कोविड-19 महामारी ने हमारे आसपास अपने गंधहीन, रंगहीन स्वरूप में मौजूद तत्व ऑक्सीजन की अहमियत उजागर कर दी है। यह ऑक्सीजन या प्राणवायु प्रकृति के जिस खजाने से मिलती है, उसकी हम कितनी परवाह करते हैं? क्या हम खुद अपने कारनामों से ऑक्सीजन के विपुल प्राकृतिक भंडारों को बर्बाद करने में नहीं लगे हैं?
ऑक्सीजन सभी जीवों की श्वसन क्रिया के लिए जरूरी है। इसीलिए इसे प्राणवायु कहा जाता है। मनुष्य 24 घंटे में जो कुछ ग्रहण करता है उसमें श्वसन द्वारा ली गयी हवा की मात्रा सर्वाधिक होती है। एक गणना के अनुसार मनुष्य को 24 घंटे में 12 से 15 किलो हवा, पांच से सात लीटर पानी तथा लगभग दो किलो भोजन की जरूरत होती है। ऑक्सीजन या प्राणवायु एक रंगहीन, गंधहीन तथा जल में घुलनशील गैस है, जो हमारे वायुमंडल में 21 प्रतिशत होती है। वायुमंडल में इसका सही अनुपात बनाये रखने का कार्य हरे पेड़ पौधे ही करते है। ये हरे पेड़ पौधे अपना भोजन बनाने की क्रिया (प्रकाश संश्लेषण) में कार्बन डाय-आक्साइड को लेकर ऑक्सीजन को छोड़ते है।
वायुमंडल में उपस्थित ऑक्सीजन की 60 से 80 प्रतिशत तक आपूर्ति समुद्र में तैरने वाले छोटे हरे पौधों से होती है जिन्हें ‘प्लवक’ (फायटोप्लेकटान) कहा जाता है। शेष आपूर्ति जंगलों से होती है। विशेषकर अमेजन के विशाल एवं सघन वनों से, जिन्हें ’’धरती का फेफड़ा’’ कहा जाता है। एक अध्ययन के अनुसार दुनिया में 03 खरब पेड़ हैं जो हर वर्ष 06 अरब टन ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। एक हेक्टर में फैले सघन वन भी 30 टन ऑक्सीजन प्रतिवर्ष देते हैं। वनों के अलावा एक भरापूरा पुराना पेड़ भी वर्ष भर में लगभग 250 से 300 पौंड ऑक्सीजन देता है।
अलग-अलग गणनाओं में ऑक्सीजन की मात्रा कम-ज्यादा हो सकती है, परंतु यह तय है कि हरे पेड़-पौधे मनुष्य एवं अन्य जीवों को आवश्यक प्राणवायु निशुल्क प्रदान करते हैं। सम्भवतः 1986 में कलकता विश्वविद्यालय के प्रो. टीएम दास ने पहली बार बताया था कि एक 50 वर्षीय पेड़ 15 लाख 70 हजार रूपये की पर्यावरणीय सेवा प्रदान करता है जिसमें ऑक्सीजन का मूल्य 4 से 5 लाख रूपये का होता है। प्रयागराज स्थित ‘बायो शोध संस्थान’ के कुछ वर्षों पूर्व किये अध्ययन के अनुसार मनुष्य द्वारा वर्ष में ली गयी ऑक्सीजन का मूल्य बाजार भाव से एक करोड़ रूपये के लगभग होता है।
कोरोना प्रभावित मरीजों के इलाज के लिए कई जगहों पर सिलेंडर के साथ-साथ ऑक्सीजन-कंसन्ट्रेटर भी लगाये जा रहे हैं जो सीधे वायुमंडल से ऑक्सीजन लेकर मरीज को उपलब्ध कराते हैं। कोरोना ने हमें जीवन में ऑक्सीजन के महत्व को समझा दिया है। अतः इस कोरोना काल में हमें ऑक्सीजन के साथ-साथ उन पेड़ पौधों का भी महत्व समझना चाहिये जो यह कार्य बगैर किसी दिखावे के शांतिपूर्वक कर देते हैं। ऑक्सीजन के इन महादानी पेड़-पौधों को भी बचाना जरूरी है।
यह दुखद है कि वायुमंडल में ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाले स्रोत (महासागर एवं पेड़-पौधे, विशेषकर जंगल) संकटग्रस्त हैं। महासागरों में बढ़ता प्रदूषण, जहाजों का आवागमन, तेल वाहक जहाजों की रिसन या दुर्घटना से फैलता तेल वहां के तैरते, हरे पौधों (प्लवक) पर विपरीत प्रभाव डालकर उनकी संख्या एवं उत्पादन कम कर रहा है। दुनिया के सागरों में प्रति वर्ष 80 लाख टन कचरा फेंका जाता है। ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (यूएनईपी) की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 15 वर्षों में समुद्रों में जीवन-शून्य क्षेत्रों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसके साथ ही वायुमंडल में ओजोन की मात्रा घटने से विकिरण (परा-बेंगनी बी-प्रकार के) ज्यादा मात्रा में आकर समुद्री ‘प्लवक’ पर विपरीत प्रभाव डाल रहे हैं।
महासागरों के साथ-साथ दुनिया के जंगल भी संकटग्रस्त हैं। मानव सभ्यता के बढ़ने के साथ-साथ दुनिया के 46 प्रतिशत पेड़ घट चुके हैं। नगरीकरण, औद्योगीकरण, खनन, कृषि विस्तार एवं दावानल के कारण जंगलों का क्षेत्र लगातार घटता जा रहा है। मेरीलैंड विश्वविद्यालय स्थित ‘ग्लोबल फारेस्ट वाच’ के अनुसार फुटबाल के 30 मैदानों के बराबर जंगल प्रति मिनट दुनिया में काटे जाते हैं। जंगलों में 80 प्रतिशत जैव-विविधता पायी जाती है, अतः जंगलों के कटने से जैव-विविधता भी कम हो रही है। एक अन्य गणना के अनुसार विश्वभर में जंगल के बाहर 15 सौ करोड़ पेड़ प्रतिवर्ष वैध या अवैध तरीके से काटे जाते हैं। हमारे देश में भी बनी वन-नीति के अनुसार पहाड़ी एवं मैदानी भागों में क्रमशः 66 एवं 33 प्रतिशत वन होना चाहिये, परंतु ऐसी स्थिति ज्यादातर राज्यों में नहीं है।
कोरोना काल में तो शासन-प्रशासन दवाई के साथ-साथ ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था एवं उत्पादन बढ़ाकर स्थिति नियंत्रित कर लेंगे, परंतु वायुमंडल में ऑक्सीजन प्रदान करने वाले हरे पेड़-पौधों की घटती संख्या पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है। अंतर्राष्ट्रीय से क्षेत्रीय स्तर तक ऐसी नीति एवं योजनाएं बनायी जानी चाहिये, ताकि अधिक-से-अधिक पेड़-पौधे बच सकें, चाहे वे भूमि पर हों या समुद्र में। सभी जीवों के लिए जरूरी प्राणवायु का प्रवाह पेड़-पौधों से ही होता है। (सप्रेस)
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