तमिलनाडु के मदुरै में चल रही विरासत स्वराज यात्रा 2021-22
मेगसेसे अवार्ड से सम्मानित एवं जल संरक्षक डॉ. राजेंद्र सिंह की अगुवाई में चल रही विरासत स्वराज यात्रा तमिलनाडु के मदुरै से चल कर 16 नवम्बर 2021 को तेंगकशी जिले में आटाकुल्ली झील, कड़ई नल्लूर में पहुँची। यहां बड़ा विशाल तालाब, जो पहले साफ पानी से भरा हुआ होता था, अब बदहाली की जिंदगी जी रहा है। संपूर्ण भारत में जिस तरह तालाबों के साथ व्यवहार किया जा रहा है, उसी के मुताबिक यहां भी प्रभावशाली लोग अपने कर्म में लगे है। पहले इसमें शहर का गंदा पानी डाला जा रहा है और फिर उस गंदगी से छुटकारे के नाम पर इसको व्यवसायिक गतिविधियों के लिए पाट दिया जाएगा। यहां के कुछ जागरूक स्थानीय लोग इसके लिए संघर्ष कर रहे है।
पर्यावरणविद राजेंद्र सिंह ने स्थानीय नागरिकों से चर्चा करते हुए कहा कि इस प्रकार के कृत्य से हमारी बेकारी और बीमारी बढ़ती जा रही है। इसे रोकना होगा। जलाशय का जल हमारी गंदगी से दूषित न हो जायें। आप लोग जो संघर्ष कर रहे है, ये ही संस्कार समाज का निर्माण करते है। इसलिए आज के परिदृश्य में आप सब अगर अगली पीढ़ी को स्वस्थ और खुशहाल देखने चाहते हैं, तो फिर आपको वापस प्रकृति के संस्कार देना सीखना होगा। हम अपने जीवन में प्लास्टिक, पॉलीथिन, कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल करके प्रकृति को स्वस्थ रखने की कामना करते हैं, तो यह हमारी सबसे बड़ी भूल कर रहे है, इसलिए आप सभी को लोगों को जल साक्षरता और जल के व्यवहार की शिक्षा ग्रहण करनी होगी। आपको एहसास होना चाहिए कि, भूमि का अस्तित्व प्रकृति से ही है। हम सभी को प्रकृति की ओर लौटना होगा।
इसके उपरांत यात्रा जिले में स्थित कृप्पनाधि डैम पहुंची। यहां से निकलने वाली दो छोटी नदियां, जो ताम्रवाणी की सहायक नदी है, हेडसुलिस और कार्पा नदी के नाम से जानी जाती है। यहां स्थानीय लोगों ने बताया कि यह डैम, जिसका निर्माण 1998 के लगभग हुआ था। पूर्व योजना के अनुसार इसका आकार काफी बड़ा था, मगर प्रभावशाली लोगों ने उसे छोटा करा दिया। जिसकी वजह से इन नदियों को जल कम मिलता है। अगर यह डैम बड़ा होता तो यहां के किसानों को संपूर्ण वर्ष भरपूर पानी मिल पाता।
चर्चा के दौरान स्थानीय लोगो ने यहां व्याप्त अनेक खामियों और भी बताई। इस बातचीत के दौरान राजेंद्र सिंह ने कहा कि आज हमारे देश में इसी तरह से विकास के नाम पर विनाश हो रहा है। आज हम विकास की अंधी दौड़ में हैं, उसका परिणाम यह है कि हमारा जीवन भौतिकवाद की वजह से हम प्रकृति से दूर होते चले गए है। आज इंसान ने विकास की परिभाषा मात्र भौतिक संसाधनों से ही परिभाषित कर ली है। जबकि विकास का सही अर्थ, वह विकास, जहाँ प्रकृति भी विकास करे, जीव-जंतु भी विकास करें और मनुष्य सभी के हितों रक्षा करते हुए विकास करे। यही विकास की असली परिभाषा है। परंतु मनुष्य परिभाषित विकास का ही परिणाम जलवायु परिवर्तन है। हमें विकास की परिभाषा दुबारा से परिभाषित करनी होगी। समय रहते हुए आज का युवा प्रकृति के प्रति जाग्रत नहीं हुआ, तो ये प्रकृति आपको संभलने का समय नहीं देगी। इसलिए हमे प्रकृति के प्रति अपना व्यवहार और सोच बदलना होगा। इस यात्रा दल में संजय राणा, ऐडवोकेट गुरुस्वामी, भुवनेश्वरम आदि उपस्थिति रहे।
विरासत स्वराज यात्रा के बारे में जलविज्ञ डॉ. राजेन्द्र सिंह ने कहा कि आज दुनिया में जो विरासत का संकट है, इस विरासत के संकट से मुक्ति के लिए दुनिया भर के लोग तैयार है। हमें अपने गांव, अपने राज्य, अपने देश के लोगों को विरासत के महत्व को समझाकर विरासत बचाने का अहसास और आभास करायेंगे कि यदि हमारी विरासत बचेगी तो हमारा जीवन, जीविका, जमीर बचेगा, जो हमारी विरासत में निहित है।
ज्ञातव्य है कि तमिलनाडू, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान क्षेत्र में जीवन, जल, जंगल, जीव-जंतु जानवर, जमीन से जुड़ी विरासत यात्रायें अलग-अलग बहुत से समूहों में चल रही है।