डॉ. ओ.पी.जोशी

चिपको आंदोलन का इतना प्रभाव हुआ कि मई 1974 में राज्य सरकार ने डा. वीरेन्द्र कुमार की अध्यक्षता में एक समिति वनों के अध्ययन हेतु बनायी। समिति ने अपनी रिपोर्ट में चिपको आंदोलन के कार्यो को सही बताया। संभवतः इसी आधार पर केन्द्र की इंदिरा गांधी की सरकार ने वनों की कटाई पर 15 वर्षो तक रोक लगाने का आदेश जारी किया।

पेड़ों को कटने से बचाने हेतु हिमालय क्षेत्र में पैदा विश्व प्रसिद्ध चिपको आंदोलन के 50 वर्ष पूर्ण होने पर सर्वोदय केन्द्र गोपेश्वर के तत्‍वावधान में दशौली ग्राम स्वराज्य मंडल तथा सी.पी. भट्ट पर्यावरण एवं विकास केन्द्र ने इस आंदोलन की 50 वीं वर्षगांठ मनायी गई।

गोपेश्वर के ही सर्वोदय केन्द्र में जंगलों को बचाने हेतु एक बहुत ही महत्वपूर्ण बैठक हुई थी। जिसमें पेड़ों से लिपटकर पूर्ण अहिंसक तरीके से पेड़ों को बचाने का निर्णय लिया गया था। इस निर्णय अनुसार अलग-अलग क्षेत्रों में लिपटकर बचाये पेड़ों के कार्य को चिपको आंदोलन कहा गया। 01 अप्रैल 2022 को निर्णय  लिया गया कि 50 वीं वर्षगांठ का यह वर्ष स्वर्ण जयंती के रूप में वर्ष भर मनाया जाएगा। इसके तहत वन एवं पर्यावरण संरक्षण पर आधारित व्याख्यान,परिचर्चा, कार्यशाला, एवं निबंध प्रतियोगिता आदि विभिन्न स्कूलों में आयोजित किए जाएंगे।

वर्ष गांठ पर आयोजित चर्चा में वरिष्ठ एवं चिपको प्रमुख श्री चंडीप्रसाद भट्ट ने कहा कि इस समय (70 के दशक में) सामूहिक प्रयासों से जंगलों को कटने से बचाया गया एवं इस समय उन्हें आग से बचाने होगे। चिपको आंदोलन के उसे समय के कार्य एवं कार्यकर्ताओं को याद करते हुए कहा कि पेड़ों को लिपटकर बचाने का अमिट कार्य देश एवं दुनियां में प्रसिद्ध हो गया। समाज के सभी वर्गो ने परंतु विशेषकर महिलाओं ने इसमें अहम भूमिका निभायी।

मेनेजिंग ट्रस्टी ओमप्रकाश भट्ट तथा पराली से आये पर्यावरण कार्यकर्ता श्री रमेश थपलियाल ने वनों की आग से बचाने के का समर्थन करते हुए कहा कि आग के प्रति संवदेलशी क्षेत्रों में पहले ध्यान दिया जाए एवं वहां जागरूकता हेतु पदयात्राएं आयोजित की जाए। चन्द्रकला भट्ट ने कहा कि वर्तमान में चिपको आंदोलन का महत्व संपूर्ण पर्यावरण के संदर्भ में समझाया जाना चाहिए।

ओमप्रकाश भट्ट ने चिपको आंदोलन के दौरान विभिन्न विषयों पर हुई बैठक एवं कार्यवाही की सिलसिलेवार जानकारी प्रस्तुत की। सुशीला सेमवाल, कुंती चौहान, मीना भट्ट, कलावती देवी, सुमन देवी, देवेश्वरी देवी, शांतीप्रसाद भट्ट डा. शिवचंद सिंह रावत, अरविंद भट्ट, संजय पुरोहित, हरीश, नेगी एवं सुनील नाथन भट्ट के साथ कई लोगों ने बैठक एंव चर्चा में भागीदारी की।

यहां यह जानकारी भी प्रासंगिक होगा कि कम समय में हो इस चिपको आंदोलन का इतना प्रभाव हुआ कि मई 1974 में राज्य सरकार ने डा. वीरेन्द्र कुमार की अध्यक्षता में एक समिति वनों के अध्ययन हेतु बनायी। समिति ने अपनी रिपोर्ट में चिपको आंदोलन के कार्यो को सही बताया। संभवतः इसी आधार पर केन्द्र की इंदिरा गांधी की सरकार ने वनों की कटाई पर 15 वर्षो तक रोक लगाने का आदेश जारी किया।

कब हुई चिपको आंदोलन की शुरुआत

चिपको आंदोलन की पहली लड़ाई 1973 की शुरुआत में उत्तराखंड के चमोली जिले में हुई। यहां भट्ट और दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल (डीजीएसएम) के नेतृत्व में ग्रामीणों ने इलाहाबाद स्थित स्पोर्ट्स गुड्स कंपनी साइमंड्स को 14 ऐश के पेड़ काटने से रोका। यह कार्य 24 अप्रैल को हुआ और दिसंबर में ग्रामीणों ने गोपेश्वर से लगभग 60 किलोमीटर दूर फाटा-रामपुर के जंगलों में साइमंड्स के एजेंटों को फिर से पेड़ों को काटने से रोक दिया।

क्या है चिपको

चिपको एक हिंदी शब्द है जिसका अर्थ ‘चिपके रहने’ या ‘गले लगाने’ से है। यह उत्तर भारत की पहाड़ियों में गरीब, गांव की महिलाओं के वनों को बचाने की छवियों को उजागर करता है। जो पेड़ों को ठेकेदारों की कुल्हाड़ियों से काटने से रोकने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ पेड़ों को गले लगाती हैं, जिससे उनकी जान को भी खतरा होता है। लेकिन चिपको की बहुआयामी पहचान के परिणामस्वरूप अलग-अलग लोगों के लिए इसका अर्थ अलग-अलग हो गया है।

कुछ के लिए, यह गरीबों का एक असाधारण संरक्षण आंदोलन है, वहीं कुछ के लिए, यह अपने प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण पाने के लिए एक स्थानीय लोगों का आंदोलन है, जिसे पहले एक औपनिवेशिक शक्ति द्वारा और फिर भारत की स्वतंत्र सरकार द्वारा छीन लिया गया। अंत में यह महिलाओं का एक आंदोलन बन कर उभरा, जो अपने पर्यावरण को बचाने की कोशिश कर रहे थे। पेड़ काटने वालों को यह संदेश देना कि “पेड़ों को काटने से पहले हमारे शरीर को काटना होगा”। वास्तव में एक महिला आंदोलन के रूप में, इसने भारत में और कुछ हद तक दुनिया भर में पर्यावरण-नारीवाद को प्रेरित किया।  

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