इंसानी वजूद के लिए जरूरी हवा, पानी और भोजन की त्रयी में से पानी तेजी से विलुप्त होता जा रहा है। वजह है, नए आधुनिक तरीकों से होने वाली खेती और उद्योग। क्या होता है जब बुनियादी मानवीय जरूरतों को छोड़कर पानी अन्य उपयोगों में शुमार हो जाता है? लैटिन-अमेरिकी देश उरुग्वे के उदाहरण से यह समझा रहे हैं, उपेन्द्र शंकर।
धरती पर मौजूद कुल पानी का सर्वाधिक खेती में खर्च होता है। चीन सरीखे धन-धान्य से सम्पन्न देश अपना पानी बचाने की खातिर बडी मात्रा में कृषि और डेयरी उत्पादों का आयात कर रहे हैं। लैटिन-अमरीकी देश उरुग्वे की बात करें तो वहां के पर्यावरणविदों का कहना है कि मोंटेवीडियो महानगरीय क्षेत्र में आने वाला जल-संकट न केवल जलवायु परिवर्तन के कारण हुए सूखे के कारण है, बल्कि निर्यात आधारित कृषि-औद्योगिक गतिविधियों द्वारा पानी के अत्यधिक दोहन का परिणाम है।
जल और जीवन की रक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग के सदस्य कारमेन सोसा, जिन्होंने 2004 में पीने के पानी तक पहुंच को एक मौलिक अधिकार बनाने के लिए संविधान में संशोधन करने के संघर्ष का नेतृत्व किया था, का कहना है कि ‘हमारे जल-संसाधनों को लूट लिया गया है और यह काम कृषि-व्यवसाय और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ का है। वर्ष 2004 के बाद से, सिद्धांत के तौर पर मानव उपभोग के लिए पानी को अन्य उपयोगों की तुलना में प्राथमिकता दी गई, लेकिन व्यवहार में ऐसा कभी नहीं हुआ।’ उन्होंने बताया, ‘चावल उद्योग आबादी की तुलना में चार गुना अधिक पानी का, लकड़ी की लुगदी 10 गुना, सोयाबीन की खेती 17 गुना और मांस के लिए पशुधन का फार्म पद्धति से पालन 20 गुना अधिक पानी की खपत करता है।’
कारमेन सोसा के मुताबिक ‘सभी उद्यम नदियों से पानी लेते हैं। जल-संसाधनों का प्रबंधन पर्यावरणीय मुद्दे की बजाए राजनीतिक निर्णय से होता है। किसी भी नीति निर्माता ने लोगों और अन्य जीवों के बारे में नहीं सोचा जबकि यह स्पष्ट था कि हमारे पास पानी खत्म होने वाला था।’ सोसा ने आलोचना करते हुए कहा कि ‘हमारे पास पीने के लिए पानी नहीं है, लेकिन उद्योगों के पास अभी भी पानी है। उरुग्वे के सभी जलस्रोतों पर सात लुगदी मिलों ने कब्जा कर लिया है। जो राजनीतिक निर्णय लिए गए, वे 2004 में स्थापित निर्णयों के विपरीत हैं। सूखे ने हमारे आर्थिक मॉडल की समस्याओं को स्पष्ट रूप से दर्शाया है। हम संसाधनों को कुछ हाथों में केंद्रित नहीं कर सकते। मानव उपभोग के लिए पानी लाभ से पहले आना चाहिए।’
उरुग्वे सेलूलोज़ (लुगदी) का एक महत्वपूर्ण उत्पादक है, जिसमें बड़ी मात्रा में पानी की खपत होती है। रिपोर्टों के अनुसार जो 19 कंपनियाँ देश के सभी निवासियों की तुलना में अधिक पानी का उपयोग करती हैं, उनमें सेलूलोज़ उत्पादक कंपनियाँ भी शामिल हैं। अप्रैल में दुनिया की सबसे बड़ी लुगदी मिल का संचालन उरुग्वे में शुरू हुआ, जो देश में ऐसी तीसरी मिल थी। कागज के लिए कच्चा माल बनाने के लिए फिनलेंड की कंपनी ‘यूपीएम’ द्वारा संचालित नए संयंत्र में प्रतिदिन 129.6 मिलियन लीटर पानी का उपयोग होने की आशंका है।
‘द गार्जियन’ अखबार की रिपोर्ट के अनुसार उरुग्वे में जल-आपूर्ति की समस्याओं पर आक्रोश के बीच गूगल डेटा सेंटर बनाने की योजना की खबर आयी, जो प्रतिदिन लाखों लीटर पानी का उपयोग करेगा। इस खबर ने देश में बहुत गुस्सा पैदा कर दिया है। दिग्गज कंपनी ने दक्षिणी उरुग्वे में कैनेलोन्स में डेटा सेंटर बनाने के लिए 29 हेक्टेयर जमीन खरीदी है। अखबार के अनुसार, केंद्र अपने सर्वर को ठंडा करने के लिए प्रतिदिन 7.6 मिलियन लीटर पानी का उपयोग करेगा, जो करीब 55,000 लोगों के घरेलू दैनिक उपयोग के बराबर है। हालांकि अब अधिकारियों का कहना है कि योजना को संशोधित किया गया है। उरुग्वे के उद्योग मंत्रालय का कहना है कि ये आंकड़े पुराने हैं क्योंकि कंपनी अपनी योजनाओं में संशोधन कर रही है और डेटा सेंटर ‘छोटे आकार’ का होगा।
गूगल का आगामी डेटा सेंटर एकमात्र परियोजना नहीं है, जो विवादास्पद है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न आकार के कम-से-कम 486 निजी जलाशय हैं जो निर्यात आधारित कृषि व्यवसाय के लिए नदियों और नालों से पानी निकालते हैं। लैटिन-अमेरिकी क्षेत्र के विभिन्न देशों, जैसे-अर्जेंटीना (जो कि पहले से ही पानी की कमी से जूझ रहा है), वेनेजुएला और ब्राज़ील ने स्थिति की विकरालता को कम करने में मदद के लिए हाल के हफ्तों में उरुग्वे को अपना समर्थन देने की पेशकश की है।
यदि उरुग्वे को पानी की समस्या का स्थायी समाधान ढूंढना है तो उसे अपनी नीतियों को बदलना होगा। इसमें आशा की एक किरण है – जनमत संग्रह, जिसमें 60% से अधिक आबादी द्वारा अनुमोदित 2004 के संवैधानिक सुधारों में जल-आपूर्ति के सार्वजनिक प्रबंधन को भी शामिल किया गया था। वर्ष 2004 के पहले तक बड़े पैमाने पर पीने के पानी और स्वच्छता सेवाएं निजीकरण से प्रेरित थीं। नागरिक समाज और राजनीति-सामाजिक काम करने वाले समूहों के गठबंधन ‘राष्ट्रीय जल और जीवन रक्षा आयोग’ ने लाभ संचालित जल-प्रबंधन और लालच को नागरिकों के अधिकारों के लिए एक बुनियादी खतरे के रूप में पहचाना है। यह एक जमीनी स्तर की पहल है जो राजनीतिक दलों और मीडिया की उदासीनता तथा व्यावसायिक हितों के पूर्ण विरोध के बावजूद सफल रही। ऐसे देश में जिसे दक्षिण-अमेरिका में सबसे लोकतांत्रिक देश के रूप में स्थान दिया गया है, नागरिक समाज फिर से समाधान खोजने में एक आवश्यक भूमिका निभा सकता है। स्वच्छ जल तक पहुंच का महत्व एक बार फिर जनता के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता है। उरुग्वे का संकट आज अधिक-से-अधिक देशों के लिए चेतावनी है। वे इसको देख-जानकर सीख सकते हैं कि किसी क्षेत्र में लिखित रूप में, मौलिक अधिकार पा जाना समस्याओं को हल नहीं कर सकता, जब तक कि उससे सम्बंधित अन्य क्षेत्रों की नीतियों में उसके अनुरूप बदलाव नहीं किये जाएँ। (सप्रेस)
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