हर साल की तरह अब फिर पानी पर परामर्श का मौसम शुरु हो गया है और हमेशा की तरह हम फिर पानी बचाने, संवारने, संरक्षित करने की तमाम-ओ-तमाम नेक सलाहों को ‘दूसरे कान’ से निकालने के लिए तैयार भी हो गए हैं। अलबत्ता, पानी पर बिसूरने के इस मौसम में एक बार फिर हमें उन बातों पर ध्यान देने की जरूरत तो है, जिन्हें हम हर साल, आसानी से भुला देते हैं।
पृथ्वी पर जल की उपलब्धता देखी जाए तो हम पाते हैं कि पृथ्वी के निर्माण के समय यह अत्यधिक गर्म थी, तत्पश्चात कालांतर में इसके तापमान में कमी होने पर इस पर जल की उपलब्धता हुई। अमेरिकी वैज्ञानिक माइक ड्रेक का मानना है कि पानी, पृथ्वी के जन्म के समय से ही मौजूद है। शुद्ध जल जहां हमारे लिए अमृत के समान है, वहीं दूषित जल विष के समान। इतना ही नहीं जल के बिना तो जीवन की कल्पना करना भी सम्भव नहीं है, किन्तु फिर भी हम जल को लेकर गंभीर नहीं हैं और इसी वजह से आज पूरी दुनिया में जल का महासंकट बना हुआ है।
युनिसेफ के अनुसार, दुनिया भर में 78 करोड़ से ज्यादा लोगों (हर 10 में से एक) के पास शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं है। ये लोग प्रतिदिन कुल मिलाकर 20 करोड़ घंटे दूर-दूर से पानी लाने में खर्च करते हैं। इसके अतिरिक्त दूषित पानी को शुद्ध करने के लिए कई तकनीकें मौजूद हैं, परन्तु महंगी होने के कारण ये गरीब एवं पिछड़े लोगों की पहुंच से दूर ही हैं।
हर दो मिनट में एक बच्चे की मौत पानी से संबंधित बीमारियों के कारण होती है। दुनिया के तीन में से एक स्कूल में पानी और स्वच्छता की पर्याप्त सुविधा नहीं है। दुनिया में बच्चों की मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण डायरिया है। कुछ ऐसी ही स्थिति भारत में भी है। भारत की 60 प्रतिशत आबादी को पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है, तो वहीं जल प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है।
‘वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद’ (सीएसआईआर) के महानिदेशक डॉ शेखर सी. मांडे ने कहा है कि ‘भारत की बहुसंख्य ग्रामीण आबादी ऐसा पानी पीने को मजबूर है जो ‘विश्व-स्वास्थ्य संगठन’ (डब्ल्यूएचओ) के गुणवत्ता मानकों के अनुकूल नहीं है।’
पृथ्वी पर करीब 1.36 अरब घन किलोमीटर जल उपलब्ध है, किन्तु उसमें से 96.5% जल समुद्री है जो पेयजल हेतु उपयोग में नहीं लाया जा सकता। शेष 3.5% जल मीठा है, किन्तु इसका 24 लाख किलोमीटर क्षेत्र 600 मीटर गहराई में भूमिगत है। इसके अतिरिक्त लगभग 5 लाख घन किलोमीटर जल प्रदूषित हो गया है। इस तरह मात्र एक फीसदी स्वच्छ जल पर विश्व के समस्त जीव-जंतु और वनस्पतियां आश्रित हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक 2050 तक दुनिया की आबादी 10 अरब तक पहुंचने का अनुमान है। ऐसे में भविष्य में मौजूदा समय से 30 फीसदी अधिक पानी की जरूरत और होगी। यदि इन्हें पानी उपलब्ध न हुआ तो दुनिया के 36 फीसदी शहर जल संकट की गंभीर समस्या से ग्रस्त होंगे, जबकि बेहतर स्वास्थ्य के लिए शुद्ध पेयजल पर हर इन्सान का बुनियादी अधिकार है।
भारत सहित अनेक देशों ने सभी को स्वच्छ एवं सुविधाजनक पेयजल उपलब्ध कराने के लिये अनेक प्रभावशाली परियोजनाएँ तथा कार्यक्रम चलाये हैं। इसी उद्देश्य को मद्देनजर रखते हुये ‘संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम’ (यूएनडीपी) ने 1981-90 के दशक में विश्वव्यापी ‘स्वच्छ पेयजल अभियान’ भी चलाया था। इस अभियान के तहत अनेक क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराया गया। अच्छे स्वास्थ्य के लिये उचित गुणवत्ता वाला पीने योग्य स्वच्छ पानी सभी के लिये अति आवश्यक है।
हमारे देश के प्रत्येक घर में नल से जल पहुंचाने के लिए ‘जल जीवन मिशन’ योजना का प्रारंभ किया गया है। योजना की शुरुआत के दौरान देश में पेयजल लाइनों की सुविधा कुछ खास नहीं थी। ‘सेंटर फॉर साइंस एण्ड इनवायरनमेंट’ (सीएसई) की ‘स्टेट आफ इंडियाज़ इनवायरनमेंट रिपोर्ट – 2020’ के अनुसार वर्ष 2012 में ग्रामीण भारत के 6.5 प्रतिशत और शहर में 35.1 प्रतिशत घरों में पेयजल लाइन की सप्लाई की जाती थी, जबकि वर्ष 2018 में 11.3 प्रतिशत ग्रामीण घरों में और 40.9 प्रतिशत शहरी घरों में पेजयल लाइनों से ही पानी सप्लाई किया जाता था। शेष लोग पानी के लिए पानी की बोतलों, सार्वजनिक नलों, ट्यूबवेल, हैंडपंप, कुएं, पानी के टैंकर, वर्षा जल, सतही जल, तालाब आदि पर निर्भर हैं।
अब तक ‘जल जीवन मिशन’ के अंतर्गत करीब 9 करोड़ ग्रामीण परिवारों को शुद्ध जल के लिए नल कनेक्शन उपलब्ध करा दिए गए हैं, साथ ही देश के 100 जिलों में ‘हर घर जल’ पहुंच गया है। मध्यप्रदेश का बुरहानपुर जिला प्रदेश का पहला शत-प्रतिशत घरों में नल कनेक्शन वाला जिला बना है। यहां 4 हजार 274 गांवों के 100 प्रतिशत घरों में नल से जल उपलब्ध हो रहा है। हालांकि जब तक जल का सही संरक्षण और संवर्धन नहीं किया जाता तब तक उचित गुणवत्ता वाले शुद्ध जल को उपलब्ध कराने वाली किसी भी योजना के पूरी तरह साकार होने की संभावना कम ही प्रतीत होती है, क्योंकि जल प्रदान करने की कोई भी योजना तभी सफल हो सकती है जब जल की उपलब्धता हो।
शोध एवं आंकड़ों से पता चलता है कि भू-जल स्तर लगातार कम होता जा रहा है एवं प्रदूषण के कारण स्वच्छ जल में कमी भी हो रही है, लेकिन बढ़ती जनसंख्या के कारण जल की मांग बढ़ती जा रही है। इसलिए हमें भू-जल स्तर को बढ़ाने के लिए वर्षा जल के संग्रहण की योजनाओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए एवं गिरते भू-जल स्तर को बढ़ाना चाहिए। इसके अतिरिक्त प्रदूषित जल का शोधन करके उसे उपयोग करने लायक बनाने की भी आवश्यकता है तब जाकर ही हर इन्सान को उसके बेहतर स्वास्थ्य के लिए शुद्ध पेयजल का बुनियादी अधिकार उपलब्ध कराया जा सकेगा। (सप्रेस)
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