अंतररात्मा की आवाज पर समिति से बाहर हो रहा हॅू : रवि चोपडा
उत्तराखंड में चल रही चारधाम परियोजना में लगातार कट रहे जंगलों की निगरानी करने वाली सुप्रीम कोर्ट की उच्च अधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) के अध्यक्ष एवं प्रख्यात पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट के निर्माण में लगातार हो रहे पर्यावरणीय दोहन को लेकर कदम उठाया है। 27 जनवरी, 2022 को सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटी जनरल को भेजे गए पत्र में समिति के पद से इस्तीफा देने की बात कहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटी जनरल को भेजे गए इस पत्र में कहा गया है कि मैंने 2013 की केदारनाथ त्रासदी को लेकर अपनी रिपोर्ट दी थी, इसके बाद मुझे सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह कठिन जिम्मेदारी दी गई थी कि चारधाम परियोजना के चौड़ीकरण कार्य की निगरानी करने वाली उच्च स्तरीय समिति की मैं अध्यक्षता करूं। सुप्रीम कोर्ट ने 8 सितंबर, 2020 को परियोजना के दौरान नाजुक हिमालय के संरक्षण को लेकर मेरी सिफारिशों वाली रिपोर्ट को स्वीकार भी किया।
अंतररात्मा की आवाज पर समिति से बाहर हो रहा हॅू
उन्होंने अपने इस्तीफा-पत्र में कहा है कि सितंबर, 2019 में जब मुझसे इस उच्च समिति के अध्यक्ष पद संभालने के लिए कहा गया था उस वक्त मैं अपनी उम्र की वजह से जिम्मेदारी निभाने को लेकर संशकित था। लेकिन हिमालय के पर्यावरण को हो रहे नुकसान को कम करने और वहां के लोगों के लिए 40 साल की अपनी प्रतिबद्धता की वजह से अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर मैं इस समिति का काम करने को राजी हुआ था। अब इसी अंतररात्मा की आवाज मुझे कह रही है कि मैं इस समिति से बाहर हो जाऊं। यह विश्वास टूट सा गया है कि उच्च अधिकार प्राप्त समिति इस बेहद नाजुक पारिस्थतिकी को संरक्षित कर सकती है। मैं अब और काम नहीं कर सकता, इसलिए इस समिति से मैं इस्तीफा दे रहा हूं।
हिमालय के लिए भौगोलिक और पारिस्थातिकी स्तरों पर ध्यान नहीं
75 वर्षीय रवि चोपड़ा ने अपने पत्र में लिखा है कि टिकाऊ विकास यह मांग करता है कि हिमालय के लिए भौगोलिक और पारिस्थातिकी दोनों स्तरों पर ध्यान रखा जाए। ऐसे विकास न सिर्फ आपदा प्रतिरोधी बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी बेहतर हैं। वह भी उस वक्त में जब जलवायु परिवर्तन के कारण ढलान की स्थिरता और अधिक अस्थिर व जोखिम वाली हो गई है।
उन्होंने पत्र में जिक्र किया कि 14 दिसंबर, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने समिति की भूमिका को स्पष्ट करते हुए दो ऐसी सड़कें जो रक्षा क्षेत्र के लिए इस्तेमाल नहीं होंगी सिर्फ उनके चौड़ीकरण में समिति की ओर से दी गई सिफारिशों को लागू कराने को लेकर कहा था। हालांकि पूर्व में दी गई सिफारिशों की सड़क एवं राजमार्ग मंत्रालय उपेक्षा करता रहा है। ऐसा लगता है कि दो नॉन डिफेंस रोड के चौड़ीकरण के मामले में भी ऐसा होता रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में शामिल सभी पक्षकारों को नॉन-डिफेंस हाईवे के चौड़ीकरण को लेकर भी कानूनी राहत की मांग करने का रास्ता खोल दिया है। ऐसी परिस्थिति में मैं नहीं समझता कि गठित उच्च समिति के साथ और अधिक जुड़ा रहूं।
प्रकृति समय-समय पर खतरे की घंटी बजाती रही है
प्रकृति के खजाने को जब नुकसान पहुंचता है तो वह इस चीज को न कभी भूलती है और न कभी माफ करती है। हम खुद इस चीज के साक्षी रहे हैं कि कई सड़कें गायब हो गईं और बाद में महीनों उनकी रिपेयरिंग का काम चलता रहा है। पूरी मानवजाति पर खतरा है। इसके लिए प्रकृति समय-समय पर खतरे की घंटी बजाती रही है। इसकी आवाजें हमें 2013 की त्रासदी हो या फिर फरवरी, 2021 में चमोली त्रासदी में सुनाई पड़ती रही हैं। उन्होंने पत्र में लिखा कि “हर एक व्यक्ति की मृत्यु मुझे कम कर देती है क्योंकि मैं इस मानवजाति में शामिल हूं। जानने की जरुरत नहीं है कि, मृत्यु की घंटी किसके लिए बजाई गई है। मृत्यु की यह घंटी हम सभी के लिए है।”
एचपीसी ने की थी पहाड़ों पर सड़क की चौड़ाई 5 मीटर रखने की सिफारिश
एचपीसी ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट देते हुए कहा था कि उत्तराखंड के पहाड़ों पर डबल लेन सड़क ना काटी जाए और ऑल वेदर रोड की चौड़ाई 5 मीटर तक रखी जाए। वहीं, इसके अलावा साल 2018 में सड़क मंत्रालय द्वारा एक नोटिफिकेशन जारी किया गया था, जिसमें पहाड़ों पर सड़क कटान को लेकर स्पष्ट कहा गया था कि पहाड़ों पर सड़क की चौड़ाई अधिकतम 5 मीटर ही रखी जा सकती है। इस नोटिफिकेशन को आधार बनाते हुए एचपीसी ने अपनी बात को और मजबूती के साथ रखा, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने ऑल वेदर रोड की चौड़ाई को कम करने के निर्देश दिए थे।
रवि चोपड़ा का मानना है कि ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट में सड़क की चौड़ाई को अनावश्यक बनाया गया है। रक्षा मंत्रालय द्वारा सात मीटर चौड़ी सड़क का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन सड़क मंत्रालय द्वारा 12 मीटर चौड़ी सड़क का नोटिफिकेशन लाकर अपने मकसद को पूरा किया गया है। उनका मानना है कि मौजूदा स्थिति में जिस तरह से ऑल वेदर रोड का निर्माण किया जा रहा है, उसमें अब वे उत्तराखंड के पर्यावरण को नहीं बचा सकते हैं।
पर्यावरण विद रवि चोपडा के बारे में
उल्लेखनीय है कि पिछले 5 दशक से डॉ. रवि चोपड़ा पर्यावरण, विज्ञान, तकनालाजी और पानी के क्षेत्र में संलग्न है। वे पीपुल्स साईंस इंस्टीट्यूट देहरादून तथा हिमालयन फाउंडेशन, नई दिल्ली के प्रबंध न्यासी हैं। इन दोनों संस्थानों की प्रतिवद्धता जल संसाधनों का प्रबंध, पर्यावरण की रक्षा, आपदाओं की रोकथाम और नदियों के संरक्षण के क्षेत्र में नई पद्धति से किए जा रहे अनुसंधान तथा विकास में है। रवि चोपड़ा ने सन् 1982 में 21 वीं सदी में भारत में जल संकट की प्रकृति, पानी की सकल आवश्यकता और संकट के समाधान पर नागरिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया था। उनका मिशन गरीबों को शक्ति सम्पन्न बनाकर तथा प्राकृतिक संसाधनों के उत्पादक, जीवनक्षम एवं भेदभावरहित उपयोग की मदद से गरीबी उन्मूलन के प्रयासों को मदद देना है। पिछले कई वर्षो से वे गंगोत्री और उत्तरकाशी क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण के लिए नदी बचाओ आंदोलन के संयोजक के तौर पर कार्य कर रहे है। वर्ष 2019 में जब ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट के तहत उत्तराखंड में बेतहाशा पेड़ों का कटान किया जा रहा था तब कुछ समाज सेवी संस्थाओं द्वारा इस मामले को न्यायालय की शरण में ले जाया गया, जहां पर सुप्रीम कोर्ट ने एक हाई पावर कमेटी का गठन किया था, जिसका अध्यक्ष पिछले 45 सालों से उत्तराखंड के लिए प्राकृतिक संरक्षण और पर्यावरण को लेकर शोध का काम कर रहे रवि चोपड़ा को बनाया गया था।
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