चंबल में तरुण भारत संघ ने जल संरक्षण के ज़रिए बदला बागियों का जीवन

राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा पर फैले चंबल क्षेत्र को कभी डकैतों की धरती कहा जाता था, लेकिन आज यही धरती जल संरक्षण और शांतिपूर्ण जीवन के लिए जानी जा रही है। इस बदलाव की कहानी शुरू होती है तरुण भारत संघ और उसके संस्थापक राजेन्द्र सिंह से, जिन्हें सामुदायिक विकास और पानी की चेतना जगाने हेतु मेगसेसे अवार्ड से सम्‍मानित किया गया।

अहिंसा की कोख से निकला आंदोलन

वर्ष 1974–75 में जयपुर विश्वविद्यालय में अग्नि पीड़ितों की सेवा से तरुण भारत संघ का जन्म हुआ। यही काल था जब राजेंद्र सिंह अपने मूल गांव डौला को बाढ़ मुक्त करने की तैयारी कर रहे थे। इसी दौरान मध्यप्रदेश के जौरा में डॉ. एस.एन. सुब्बाराव और पी.वी. राजगोपाल के नेतृत्व में बागियों के आत्मसमर्पण की ऐतिहासिक प्रक्रिया पूरी हो रही थी।

गांवगांव में पानी से पुनर्वास

1985 में अलवर जिले के गोपालपुरा गांव से तरुण भारत संघ ने सुखाड़ मुक्ति का काम शुरू किया था। सूखाग्रस्त इस गांव को पानीदार बना देने के बाद यह कार्य मॉडल के रूप में सामने आया। इसके बाद आसपास के गांवों, फिर राजस्थान और अंततः चंबल क्षेत्र में यह काम फैल गया। तरुण भारत संघ ने बंजारे, सपेरे, गाडुलिया लुहार, कुम्हार जैसे समुदायों के पुनर्वास को जल संरक्षण और जीविकोपार्जन से जोड़ा।

चंबल में हथियार से हल की ओर बदलाव

चंबल क्षेत्र में बागियों की पत्नियाँ, विशेष रूप से भगवती, ने तरुण भारत संघ के साथ मिलकर जल संरक्षण की पहल की। उन्‍होंने अपने पति की बंदूक छुड़वाकर, फरारी से मुक्ति दिलाकर, जल संरक्षण के काम में लगा दिया।  

तरुण भारत संघ की विशेषता रही कि उसने कभी भी सीधे बागियों से बंदूक छोड़ने की अपील नहीं की, बल्कि ऐसा वातावरण बनाया जिसमें वे खुद बदलाव को अपनाएं।

6000 से अधिक बागियों ने बदली दिशा

साल 2025 तक, चंबल के 6000 से अधिक पूर्व बागी अब किसान बन चुके हैं। कभी जिनके पास जानवर तक नहीं थे, अब उनके पास सैकड़ों भैंसे हैं। जहां कभी खेती संभव न थी, आज वहां क्विंटलों अनाज का उत्पादन हो रहा है। जिनके पास सेर भर सरसों या गेहूं पैदा नहीं होता था, उनके पास सैकड़ो क्विंटल गेहूं और सरसों है। एक तरह से जीवन को बदलने वाली गहरी लहर चंबल के क्षेत्र में बदलाव ले आई। यह बदले लोग चंबल में पानी का संरक्षण करके, बड़े शांतिमय समृद्ध किसान बन रहे है।

शुरुआत विनोबा भावे से, विस्तार जयप्रकाश नारायण तक

चंबल में बदलाव के बीज संत विनोबा भावे ने 1960 में बोए थे, जब मानसिंह के पुत्र तहसीलदार सिंह ने नैनी जेल से पत्र लिखकर उन्हें आमंत्रित किया। उन्होंने लिखा था कि, “अब चंबल में कुछ बागी अपने हथियार छोड़ने के लिए तैयार है। उन्हें कोई आप जैसी अध्यात्मिक शक्ति आकर ;शांति के रास्ते पर लगाएगी तो बड़ा कल्याण होगा।” मई 1960 में विनोबा जी के सामने 20 बागियों ने हथियार समर्पित किए।

इसके 12 वर्षों बाद, 14 अप्रैल 1972 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण की उपस्थिति में जौरा में 500 से अधिक बागियों ने गांधी प्रतिमा के सामने अपने हथियार रख दिए। यह एक ऐतिहासिक क्षण था।

पुनर्स्थापन के साथ स्वीकृति भी मिली

राजस्थान के तालाब शाही में 1976 में बागियों का पुनः समर्पण हुआ। बहुत ही चमत्कारी बात यह है कि यह बागी लंबे समय के बाद जेल से छूटकर बिना हथियारों के जब वापस आए, तो इन्हें समाज ने सम्मानपूर्वक स्वीकार किया और यह भी समाज में शांति से रहकर, एक से एक अच्छे काम करते रहे। इन्हें बहुत सारे पशुओं को चराने, खेती करने के लिए ग्वालियर और उसके आसपास जमीनें भी दी गई।

इन सभी कार्यों का संचालन बाद में डॉ. एस.एन. सुब्बाराव ने जौरा में महात्मा गांधी सेवा आश्रम की स्थापना करके किया। बाद में इस प्रयास में पी. वी. राजगोपाल भी सक्रिय रूप से जुड़ गए। यह वह समय था जब चंबल के खूंखार बागी हथियार समर्पण कर चुके थे और समाज उनके पुनर्वास के कार्य में जुट गया था।

मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के उन क्षेत्रों में जहाँ पानी की उपलब्धता थी, वहाँ ये पूर्व बागी खेती-किसानी में लग गए और शांतिपूर्ण जीवन जीने लगे। लेकिन राजस्थान के चंबल क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा, जो कभी बागियों की नर्सरी के रूप में जाना जाता था, वहाँ पानी की भारी कमी के कारण स्थिति अलग थी। जल संकट के कारण वहाँ लौटे कई लोग फिर से लूटपाट, हत्या, चोरी, डकैती और अपहरण जैसे आपराधिक गतिविधियों में संलग्न हो गए।

1988: महिलाओं के साथ नई शुरुआत

तरुण भारत संघ ने 1988 में चंबल के राजस्थान वाले हिस्से में बागियों की महिलाओं के साथ मिलकर जल संरक्षण और पोषण के काम शुरू किए। पानी का काम शुरू होते ही कई बागियों जैसे जगदीश नभेरा और निर्भय सिंह को अदालत से राहत मिली और उन्होंने भी बंदूक छोड़कर पानी की सेवा में लगना शुरू किया।

न्यायपालिका और समाज पर बढ़ता विश्वास

तरुण भारत संघ ने पूर्व बागियों की अदालत में पेशी सुनिश्चित कर, न्यायिक राहत दिलाई। धीरे-धीरे उनके मन में कानून और समाज के प्रति विश्वास पनपा। आज यह विश्वास पूरे चंबल क्षेत्र को शांतिपूर्ण जीवन की ओर ले जा रहा है।

चंबल के हजारों परिवार आज खेती-किसानी और जल संरक्षण में संलग्न हैं। तरुण भारत संघ अब भी नदियों के पुनर्जीवन और जल सरंक्षण के कार्यों में निरंतर जुटा है, ताकि यह परिवर्तन और गहराई से टिकाऊ बन सके।