संयुक्त राष्ट्र की आज जारी ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार अगले 20 सालों में दुनिया के तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस इजाफा तय, ग्लोबल वार्मिंग की इस रफ्तार पर भारत में गर्म चरम मौसम की आवृत्ति में वृद्धि की उम्मीद
जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ती घटनाओं की मार से जूझ रही धरती के लिए एक और बुरी खबर आई है। दुनिया की प्रतिष्ठित संस्था इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने सोमवार को चेतावनी दी कि अगर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम नहीं किया गया तो वर्ष 2100 तक धरती का तापमान दो डिग्री तक बढ़ सकता है। इससे भारत में चमोली जैसी प्राकृतिक आपदाएं बढ़ सकती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक जाने पर भारत के मैदानी इलाकों में तपिश, अत्यधिक गर्मी और जानलेवा आसमान से बरसती आग जैसी मौसम की मार वाली घटनाएं में इज़ाफा होना तय है। अगले दस सालों में जानलेवा गर्मी की घटनाओं में बढ़ोत्तरी से निपटने के लिए भारतवासियों को कमर कस लेनी चाहिए । इनमें दस वर्ष में 5 गुना तक इजाफा मुमकिन है। अगर ग्लोबल वार्मिंग 2 डिग्री सेल्सियस तक होती है तो अपने अधिकांश मैदानी हिस्सों में तपती गर्मी के चलते जीना दूभर हो जायेगा।
धरती की सम्पूर्ण जलवायु प्रणाली के हर क्षेत्र में पर्यावरण में हो रहे बदलावों को दुनिया भर के वैज्ञानिक देख रहे हैं। जलवायु में हो रहे अनेक परिवर्तन तो अप्रत्याशित हैं जो सैकड़ों-हजारों सालों में भी नहीं देखे गये। कुछ बदलाव तो पहले ही अपना असर दिखाना शुरू कर चुके हैं, जैसे कि समुद्र के जलस्तर में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी। इन बदलावों का असर हजारों सालों तक खत्म नहीं किया जा सकता। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की आज जारी हुई रिपोर्ट में इन बातों के लिये आगाह किया गया है।
वैश्विक तापमान को स्थिर होने में 20 से 30 साल लग सकते हैं
आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप वन की रिपोर्ट ‘क्लाइमेट चेंज 2021: द फिजिकल साइंस बेसिस‘ के मुताबिक हालांकि कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में मजबूत और सतत कटौती किए जाने से जलवायु परिवर्तन सीमित हो जाएगा। जहां हवा की गुणवत्ता के फायदे तेजी से सामने आएंगे, वहीं वैश्विक तापमान को स्थिर होने में 20 से 30 साल लग सकते हैं। इस रिपोर्ट को आईपीसीसी में शामिल 195 सदस्य देशों की सरकारों ने पिछली 26 जुलाई को शुरू हुए दो हफ्तों के वर्चुअल अप्रूवल सेशन के दौरान शुक्रवार को मंजूरी दी है। वर्किंग ग्रुप 1 की रिपोर्ट आईपीसीसी की छठी असेसमेंट रिपोर्ट (एआर6) की पहली किस्त है।
यूरोपियन क्लाइमेट फाउंडेशन के CEO, लारेंस टुबियाना ने कहा है कि विश्व के नेताओं को जलवायु परिवर्तन के बारे में गंभीर होने की जरूरत है। पेरिस समझौते ने सरकारों द्वारा कार्रवाई में तेज़ी लाने के लिए एक स्पष्ट रूपरेखा तैयार की है। अफसोस की बात है कि कई बड़े प्रदूषक एक उस समझौते को अनदेखी कर रहे हैं जिसे उन्होंने प्रदान करने में मदद की, और 2015 में किए गए अपने वादों को तोड़ रहे हैं। हम अभी भी 1.5 डिग्री से नीचे रह सकते हैं, लेकिन इसे विलंबित और इंक्रीमेंटल उपायों से हासिल नहीं किया जा सकता । सरकारों को संयुक्त राष्ट्र महासभा में कड़ी कार्रवाई करने, गरीब देशों के लिए समर्थन की पेशकश करने और उनकी जलवायु योजनाओं को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए।
रिपोर्ट में भारत से संबंधित कुछ प्रमुख निष्कर्ष
आईपीसीसी की हालिया रिपोर्ट से साफ़ ज़ाहिर होता है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने का वक़्त हाथ से फिसल चुका है और ऐसे में भारत चाहे वह चमोली में आई आपदा हो, सुपर साइक्लोन ताउते और यास हों और देश के कुछ हिस्सों में हो रही जबरदस्त बारिश हो, भारत जलवायु से संबंधित जोखिमों का सामना कर रहा है।
आलोक शर्मा, COP26 अध्यक्ष कहते हैं, “विज्ञान स्पष्ट है, जलवायु संकट के प्रभावों को दुनिया भर में देखा जा सकता है और अगर हम अभी कार्रवाई नहीं करते हैं, तो हम जीवन, आजीविका और प्राकृतिक आवासों पर सबसे ख़राब प्रभाव देखना जारी रखेंगे। हर देश, सरकार, व्यवसाय और समाज के हिस्से के लिए हमारा संदेश सरल है। अगला दशक निर्णायक है, विज्ञान का अनुसरण करें और 1.5C के लक्ष्य को जीवित रखने के लिए अपनी जिम्मेदारी को स्वीकार करें। महत्वाकांक्षी 2030 एमिशन रिडक्शन टार्गेट्स और सदी के मध्य तक नेट ज़ीरो के मार्ग के साथ दीर्घकालिक रणनीतियों के साथ आगे बढ़कर, और कोयला बिजली को समाप्त करने के लिए अभी कार्रवाई कर के, इलेक्ट्रिक वाहनों के रोल आउट में तेज़ी ला कर, वनों की कटाई से निपटने और मीथेन उत्सर्जन को कम करते हुए, हम यह एक साथ कर सकते हैं।”
वार्षिक औसत वर्षा में वृद्धि का अनुमान है। वर्षा में वृद्धि भारत के दक्षिणी भागों में अधिक गंभीर होगी। दक्षिण-पश्चिमी तट पर, 1850-1900 के सापेक्ष वर्षा में लगभग 20% की वृद्धि हो सकती है। यदि हम अपने ग्रह को 4 डिग्री सेल्सियस तक गर्म करते हैं, तो भारत में सालाना वर्षा में लगभग 40% की वृद्धि देखी जा सकती है।ऐसे में अत्यधिक वर्षा जल और बाढ़ से बचने का बंदोबस्त हमारे सामने एक बड़ी चुनौती होगी।
7,517 किमी समुद्र तट के साथ, भारत को बढ़ते समुद्री जलस्तर का सामना करना पड़ेगा। एक अध्ययन के अनुसार,ग्लोबल वार्मिंग के चलते अगर समुद्र का स्तर 50 सेंटीमीटर बढ़ जाता है तो छह भारतीय बंदरगाह शहरों – चेन्नई, कोच्चि, कोलकाता, मुंबई, सूरत और विशाखापत्तनम में – 28.6 मिलियन लोग तटीय बाढ़ की चपेट में आ जाएंगे । बाढ़ के संपर्क में आने वाली संपत्ति लगभग 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की होगी। भारत के वे क्षेत्र जो समुद्र के स्तर से नीचे होंगे और समुद्र के स्तर में 1 मीटर की वृद्धि होगी, उन्हें इस मानचित्र पर दिखाया गया है (यह वर्तमान बाढ़ सुरक्षा को ध्यान में नहीं रखता है)।
भारत दुनिया के दस में से छह सबसे प्रदूषित शहरों का घर है और लगातार वायु प्रदूषण से जूझ रहा है- 2019 में वायु प्रदूषण के चलते देश में 1.67 मिलियन लोगों का जीवन दांव पर लगा । सबसे ज्यादा इसकी चपेट में गरीब और मेहनतकश शहरों में कम करके रोटी रोजी कमाने वाले लोग हैं । वहीं दूसरी तरफ यह ग्लोबल स्तर पर दुनिया का तीसरा सबसे अधिक मीथेन उत्सर्जित करने वाला देश है। इन दोनों प्रदूषकों पर लगाम कसने की चुनौती हमारे सामने खड़ी है ।
भारत में, हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर क्षेत्र में रहने वाले 240 मिलियन लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण जल आपूर्ति है, जिसमें 86 मिलियन भारतीय शामिल हैं – जो संयुक्त रूप से देश के पांच सबसे बड़े शहरों के बराबर है। पश्चिमी हिमालय के लाहौल-स्पीति क्षेत्र में ग्लेशियर 21 वीं सदी की शुरुआत से बड़े पैमाने पर खो रहे हैं, और अगर उत्सर्जन में गिरावट नहीं होती है, तो हिंदू कुश हिमालय में ग्लेशियरों में दो-तिहाई की गिरावट आएगी।
इस सब पर भूटान की सोनम पी वांगडी, COP26 में सबसे कम विकसित देशों के समूह की अध्यक्ष कहती हैं, “अलार्म की घंटियाँ बज रही हैं; मुझे उम्मीद है कि हर कोई उन्हें सुन रहा होगा। यह रिपोर्ट एक और कड़ी चेतावनी के रूप में सामने आई है। विज्ञान और भी स्पष्ट है: वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि जारी है, जलवायु संकट बदतर हो रहा है, और इसके प्रभाव विनाशकारी होंगे। रिपोर्ट से पता चलता है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य अभी भी पहुंच के भीतर है, लेकिन हमें अभी कार्य करना होगा – सभी को एक साथ – तत्काल वार्मिंग को सीमित करने और आने वाले प्रभावों के लिए अपने समुदायों को तैयार करने के लिए।”
इस रिपोर्ट के निष्कर्षों का महत्त्व समझते हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और COP26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने वैश्विक उत्सर्जन में कटौती के लिए तत्काल कार्रवाई का आह्वान किया है। ब्रिटिश प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन का इस रिपोर्ट पर कहना है, ” मुझे उम्मीद है कि महत्वपूर्ण COP26 शिखर सम्मेलन के लिए नवंबर में ग्लासगो में मिलने से पहले, आज की IPCC रिपोर्ट दुनिया के लिए अभी कार्रवाई करने के लिए एक वेकउप कॉल होगी।”
तेजी से बढ़ती गर्मी
यह रिपोर्ट में बताया गया है कि तापमान में बढ़ोत्तरी को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तो दूर 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना भी दुनिया की पहुंच से बाहर हो जाएगा। रिपोर्ट से जाहिर होता है कि वर्ष 1850 से 1900 के बीच तापमान में हुई 1.1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी के लिए इंसानी गतिविधियों के कारण उत्पन्न ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन जिम्मेदार है। औसतन अगले 20 वर्षों के दौरान दुनिया के तापमान में डेढ़ डिग्री सेल्सियस या उससे ज्यादा की वृद्धि हो जाएगी।
उल्का केलकर, निदेशक, जलवायु कार्यक्रम, विश्व संसाधन संस्थान भारत (WRI) का कहना है, ’‘IPCC की ओर से 30 साल की चेतावनियों के बावजूद यह नई रिपोर्ट भीषण मौसम पर चिंता के बीच आई है। भारत के लिए, इस रिपोर्ट की भविष्यवाणियों का मतलब है लंबी और अधिक लगातार हीट वेव्स (गर्मी की लहरों) में लोग काम करेंगे, हमारी सर्दियों की फसलों के लिए वार्मर (और गर्म) रातें, हमारी गर्मियों की फसलों के लिए अनियमित मानसूनी बारिश, विनाशकारी बाढ़ और तूफान जो पीने के पानी या चिकित्सा ऑक्सीजन उत्पादन के लिए बिजली की आपूर्ति को बाधित करते हैं। ”
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