अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी व्दारा जारी नेट ज़ीरो बाय 2050 नामक रिपोर्ट का निष्कर्ष
जीवाश्म ईंधन पर अंकुश लगाने की अब तक की सबसे बड़ी चेतावनी देते हुए ऊर्जा क्षेत्र की शीर्ष वैश्विक निगरानी संस्था अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने साफ़ कर दिया है कि अगर दुनिया मध्य शताब्दी तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन के स्तर तक पहुंचना चाहती है तो निवेशकों को तेल, गैस और कोयले की आपूर्ति परियोजनाओं में नया वित्त पोषण नहीं करना चाहिए। (नेट जीरो उत्सर्जन का मतलब एक ऐसी व्यवस्था तैयार करना है जिसमें कार्बन उत्सर्जन का स्तर लगभग शून्य हो।)
विशेषज्ञों के मुताबिक़ अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का यह बयान न सिर्फ जीवाश्म ईंधन उद्योग के लिए बहुत बड़ा झटका है, बल्कि जीवाश्म ईंधन से संचालित आईईए के लिए पिछले 5 वर्षों के दौरान हुआ आमूलचूल बदलाव है।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के कार्यकारी निदेशक फातिह बिरोल ने बताया कि “नेट ज़ीरो होने का डगर पतली ज़रूर है लेकिन फिर भी मंज़िल हासिल की जा सकती है। अगर हम 2050 तक शुद्ध शून्य तक पहुंचना चाहते हैं तो हमें नए तेल, गैस और कोयला परियोजनाओं में और निवेश की कतई ज़रूरत नहीं।” बड़ा सवाल यहाँ ये उठता है कि क्या इस घोषणा को जीवाश्म ईंधन युग के अंत की शुरुआत माना जाए? शायद हाँ, क्योंकि वित्त पोषण पर लगाम का मतलब उद्योग के विकास पर लगाम।
नेट ज़ीरो बाय 2050 नाम की एक रिपोर्ट में उद्योग और नीतियों को अक्षय ऊर्जा की संभावनाओं को विस्तार देने पर केंद्रित करने की जरूरत पर भी जोर दिया गया है। रिपोर्ट बताती है कि करीब दो दशक तक अक्षय ऊर्जा के विकास को कम करके आंकने वाले आईईए ने इसकी क्षमता को लेकर बड़े-बड़े अनुमान जाहिर किए हैं। उसका कहना है कि ओईसीडी वाले देशों को वर्ष 2035 तक और गैर ओईसीडी वाले देशों को वर्ष 2040 तक अपने पूरे ऊर्जा क्षेत्र का डीकार्बनाइजेशन करने की जरूरत है।
सौर ऊर्जा बिजली की सल्तनत का नया बादशाह
हालांकि अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी नेट जीरो परिदृश्य में अक्षय ऊर्जा का विवरण देते हुए कहता है कि सौर ऊर्जा बिजली की सल्तनत का नया बादशाह है। मगर साथ ही वह वर्ष 2030 तक इस सेक्टर में होने वाली 20% वार्षिक विकास दर में वर्ष 2030 से 2040 के बीच मात्र 3% ही बढ़ोत्तरी होती देख रहा है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था काफी हद तक अक्षय ऊर्जा पर चलाई जा सकती है और इस क्षेत्र के लगातार विकास होने से सीसीएस जैसी अप्रमाणित प्रौद्योगिकियों और बायो एनर्जी जैसी नकारात्मक परिणामों वाली प्रौद्योगिकियों की काफी कम जरूरत रह जाएगी। बायो एनर्जी में खाद्य सुरक्षा और जमीन को लेकर टकराव उत्पन्न करने की क्षमता है और इस बात की भी संभावना है कि वह कार्बन तटस्थ ना हो।
इसके विपरीत प्रमुख तेल उत्पादक कंपनियां अक्षय ऊर्जा अपनाने के लिए पर्याप्त बदलाव करने को लेकर इच्छुक नजर नहीं आतीं। इस वक्त तेल कंपनियों के स्वामित्व वाली या उनके द्वारा अनुबंधित इकाइयों में मात्र 0.5% अक्षय ऊर्जा क्षमता ही स्थापित है।
एम्बर थिंक टैंक के वैश्विक प्रमुख डेवी जोंस अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं, “सौर तथा वायु बिजली का इस्तेमाल करने से वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का लक्ष्य हासिल करने का रास्ता साफ होगा। लेकिन सिर्फ कोयले से बनने वाली बिजली को चरणबद्ध ढंग से समाप्त करना ही काफी नहीं होगा, बल्कि दुनिया को गैस से बनने वाली बिजली से भी धीरे-धीरे छुटकारा पाना होगा।
अक्षम हो चुके कोयला बिजली घरों को 2030 तक बंद करने की जरूरत
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने जाहिर किया है कि अक्षम हो चुके कोयला बिजली घरों को वर्ष 2030 तक बंद करने की जरूरत है। यह जलवायु संरक्षण के प्रति अनेक देशों की महत्वाकांक्षा की पूर्ति की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम होगा। ऊर्जा एजेंसी का कहना है कि जीवाश्म ईंधन की नई आपूर्ति में निवेश करने की कोई जरूरत नहीं है। यह बयान जीवाश्म ईंधन उद्योग के लिए बहुत बड़ा झटका है। यह जीवाश्म ईंधन से संचालित ऊर्जा एजेंसी के लिए पिछले 5 वर्षों के दौरान हुआ आमूलचूल बदलाव है।”
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा दिए गए निर्देशों में इस बात को रेखांकित किया गया है कि अगर कार्बन तटस्थता के लक्ष्य को हासिल करना है तो उद्योगों को अपनी रणनीति में मौलिक रूप से बदलाव करना होगा।
रिपोर्ट में कुछ ध्यान देने वाली ख़ास बातों को भी जिक्र किया गया हैं, वे है :
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने इस बात पर जोर दिया है कि नेटजीरो परिदृश्य को तात्कालिक कदमों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, न कि 2050 के लक्ष्यों पर। इसका मतलब यह है कि जीवाश्म ईंधन के मौजूदा उत्पादन को समाप्त करना होगा और तेल की खोज की जारी कवायद को रोकना होगा। मगर प्रमुख तेल कंपनियां इनमें से किसी भी काम के लिए संकल्पबद्ध नजर नहीं आतीं।
सीसीएस के इस्तेमाल का सख्ती से बहिष्कार किये जाने की अपील
प्रौद्योगिकी के अप्रामाणिक इस्तेमाल से संबंधित पूर्वानुमानों में नाटकीय रूप से कमी लाने की जरूरत है। हालांकि आईईए का नेट जीरो परिदृश्य अभी कार्बन को पकड़ने और भंडारण (सीसीएस) के साथ कोयले के इस्तेमाल की चिंताजनक मात्रा को जाहिर करता है, मगर इसके कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (सीसीएस) सम्बन्धी पूर्वानुमान तुलनात्मक रूप से अन्य अनेक नेटजीरो परिदृश्य के मुकाबले ज्यादा रूढ़िवादी लगते हैं। यह कार्बन को पकड़ने और भंडारण की क्षमता की हकीकत के ज्यादा करीब है। कार्बन को पकड़ने और भंडारण एक ऐसी प्रौद्योगिकी है, जो पिछले 20 वर्षों में ऊंची लागत और झूठी शुरुआत से घिरी है।
अनेक तेल और गैस कंपनियां आने वाले वर्षों में कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज की प्रगति पर भारी और गैर-जिम्मेदाराना शर्तें लगाने जा रही हैं। इससे उन्हें तेल और गैस के उत्पादन में जारी विस्तार को तर्कसंगत बनाने में मदद मिलेगी। इसका एक खतरनाक पहलू यह भी है कि अगर कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज की प्रगति को लेकर उनकी दम्भपूर्ण शर्तें फलीभूत नहीं हुई तो दुनिया जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल के भंवर जाल में फंस जाएगी। पिछले 20 वर्षों के दौरान इस प्रौद्योगिकी को विकसित करने पर अरबों डॉलर खर्च किए जा चुके हैं लेकिन यह अब भी किसी पैमाने पर उपयोगी नहीं बन सकी है। एक विश्वसनीय नेटजीरो परिदृश्य को उद्योगों पर लगाम कसने के लिए कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज के इस्तेमाल का सख्ती से बहिष्कार करने की जरूरत है, न कि अप्रमाणित क्षमता के आधार पर योजना बनाने की।
उल्लेखनीय है कि कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज(सीसीएस) को जलवायु परिवर्तन दुरुस्त करने के उपकरण के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। जर्मनी, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे तेल और कोयले पर निर्भर देश कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए सीसीएस को अचूक रामबाण दवा मान रहे हैं। इस तकनीक के तहत कार्बन उत्सर्जन को परित्यक्त खदानों, गैस या तेल के खदानों या समुद्र की तलहटी में कार्बन को जमा किया जाएगा। लेकिन अभी यह सब कुछ प्रयोग के स्तर तक ही है।
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लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरुक करना होगा, वरना ये धरती खत्म हो जायेगी।