दोनों नेट ज़ीरो परिदृश्य के लिए आवश्यक कुल पवन ऊर्जा क्षमता में संरेखित हैं जो, 2050 तक क्रमशः 8,265 गीगावॉट और 8,100 गीगावॉट की आवश्यकता के पूर्वानुमान, 1.5°C वार्मिंग मार्ग के अनुकूल है।
यदि पवन ऊर्जा के लिए वर्तमान विकास दर बनी रहती है, तो पत्र का तर्क है कि वैश्विक पवन क्षमता, 2050 तक स्थापना में 43% की कमी के साथ, 2050 तक कार्बन न्यूट्रैलिटी के लिए आवश्यक मात्रा में भीषण रूप से कम पड़ जाएगी।
जी-20 देशों में बड़ी मात्रा में अप्रयुक्त पवन ऊर्जा क्षमता है जो राष्ट्रीय बिजली की मांग के एक महत्वपूर्ण हिस्से को पूरा कर सकती है, लेकिन जो वे अभिनियोजित कर सकते हैं उसका बमुश्किल उपयोग कर रहे हैं। दुनिया भर में पवन ऊर्जा प्रतिष्ठानों की वर्तमान गति के साथ, पूर्वानुमान बताते हैं कि हम 2050 तक नेट ज़ीरो तक पहुंचने के लिए आवश्यक पवन ऊर्जा क्षमता के आधे से भी कम को स्थापित करेंगे।
ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल (GWEC) भारत के नीति निदेशक, मार्तंड शार्दुल कहते हैं, “भारत की वर्तमान स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का 40% शामिल करते हुए, पवन ऊर्जा भारत के स्वच्छ एनर्जी ट्रांजिशन और कम कार्बन विकास प्रक्षेपवक्र के केन्द्र में है और इसमें कई सकारात्मक बाहरीताएं हैं जैसे रोजगार सृजन और वायु प्रदूषण में कमी। फिर भी, 140 गीगावॉट स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता के 2030 के लक्ष्य को पूरा करने के लिए नवीन संस्थानों, चुस्त व्यापार मॉडल्स और स्मार्ट वित्तपोषण की आवश्यकता होती है ताकि बिजली उत्पादन और विनिर्माण, दोनों का विस्तार किया जा सके, जो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय या सीमा पार की ज़रूरतों को पूरा करता है जिससे स्वच्छ ऊर्जा और स्वच्छ ऊर्जा उपकरणों के वैश्विक निर्यात में बढ़ोतरी होगी। यह नेट-ज़ीरो (लक्ष्य) के लिए वैश्विक प्रयासों को उत्प्रेरित करेगा।”
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