महात्मा गांधी ने मेवात को मेवात बनाए रखने के लिए बड़ा जौहर किया था। उस जौहर का परिणाम है कि आज मेवात अपनी जगह बसा हुआ है। बापू ने आजादी के बाद देश के बंटवारे को अपनी हार मानकर भी सभी संप्रदायों और धर्मों (हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई) का मन जोड़कर अपने राष्ट्र के गौरव को बचाने हेतु सद्भावनापूर्वक भारत में सबको जीने का हक प्रदान किया था। इसी हक को दिलाने के लिए वे समर्पित हो गए। भारत में उनका सर्वधर्म सद्भाव बढ़ाने का संकल्प सफल रहा। उनका जीवन और व्यवहार तो एक था ही, लेकिन हमारे व्यवहार में कुछ खराब घटनाएं देखने-सुनने को आज भी मिलती हैं। फिर भी बापू के कारण ही हम एक ऐसे राष्ट्र बने रहे, जिसमें सभी को जीने का समान हक मिल सके।
हम विरासत स्वराज यात्रा के दौरान 16 जनवरी को निमली में किसान सम्मेलन के बाद घाटाशमसाबाद में पहुंचे। यहाँ बड़ी संख्या में किसान मौजूद थे।
सबको समान जीवन दिलाने हेतु बापू शहीद नहीं हुए, बल्कि उन्होंने जौहर किया था। अपने राष्ट्र का गौरव बचाना ही उनका लक्ष्य रहा है। अपने अंतिम क्षण का उन्हें पता था, फिर भी अधिक शक्ति से दिल्ली के पास पूर्वी पंजाब ‘मेवात’ के संप्रदाय को शांत किया। अपनी समझ और शक्ति मेवात को उजड़ने से बचाने में लगा दी। पूर्वी पंजाब के प्रधानमंत्री गोपीचंद भार्गव सहित सरदार पटेल और नेहरू जी को बराबर से बचाने में लगाया। वे अपने अंतिम दिनों में अपने को कमजोर तो मानने लगे थे, फिर भी पूरी संकल्प शक्ति से बापू इस चुनौती से जूझने में जुट गए। उन्हें सफलता मिलने लगी थी, इसलिए कई बार मौन रहकर उपवास करके समाज में चेतना जगाई। बापू के जौहर से शांति कायम होने लगी थी। शांतिमय और अहिंसा से बनते वातावरण से व्यथित होकर कुछ लोगों ने बापू की हत्या का निर्णय कर लिया था। इस कार्य में धर्म संगठन और राजा शामिल थे।
बापू आजाद भारत बनने के बाद कुल 167 दिन जीवित रहे। ये दिन इनके जौहर करने के ही दिन थे। बापू ने पूरा जौहर किया। जो आज भी जारी है। उनकी प्रेरणा, उनकी अंतः चेतना की तरंगों से प्रभावित बहुत से लोग उनके रास्ते पर आज भी चल रहे हैं। मैं भी अपने बचपन और तरुणाई को उनके जौहर से प्रभावित मानता हूं। तभी तो उन्हीं के रास्ते अंजाने ही चल पड़ा। समाज की समझ और उन्हीं के निर्णय से ही ग्राम स्वावलम्बन और उजड़े गांवों को बसाने हेतु पानी के कार्य में जाकर जुट गया।
महेश्वरी गोकुलभाई भट्ट, सिद्धराज ढड्ढा और एल. सी. जैन का साथ मिला। न्यायमूर्ति तारकुंडे, कुलदीप नैयर हमारे शिविरों में आकर हमारे जौहर में शामिल होते थे। ठाकुरदास बंग, लोकेंद्र भाई, रामजी भाई, विनय भाई, हरिभाई, अमरनाथ भाई, तेज सिंह भाई ये सब हमारे साथ मेवात में घूमे। इन्होंने 1986 में 30 जनवरी से 12 फरवरी तक मेरे साथ पहली मेवात यात्रा की, फिर हमने ‘गांधी चुनौती यात्रा’ आयोजित की। इब्राहिम खान, शांतिस्वरूप डाटा, गंगा बहन मेरे साथियों के साथ जुड़कर यात्राएं करने लगे और लोगों में हम पर विश्वास धीरे-धीरे बढ़ने लगा। अनुपम मिश्र ने हमारे ‘‘जोहड़ यात्रा’’ में प्रभाष जोशी और चंडी प्रसाद भट्ट को जोड़ दिया। अनिल अग्रवाल तो राजीव गांधी को ग्राम पंचायत को सशक्त और सुदृढ़ बनाने के लिए हमारे क्षेत्र का अध्ययन करने और हमसे बात कराने आए थे। इन सबकी मेवात यात्राओं से हमारे जोहड़ एवं ग्राम स्वराज की यात्रा और कार्य नाम आने लगा था।
ग्राम को साझे श्रम-संगठन के बिना बनाना संभव नहीं था। इसलिए समाज का संगठन बनाने के लिए रात-दिन उन्हीं के साथ रहकर, उन्हीं के जौहर हेतु अहसास कराना पड़ता था। समाज के जौहर से ही जोहड़ बनता है। आज भी जौहर और जोहड़ एक-दूसरे के पूरक हैं। शहीद और सती तो अकेले होते हैं। इसलिए आसान होता है, लेकिन जौहर साझा अभिक्रम और साझी संकल्प शक्ति से, साझे लक्ष्य के लिए होता है। बापू तो साझे थे। साझा ही सोचकर सब करते थे। चरखा जैसा निजी काम भी उन्होंने साझा हित-राष्ट्रहित बनाकर चरखे के लिए जौहर किया था। हमने तो केवल जोहड़ जैसे पहले से साझे जोहड़ को जौहर बनाया है। बेपानी मेवात व खारे मेवात में जोहड़ से मीठा पानी बनाया।
यह सब काम बापू के तरीके से ही संभव हुआ। पेड़ और पानी तो मेवात से आजादी के आंदोलन के समय ही बिगड़ने लगा था। यहां के राजा, जमींदार सभी इसे बिगाड़ने पर अड़े थे, हमारी जमीन और जंगल का राष्ट्रीयकरण हो रहा है। हम मनमर्जी कर लें। इससे कुछ लाभ कमा सकें तो कमा लें। इसलिए पहले से बचे ‘जंगल’ इस समय बेरहमी से कटवाए।
इब्राहम खान ने कहा कि महात्मा गांधी के जौहर के कारण ही हम अपनी जगह पर बसे हुए हैं। हमें अपने पानी संकट के समाधान करने के लिए जल विरासत को बचाना है।
इस यात्रा में छोटे लाल मीणा, राहुल, रामेंद्र सिंह, नीरज आदि साथ थे। दूसरा दल रणवीर सिंह के नेतृत्व में करौली राजस्थान पहुंचा। यहां किसानों को जल, जंगल और जमीन की विरासत को बचाने का संकल्प दिलाया।
आजादी के बाद बापू का पहला काम ” सर्व धर्म सद्भावना” बन गया था
17 जनवरी 2022 को विरासत स्वराज यात्रा मेवात क्षेत्र के मेवली गांव पहुँची। स्थानीय निवासी शेरू का कहना था कि, यदि इस पहाड़ के ऊपर जोहड़ बन जाए, तो पूरे साल हमारे जानवरों को पानी पीने के लिए मिल जाएगा। वहां उपस्थिति कुछ लोगों ने बताया कि, मेली गांव में अभी खारा पानी है, यह पानी खेती और पीने के लायक नही है। इसलिए यदि यह बांध बन जायेगें, तो पानी मीठा हो जायेगा क्योंकि बारिश के भूजल पानी से जीवन चल जायेगा। यहाँ पहाड़ के नीचे के पुराने सभी सरकारी बांध टूटे हुए है, यहाँ के पहाड़ वीरान नंगे है और चोरी से चलने वाला खनन जारी है।
मेवली के बाद यात्रा ने घागस में सहगल फाउंडेशन के कार्यकर्ताओं से बातचीत हुई। यात्रा ने जानना चाहा कि, मेवात में महात्मा गांधी की भूमिका क्या है और महात्मा गांधी के बाद विनोवा भावे ने किस तरह से सामाजिक काम करके मेवात को बचाने का काम किया। मेवात और गांधी के रिश्ते पर लंबी बातचीत हुई। इसके उपरांत यात्रा नगिना पहुँची। यहाँ मौलाना सलमान साहब ने यात्रा का स्वागत किया। यहाँ मदरसे में सैकडों मौलवियों के साथ लम्बी बातचीत हुई। यह शिक्षा के लिए काम कर रहे है।
यहाँ के बाद यात्रा फिरोजपुर झिरका होते पाठखोरी में पहुँची। यहाँ के सरपंच चंद्रशेखर ने यात्रा का स्वागत किया। इन सभी जगहों पर लोगों को संबोधित करते हुए जलपुरूष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि बापू का ध्यान आजादी के समय कटते जंगलों पर नहीं गया, क्योंकि तब पेड़ से पहले इंसान बचाना उनका लक्ष्य था। जोहड़ इंसान के लिए जरूरी है। इसलिए गांव के जोहडों पर उनका ध्यान जरूर गया। उन्होंने जोहड़ों के रखरखाव और सफाई पर कई बार गांवों में लोगों से कहा था। तालाब-जोहड़ो की सफाई भी कराई थी। गुजरात के उनके घर और राजकोट पोरबंदर ये सब मेवात जैसे जल संकट के क्षेत्र हैं। इसलिए उन्हें जोहड़ की जरूरत और महत्व का अहसास था। जोहड़ के निर्माण को जौहर ही समझते थे। तभी तो जोहर की सफाई आदि का आभास उन्हें हो गया और ग्राम स्वावलंबन कार्यों की सूची में जोहड़ भी शामिल कर लिया गया था।
सर्वोदय और भूदान में जोहडों पर कुछ काम हुए लेकिन औपचारिक काम की तरह से ही किए गए। जबकि जोहड़ को जौहर की जरूरत होती है। तरुण भारत संघ के कार्यकर्ताओं ने जोहड़ को जौहर की तरह लिया। ग्राम समुदाय के सामूहिक निर्णय से स्थान चयन निर्माण की विधि-विधान सभी कुछ साझा श्रम, समझ, शक्ति से निर्मित जोहड़ 21वीं शताब्दी में भी खरा और जरूरी बन गया क्योंकि आज धधकते ब्रह्मांड और बिगड़ते मौसम के मिजाज का समाधान जोहड़ ही है। जोहड़ समाज को जोड़ता है। जल के लिए होने वाले विश्व युद्ध से बचने का शांतिमय समाधान करने वाली व्यवस्था का नाम जल जौड़ है उसे ही जोहड़ कहते हैं।
यह बढ़ती जनसंख्या-जनजल जरूरत पूरी करने वाली विकेंद्रित व्यवस्था है। समता, सरलता और सादगी से सबको जीवन देनेवाली बिना पाइप की जल व्यवस्था है।
बापू ‘हिंद स्वराज्य’ में भावी संकट का समाधान विकेंद्रित व्यवस्था द्वारा बताते हैं। जोहड़ वही सामुदायिक विकेंद्रित व्यवस्था है। इसे तोड़ने वाले अंग्रेजी राज को बापू ने जीते जी हटा दिया था। लेकिन अंग्रेजीयत नहीं हटी थी। इसे हटाने हेतु हमें देशज ज्ञान का सम्मान जोहड़ परंपरा को जीवित करके ही किया जा सकता है। वही काम बापू के बाद मेवात में तरुण भारत संघ ने जमूरी, देवयानी, कजोडी, गुलाब, कस्तूरी, मीणा, राजेश, सुलेमान, जगदीश, गोपाल, छोटेलाल, वोदन इब्राहिम, सलीम रहमत अयूब, रामेंद्र, सीताराम, अनिल, राहुल और मलिक जैसे स्थानीय युवाओं को तैयार करके किया है।
मेवात की पानी, परंपरा और खेती का वर्णन बापू के जौहर से जोहड़ तक किया है। बापू कूदरत के करिश्मे को जानते और समझते थे। इसलिए उन्होंने कहा था ‘‘कुदरत सभी की जरूरत पूरी कर सकती हैं। लेकिन एक व्यक्ति का भी लालच पूरा नहीं कर सकती।’’ वे कुदरत का बहुत सम्मान करते थे। उन्हें मानने वाले भी कुदरत का सम्मान करते हैं। मेवात में उनकी कुछ तरंगे आज भी काम कर रही हैं। इसलिए मेवात में समाज श्रम से जोहड़ बन गए और अब नए भी बन रहे हैं। मेवात में बापू का जौहर जारी है।
इस विरासत स्वराज यात्रा में अलवर के उपवन संरक्षक (डीएफओ)श्री बासने भी शामिल हुए,उन्होंने यात्रा दल को संबोधित करते हुए कहा कि,आज की सबसे बड़ी विरासत जल और जंगल है। हम अपनी जैवविविधता को बचायेंगे, तो हमारा भाविष्य सुरक्षित और समृद्ध रहेगा। विकास के नाम पर हो रहे विनाश के कारण जंगल और जल पर संकट है। हमें अपनी जैवविविधता संरक्षण के लिए राज-समाज को सक्रिय होना चाहिए।
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