
दरिपल्ली रामैया का जीवन पर्यावरण संरक्षण की जीवंत मिसाल रहा। उन्होंने अकेले ही एक करोड़ से अधिक पौधे रोपकर बंजर ज़मीनों को हरित बना दिया। बीज जेब में और पौधों का सपना आंखों में लिए वे जीवन भर पेड़ लगाते रहे। ‘वनजीवी रामैया’ ने स्कूलों, सड़कों और गाँवों को हरियाली से सजाया—उनका हर कदम धरती को सांस देने का काम करता रहा।
अपने दम पर एक करोड़ पौधे रोपकर पेड़ बनाने वाले 87 वर्षीय ग्रामीण पद्मश्री दरिपल्ली रामैया का 12 अप्रैल 2025 को उनके पैतृक गांव रेडीपल्ली में निधन हो गया। उन्हें ट्री-मेन के नाम से भी जाना जाता था। अपने क्षेत्रा में वे वन जीवी रामैया एवं चेत्तला रामैया भी कहे जाते थे। स्थानीय भाषा में चेत्तला का अर्थ पेड़ होता है। खम्मम ग्रामीण मंडल के रेडीपल्ली गांव के मूल निवासी रामैया का जन्म 1 जुलाई 1937 को हुआ थाएवं पेशे से वे कुम्हार थे। ग्रामीण परिवेश एवं गरीबी के कारण केवल प्रारम्भिक शिक्षा गांव के स्कूल से प्रारंभ की।
जीवन की शुरूआत में समाज सेवा के छोटे बड़े कार्य किये परंतु बचपन से ही पेड़ पौधों के प्रति काफी लगाव रहा। यह लगाव युवावस्था में एक जुनून में बदल गया। वर्ष 1960 से आजीवन पौधा रोपण एवं पेड़ों के संरक्षण के कार्यो से जुड़े रहे एवं एक करोड़ से ज्यादा पौधे रोपकर उन्हें पेड़ बनाए। प्रारंभ में महापुरूषों की जयंती एवं पुण्य तिथियों पर पौधे रोपे परंतु बाद में यह कार्य लगातार होने लगा। शुरू में उनके कार्यो का उपहास भी बनाया गया परंतु वे अपने कार्य में लगे रहे।
रामैया कहते थे कि भगवना की पूजा एवं पौधा रोपण के कार्य में कोई एवजी नहीं होती है। उनका कार्य क्षेत्र खम्मल एवं इसके आसपास के भागों में ज्यादा रहा। वहां के लगभग 2000 से ज्यादा स्कूलों में उनके द्वारा रोपे गए पौधे अब पेड़ बनकर विद्यार्थियों को छाया प्रदान कर रहे है। छायादार एवं फलदार पेड़ों के पौधे ज्यादा रौपे गये। धोती कुर्ताधारी रामैया अपने कुर्ते की जेब में बीज रखते थे एवं जहां बंजर जमीन दिखाई देते वहां उन्हें बोते थे एवं सिचाई कर देखभाल भी करते थे। वे सायकल से जंगलों में घूमकर कई प्रकार के बीज एकत्र भी करते। रामैया जब भी घर से निकलते तो गले में एक बोर्ड लटकते जिस पर लिखा होता था ”वृक्षो रक्षति रक्षितः” अर्थात यदि आप वृक्ष की रक्षा करेगें तो वृक्ष भी आपकी रक्षा करेंगे। उनकी पत्नी जनम्मा ने भी उनके कार्य में पूरा सहयोग दिया। पेड़ पौधो से सम्बंधित किसी भी पुस्तक को वे ध्यान से पढ़ते एवं इसी का वह परिणाम था कि वे कई पेड़ों का पूरा इतिहास जानते थे। समय समय पर मिलने आये लोगों को पौधे उपहार में देकर पेड़ों का महत्व भी समझाते थे।
स्थानीय भाषा में उन्होंने पेड़ पौधो से जुड़े 60 गति एवं 2000 पक्तियां लिखी। उनका कहना था कि पेड़ मानव प्रगति के लिए जरूरी है। तेलंगाना सरकार की हरियाली बढाने की योजना -हरिता-हरम में भी रामैया ने भरपूर सहयोग दिया। अपने कार्य के लिए वे कई पुरस्कारों से सम्मनित भी किये गए जैसे सेवा पुरस्कार (1995) वन-मित्र (2005) उत्कृष्ट पारम्परिक ज्ञान (2015) वर्ष 2017 में पद्मश्री से भी नवाजे गए।
रामैया के निध पर शोक जताते हुए प्रधान मंत्री ने कहा कि उनका काम हमारे युवाओं को हरियाली फैलाने के लिए प्रेरणा देगा। मुख्यमंत्री ए.रेवंत रेड्डी ने इसे समाज के लिए अपूरणीय क्षति बताया। खम्मल-मनुगुरू सड़क का नाम वनजीवी-रामैया मार्ग रखने की स्वीकृती प्रदान की गयी। दरिपल्ली रामैया का जीवन यही दर्शाता है कि यदि काम करने का जुनून हो तो गरीबी-अमीरी या ज्यादा पढ़ाई लिखायी कोई ज्यादा मायने नही रखती हैं।