इंडो-फ़िलिस्तीन सॉलिडेरिटी नेटवर्क” द्वारा नकबा के 76 वें वर्ष पर कार्यक्रम का आयोजन

रिपोर्ट : अदनान अली

नईदिल्‍ली । सन् 1948 में फ़िलिस्तीनी ज़मीन पर इज़राएल राज्य की स्थापना के बाद फ़िलिस्तीनियों को उनके घर से बेघर कर दिया गया। इज़राएल द्वारा फ़िलिस्तीनयों पर किए गए इस ज़ुल्म के ख़िलाफ़ और फ़िलिस्तीनियों के साथ एकजुटता के लिए नकबा दिवस (Nakba Day) मनाया जाता है। इसी तारतम्य में “इंडो-फ़िलिस्तीन सॉलिडेरिटी नेटवर्क” द्वारा प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में नकबा के 76 वें वर्ष पर 15 मई 2024 को एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। लेखिका, शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता डॉक्टर सईदा हमीद की सदारत में आयोजित हुए इस कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार और अंतरराष्ट्रीय मामलों के विद्वान सईद नक़वी तथा वरिष्ठ पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्त्ता जॉन दयाल का वक्तव्य हुआ।

इसके पहले कार्यक्रम के सूत्रधार प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने कहा कि नकबा दर्द के लम्हों की याद है, लगातार चल रहे फ़िलिस्तीनी संघर्ष की याद है और भविष्य की उम्मीद है कि फिर कभी ऐसा न हो। इसी के साथ भारत में भी जो साथी इन्साफ़ के लिए संघर्ष करते हुए ज़ुल्म के शिकार हुए थे, उनमें से देर से सही लेकिन देश की शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्त्ता गौतम नवलखा एवं न्यूज़क्लिक के संस्थापक संपादक प्रबीर पुरकायस्थ को ज़मानत पर रिहा करने का फ़ैसला दिया, इसका यह सभा स्वागत करती है।  इस पर पूरा सभागृह तालियों से गूँज उठा।  

तीनों मुख्य अतिथियों को मंच पर आमंत्रित करने के उपरांत अपने वक्तव्य में सईद नकवी ने बताया कि मीडिया केवल 7 अक्टूबर 2023 के दिन हमास द्वारा इज़राएल पर किया गया हमला ही देख रहा है लेकिन वह उस ज़ुल्म की बात नहीं करता जो पिछले कई सालों से फ़िलिस्तीन के नागरिकों पर इज़राएल द्वारा ढाया जा रहा है। मीडिया ठीक इसी तरह 24 फरवरी 2022 के दिन रूस द्वारा यूक्रेन पर की गई सैन्य कार्यवाही का जिक्र कर रहा है लेकिन वह यह बात नहीं बता रहा कि योरप और अमेरिका द्वारा रूस को इस कार्यवाही के लिए उकसाया और विवश किया गया था।

सईद नक़वी ने बताया कि फ़िलिस्तीन में हालात आज बुरे नज़र आ रहे हैं लेकिन पूर्व में इस से भी भयानक दुर्दशा रही है। सन् 1982 में लेबनान युद्ध के दौरान सबरा और शतीला रिफ्यूजी कैंप में हज़ारों लोगों का क़त्ले-आम किया गया और बचे हुए लोगों को  मरे हुए चूहे खाने पर मजबूर किया गया। उन्होंने बताया कि  किस तरह पश्चिमी देश केवल अपना आधिपत्य (Hegemony) जारी रखने के लिए इतने बड़े पैमाने पर नरसंहारों और युद्धों का समर्थन करते आये हैं।

उन्होंने बताया कि अमेरिका में नेशनल राइफल एसोसिएशन का सरकार पर काफ़ी दबदबा रहता है लेकिन सबसे बड़ा दबाव इज़राएली लॉबी का होता है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन भी ज़ायोनिज़्म  के बड़े समर्थक हैं। उनकी ख़ामोशी इसका सबूत है।

सईद नक़वी ने कहा कि साम्राज्यवाद दुनिया में  लूट का राज कायम करने के लिए ज़ायोनिज़्म जैसी विचारधाराओं को फैलाता है और  एक न एक दिन लोग ज़ुल्म के ख़िलाफ़ खड़े हो जाते हैं। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से सारी दुनिया में अमेरिकी साम्राज्यवाद ने हर तरफ़ लूट जारी रखी और सोवियत संघ के गिर जाने के बाद अमेरिका को कोई रोकने वाला भी नहीं रहा। लेकिन अब साम्राज्यवाद के अंतर्विरोध भी बढ़ गए हैं और  उसके ज़ुल्मों को सहने वालों ने भी बस कर दी है।  अब साम्राज्यवाद जीत नहीं पा रहा लेकिन वो अपनी हार भी स्वीकार नहीं कर सकता इसलिए युद्ध को लंबा खींचता जा रहा है।  जब वो भी मुमकिन नहीं होता तो वो जैसे अफ़ग़ानिस्तान  से भागा वैसे ही अपने पीछे अराजकता की स्थितियाँ छोड़कर भाग जाता है।  

युद्ध उसके लिए इसलिए भी ज़रूरी हैं क्योंकि दुनिया भर में अमेरिका के 760 फ़ौजी बेस हैं। जब कहीं युद्ध होता है तब उनका उपयोग होता ही है लेकिन जब युद्ध नहीं हो रहा होता तब युद्ध की  युद्ध की तैयारी चल रही होती है। इसलिए उनके लिए हथियारों का उद्योग उनकी अर्थव्यवस्था की ज़रूरत है। ये मिलिट्री – इंडस्ट्रियल काम्प्लेक्स अमेरिका की मजबूरी है।  ज़ायोनिस्ट लॉबी इसका फायदा उठाती है।  अब उनके चेहरे बेनकाब हो चुके है और दुनिया इन्हें पहचान चुकी है।

जॉन दयाल ने बताया कि उन्होंने इज़राएल की मानसिकता समझने के लिए हिब्रू भाषा सीखी थी और वह पिछले 40 सालों से इज़राएल-फ़िलिस्तीन विवाद पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। उन्होंने बताया कि कुछ सालों पहले स्मृति शेष स्वामी अग्निवेश एवं एक अन्य साथी के साथ इज़राएल-जॉर्डन बॉर्डर से इज़राएली पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ़्तार भी किया गया था।

अमेरिका पर बात करते हुए  जॉन ने कहा कि अमेरिका शांति नहीं चाहता है, वह संयुक्त राष्ट्र में वीटो का इस्तेमाल कर इज़राएल को बचाता आ रहा है। भारत में इज़राएल का समर्थन करने वालों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यहाँ वे गौशाला चला रहे हैं लेकिन उन्हें फ़िलिस्तीन के इंसानों से कोई हमदर्दी नहीं है। जॉन ने कहा कि नफरत इंसानियत का सबसे बड़ा दुश्मन है। सात हज़ार से ज्यादा बच्चे और 100 से ज्यादा पत्रकार अक्टूबर से लेकर अब तक मारे जा चुके हैं लेकिन इस बारे में कोई बात क्यों नहीं कर रहा। जॉन ने साथ ही बताया कूफ़े (फ़िलिस्तीनी स्कार्फ) केवल फ़िलिस्तीन के लोगों की ही पहचान नहीं है बल्कि यह अब ज़ालिम के ज़ुल्म के ख़िलाफ़ खड़े होने के साहस का प्रतीक बन चुका है।

कार्यक्रम के आख़िर में डॉक्टर सईदा हमीद ने नकबा शब्द का अर्थ समझाया और फ़िलिस्तीनियों की पीड़ा दर्शाती मार्टिन मैक्वान की बनायी पेंटिंग प्रदर्शित की जिसमें अल यूसुफ़ अस्पताल पर हुए इज़राएली हमले से हुई बच्चों की मौतों को व्यक्त किया गया था।  पेंटिंग के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि इसमें 14,500 लाशें दिखायी गई हैं। सईदा जी ने अपने वक्तत्व के अंत में गौहर रज़ा द्वारा फ़िलिस्तीन के लिए लिखी गई नज़्म “यह अजीब जंग है” पढ़ कर सुनायी।

इसके उपरान्त सभा ने एकमत से फ़िलिस्तीनियों के साथ एकजुटता और इज़राएल से जंग रोकने की अपील करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया।  

अंत में सभी वक्ताओं एवं श्रोताओं का स्नेहा गिल ने आभार व्यक्त किया। पूरे भरे सभागृह में वरिष्ठ राजनीतिक चिंतक प्रोफ़ेसर अचिन विनायक, वरिष्ठ अर्थशास्त्री जया मेहता, वरिष्ठ पत्रकार पामेला फिलिपोस, जावेद नक़वी, राम शरण जोशी, साहित्यकार अर्जूमंद आरा, रविंदर त्रिपाठी, सामाजिक कार्यकर्ता सहजो सिंह, सविता नक़वी, पीयूसीएल के मिहिर देसाई, इतिहासविद कुणाल चट्टोपाध्याय, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक के के राष्ट्रीय महासचिव कॉमरेड देवराजन, ऑल इंडिया यूथ फ़ेडरेशन के राष्ट्रीय महासचिव कॉमरेड थिरुमलाई, डॉ. राकेश विश्वकर्मा, धीरेन्द्र तिवारी, आमिर हैदर  सहित अनेक युवा भी मौजूद थे।

कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों ने एक कपड़े पर अपने दस्तखत करते हुए फ़िलिस्तीनियों से एकजुटता दिखाई। यह हस्ताक्षर इंडो-फ़िलिस्तीन सॉलिडेरिटी नेटवर्क द्वारा भारत में मौजूद फ़िलिस्तीन राजदूत को सौंपे जाएँगे।

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