पिछले कुछ सालों से लगातार सूखे की मार झेलते बुंदेलखंड में अब पानी देने वाले जंगलों पर खतरा मंडराने लगा है। यह खतरा समाज के बेहद छोटे, ऊपरी अमीर तबके की हीरे की हवस के रूप में आया है। कहा जा रहा है कि इससे ढेरों रुपए कमाए जा सकेंगे, लेकिन क्या उसके बदले में काटे जाने वाले विशाल जंगलों की कोई भरपाई की जा सकेगी? क्या हीरे की एवज में कमाई जाने वाली पूंजी पानी और आज की सर्वाधिक कीमती ऑक्सीजन देने वाले जंगलों को फिर से हरा-भरा कर सकेगी?
पानी की भारी कमी और नतीजे में सूखे और अकाल से जूझते बुंदेलखंड को अब एक और संकट से निपटना होगा। यह संकट बेशकीमती पत्थर हीरे की शक्ल में आया है। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के बकस्वाहा जनपद क्षेत्र में करीब एक दशक पहले देश के सबसे बड़े हीरा भंडार की खोज की गई थी। यहां पर 3.42 करोड़ कैरेट हीरा के भंडार हैं, लेकिन इस हीरा के भंडार को पाने के लिए 382.131 हेक्टेयर का जंगल नष्ट हो जाएगा। वन विभाग की गिनती के अनुसार इसमें 2,15,875 पेड़ों पर संकट है जिसमें मुख्य रूप से पीपल, सागौन, केम, बहेड़ा जैसे कई महत्वपूर्ण औषधीय वृक्ष शामिल हैं। साथ ही इनमें बेहद दुर्लभ प्रजाति के भी हजारों पेड़ हैं। जंगल के समाप्त होने से वन संपदा के साथ ही कई वन्य जीवों के आवास भी समाप्त हो जाएंगे जो पर्यावरण के लिए बड़ी क्षति होगी।
पहले यहां आस्ट्रेलिया की कंपनी ‘रियो-टिंटो’ हीरा उत्खनन का पायलट प्रोजेक्ट लेकर आई थी। मई 2017 में संशोधित प्रस्ताव के साथ ‘रियो-टिंटो’ ने नया प्रोजेक्ट पेश किया, जिसमें 11 लाख पेड़ काटे जाना थे। इस कटाई के लिए पर्यावरण विभाग की मंजूरी सशर्त मिलना थी, इसलिए ‘रियो-टिंटो’ कंपनी ने इस प्रोजेक्ट को छोड़ दिया। उसके बाद ‘आदित्य बिडला ग्रुप’ की ‘एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज’ ने यह प्रोजेक्ट लिया है।
पेडों को काटने और उन्हें पुनः न लगाने के परिणाम-स्वरूप कई तरह के जीव-जंतु, जिनमें लुप्तप्राय प्रजातियां भी सम्मिलित हैं, के आवास को क्षति पहुंचेगी, जैव-विविधता को नुकसान होगा और वातावरण में शुष्कता बढ़ेगी। वहीं जंगलों के कटने से वातावरण में कार्बन डाई-आक्साइट बढ़ रही हैं। वर्तमान में पेड़ों के काटने से एक तरफ ‘ग्लोबल वार्मिंग’ बढ़ रही है वहीं दूसरी ओर प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है।
वन क्षेत्रों का विनाश पर्यावरण की बदहाली का कारण बना है जिससे जैव-विविधता कम हो गयी है। वन जैव-विविधता को बढ़ावा देते हैं, क्योंकि ये वन्य जीवन को आवास प्रदान करते हैं। इसके अलावा वन औषधीय संरक्षण का काम भी करते हैं। वनों की कटाई से न केवल पर्यावरण प्रभावित होगा, बल्कि भूमि, मिट्टी, जल, वायु के कारण पृथ्वी का पर्यावरण धीरे-धीरे बिगड़ने लगेगा और कई श्वसन संबंधी बीमारियां होने लगेंगी, जिससे लोगों की मृत्यु-दर में वृद्धि होगी। पेड़ पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं और पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करते हैं। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई एवं सिमटते जंगलों की वजह से भूमि बंजर और रेगिस्तान में तब्दील होती जा रही है। बारिश जैसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक चक्र प्रभावित होंगे और धीरे-धीरे बारिश कम हो जाएगी, पानी की कमी होगी तो सूखा, भोजन की कमी, प्रदूषित वातावरण इत्यादि पृथ्वी को नुकसान पहुंचाएंगे।
वर्तमान में दुनिया के सात अरब लोगों को प्राणवायु प्रदान करने वाले जंगल खुद अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ‘सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरनमेंट’ (सीएसई) की एक रिपोर्ट के हवाले से बताया गया है कि देश में 18 पेड़ काटे जाते हैं तो एक पेड़ लगाया जाता है, जबकि हमारे जीवन का आधार वन है। वनों के अभाव में जीवन की संभावना ही खत्म हो जाती है। पेड़-पौधे तथा मनुष्य एक-दूसरे के पोषक और संरक्षक हैं।
इसलिए जरुरी है कि हम हीरे के लालच में बकस्वाहा की छाती से पेड़ों को न उजड़ने दें। यदि हमें जीवित रहना है तो इसके लिए यहां के जंगल को बचाना होगा। पृथ्वी से मानव ने आज तक सब कुछ लिया ही है, दिया कुछ भी नहीं है। यदि हम समय रहते सजग नहीं हुए तो पृथ्वी पर पर्यावरणीय संकट और अधिक बढ़ जाएगा। (सप्रेस)
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